पंजाब चुनाव के समय आम आदमी पार्टी के सुप्रीमों और राष्ट्रीय अध्यक्ष केजरीवाल ने वादा किया था कि उनकी सरकार बनी तो तीन सौ यूनिट बिजली हरेक बिल पर फ्री दी जाएगी. प्रत्येक व्यस्क महिला को एक हजार रूपया म ाहवार दिया जाएगा. इसकी उन्होंने गारंटी दी.
जब पंजाब में 117 में से 92 सीट की जीत के साथ चमत्कारी विजयश्री मिली तो भगवंत मान मुख्यमंत्री बनाए गये. लोग सस्ती बिजली और महिलाएं एक हजार रूपये का इतंतार करने लगे. वे दिन गिनते गये. मान तरह तरह की घोषणाएं करते रहे पर लोग इसे समय काटने का बहाना बताने लगे. पंजाब की जीत के रिकॉड के साथ मान केजरीवाल के साथ गुजरात पहुंचे तो सभी ने पंजाब के वादों का सवाल उठाये.
तब शायद केजरीवाल को लगा कि बिजली का वादा सबसे पहले पूरा किया जा सकता है. पर उन्होंने मान की अनदेखी कर दिल्ली में पंजाब के आला अफसरों की बैठक बुला ली. इसमें पंजाब के बिजली विभाग के अफसर भी थे. बैठक में दिल्ली के बिजली विभाग के अफसर भी थे. सबने मिलकर पंजाब में बिजली का वादा कैसे पूरा किया जाए इस पर विचार किया. लेकिन एक बात सबको अखर गई कि बैठक में न पंजाब के मुख्यमंत्री मान थे न पंजाब के बिजली मंत्री हरभजन.
पंजाब के मुख्यमंत्री और बिजली मंत्री की गैर मौजूदगी राजनीतिक विवाद का विषय भी बना और कहा जाने लगा कि केजरीवाल दिल्ली में बैठकर पंजाब की सरकार चला रहे हैं. मान तो केवल डमी मुख्यमंत्री हैं. केजरीवाल के विरोधी कहने लगे कि हम तो पहले से ही कह रहे थे कि वहां आम आदमी पार्टी जीती तो मुख्यमंत्री कोई बने पर सरकार केजरीवाल ही दिल्ली से बैठकर चलाएंगे.
इन आरोपों को इस बात से भी बल मिला कि उस बैठक में दिल्ली के बिजली मंत्री सत्येन्द्र जैन और पंजाब से राज्यसभा में लाए गये राघव चड्ढा भी शामिल थे. चड्ढा को दिल्ली विधानसभा से इस्तीफा दिलवाकर चंडीगढ़ में जमने को कहा गया है ताकि वे पंजाब सरकार के कामों पर नजर रख सकें. वे वहां केजरीवाल के आंख कान होंगे. वैसे वे संगठन के लिहाज से आप के पंजाब प्रभारी भी हैं. उन्हीं की निगरानी में पंजाब का विधानसभा चुनाव भी लड़ा गया है.
वैसे संवैधानिक तौर पर भी इस बैठक पर आपत्ति ली गई की एक राज्य का मुख्यमंत्री दूसरे राज्य के आला अफसरों की बैठक नहीं ले सकता है तो फिर कैजरीवाल ने यह सब कैसे कर लिया.
लेकिन सारे हल्ला गुल्ला से बड़ा सवाल यह है कि क्या पंजाब सरकार तीन सौ यूनिट बिजली फ्री देने का वादा पूरा हो सकता है या नहीं. तीन सौ करोड़ के कर्जे में डूबा पंजाब इसका बौझ कैसे उठा पाएगा. बताया जाता है कि पंजाब बिजली बोर्ड ने बिजली सस्ती करने की जगह अप्रैल से बिजली महंगी कर दी है. बिजली बोर्ड ने भी बता दिया है कि बिजली की काफी कमी है. उसे बिजली खरीदना भारी पड़ रहा है. पंजाब सरकार बिजली बोर्ड और बिजली वितरण कंपनियों को पूरा पैसा नहीं दे पा रही है. तो इससे बिजली सप्लाई पर बुरा असर पड़ सकता है. केन्द्र सरकार एक लाख करोड़ का विशेष पैकेज पर कुछ नहीं बोली है यानि नहीं देगी. यही नहीं पंजाब से कहा है कि वह स्मार्ट मीटर लगाने के काम में तेजी लाए अन्यथा वह बिजली व्यवस्था सुधारने के लिये जो फंड देने वाली थी उसे रोक दिया जाएगा.
ऐसे में पंजाब क्या करेगा यह फिलहाल तो समझ के बाहर है.
सबसे पहले यह जान लें कि बिजली का बिल तैयार कैसे होता है. उसके आधार क्या हैं.
बिजली का बिल ध्यान से देखें तो एक उर्जा का चार्ज होता है. वह बिजली की जो दर होती है उसके तय होता है. फिर सरचार्ज जो सरकार लगती है वह दिखता है. बिजली की दरें अलग अलग बिलों में अलग अलग नजर आती हैं क्योंकि बिजली की दर स्लेब के हिसाब से लगती है. कम खपत पर कम दर और ज्यादा पर ज्यादा दर. उसमें भी स्लैब बनी होती हैं दर को प्रभावित करती है. इसके बाद केटेगरी आती है. कामर्शियल, घरेलू आदि. इससे भी बिजली की दर प्रभावित होती है. यह जानकार आश्चर्य होगा कि केटेगरी और स्लैब को गिनें तो ये करीब दौ सौ बैठती हैं. इस मकड़ जाल के चलते बिजली की सही प्रभावी दर जानना बहुत मुश्किल हो जाता है. फिर फिक्स चार्ज होता है. यानि बिजली कंपनी बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये हर उपभोक्ता की खपत का पूर्वानुमान लगाती है. जिसकी जितनी ज्यादा खपत होती है. जो जितने ज्यादा उपकरणों का उपयोग करता है. जिसके यहां बिजली के जितने पाइंट होते हैं उन सबके आधार पर यह उपयोग की सीमा तय कर किलोवाट के हिसाब मे लोड तय कर दिया जाता है. जितना ज्यादा किलोवाट का लोड उतना ही ज्यादा फिक्स चार्ज.
केजरीवाल ने दिल्ली में किया क्या यह अब समझें.
सबसे पहले उन्होंने बिजली की दर को नहीं छेड़ा. केटेगरी कम की और फिर स्लैब्स. इससे बिजली की दरें समझना आसान हो गया और वे खुद ब खुद कम हो गई. इससे बिजली अपने आप सस्ती हो गई. उसके बाद फिक्स चार्ज पर हमला किया. फिक्स चार्ज में बिजली कंपनियो की मनमानी थी जो उन्होंने भ्रष्टाचार व दूसरे हथकंडों को अपनाकर मनमाने तय कर दिये थे. केजरीवाल ने बहस की और उन्हें तर्क संगत किया. फिर सरकारी डंडा चला कर और कम करवाया. बिजली कंपनियों को व्यवसाय करना था से मरता क्या न करता. तो हो गई बिजली काफी सस्ती. तीन सौ यूनिट का पैसा सबसीडी के तौर पर बिजली कंपनी को दे दिया. गरीबों का फिक्स चार्ज भी सरकारी खजाने से दे दिया. तो गरीबों का बिल हो गया शून्य.
अब जिनकी खपत तीन सौ यूनिट से उपर थी उन्हें उसका पैसा देना था. उनको फिक्स चार्ज में भी कुछ छूट दी गई तो उनके लिये हो गई बिजली सस्ती क्योंकि बिल कम आने लगा था. गरीबों को बिजली हो गई मुफ्त और बाकी को सस्ती.
दिल्ली देश का इकलौता राज्य है जिसका बजट सरप्लस में है इसलिये उसे सबसीडी देने में भी परेशानी नहीं हुई.
लेकिन घुमफिर कर फिर सवाल पंजाब का.
केजरीवाल ने पंजाब में भी पहले बिजली कंपनियों पर सरकारी डंडा चलाने का लगता है मन बना लिया है. इससे बिजली सस्ती हो जाएगी और बिजली का बिल पहले से कम आने लगेगा. लेकिन सबसीडी की स्थिति की इजाजत तो पंजाब का बजट नहीं दे रहा हैं.
इसलिये हो सकता है केजरीवाल कह दें कि पहले चरण में हम बिजली सस्ती कर कम पैसे का बिजली बिल देंगें और दूसरे चरण में तीन सौ यूनिट फ्री देने की बात लागू करेंगे. यह तभी कर पाएंगे जब हमारी आर्थिक स्थिति जरा सुधर जाएगी. ज्यादा समय नहीं लगेगा. भ्रष्टाचार तो खत्म हो ही गया है. उसके बाद सरकारी कमाई बढ़ना तय है. हम तीन सौ यूनिट फ्री भी कर देंगे.
केजरीवाल के इस बातों के जाल में पंजाब की जनता फंसती है या नहीं यह तो देखना होगा. जब 92 सीटों को देकर फंसी है तो अब तो उसकी फंसने की मजबूरी है. जो सबको दिन में तारे दिखा दे और लोग तारे देख कर खुश हो जाएं ऐसे जादूकर का ही दूसरा नाम केजरीवाल है.
दिन में तारे दिखाने का असली अर्थ गुजरात और हिमाचल जहां दिसंबर के आसपास चुनाव होने वाले हैं वहां के लोग समझते हैं या नहीं यह तो तभी पता चलेगा जब इन राज्यों के चुनाव परिणाम आएंगे. या फिर वे भी पंजाब के लोगों की तरह ही वही मतलब समझते हैं जो केजरीवाल बता रहे हैं. यह तो समय बताएगा.