सीधी-सी बात है, सीधी की बात है. (प्रकाश भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल. 9 अप्रैल.

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2022-04-09 00:44:07


सीधी-सी बात है, सीधी की बात है. (प्रकाश भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार) भोपाल. 9 अप्रैल.

सीधी-सी बात है. सीधी की बात है. सीधी-सादी पुलिसिया अकड़ की बात है. बात ये कि सोन नदी के किनारे पर बसे सीधी नगर में कई पत्रकारों के कपड़े एक साथ उतर गए. ये काम सोन नदी में डुबकी मारने के लिए नहीं किया गया, बल्कि स्थानीय पुलिस ने डंडे की दम पर पत्रकारों को ऐसा करने पर विवश कर दिया. फिर इन्हीं उघाड़े बदनों की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल कर दी गयीं. घनघोर रूप से अपमानित करने वाली इस सजा को लेकर दो बातें कही जा रही हैं. पुलिस का कहना है कि आरोपियों ने फर्जी आईडी बनाकर विधायक  तथा उनके बेटे के खिलाफ साजिश रची. आरोपियों का कथन है कि  विधायक पिता तथा उनके पुत्र के खिलाफ समाचार छापने के चलते उनके साथ यह दुर्व्यवहार किया गया है.
सीधी के जंगलों की एक खूबी है. आप उनके पास से भी गुजरें, तो फूलों की एक खास खुशबू बरबस ही आपका ध्यान अपनी तरफ खींचती है। यह खुशबू महुए की होती है, जो यहां की प्रमुख उपज है. महुए से बनी शराब का नशा खासा तगड़ा बताया जाता है. इधर, देश के लगभग हरेक पुलिस थाने की भी एक खूबी है. उनके पास से गुजरने पर अक्सर एक कंपकपी आपके भीतर भर जाती है. यह सिहरन थाने के भीतर बहुधा पायी जाने वाली उस अकड़ के प्रति होती है, जो महुए की शराब की ही तरह पद और रुसूख के चलते नशे की तरह खाकीधारियों के भीतर भरी रहती है. हालांकि यह हरेक थाने और प्रत्येक पुलिस वाले का सच नहीं है. देश के हरेक कोने में इस बल में सही मायनों में देशभक्ति तथा जनसेवा के आग्रही पुलिस वालों की आज भी कमी है. लेकिन सीधी में कोतवाली पुलिस के इस कारनामे ने इन कलयुगी दुशासनों के चलते पूरे प्रदेश शासन का माथा शर्म से नीचा कर दिया है.
सीधी पुलिस के इस पराक्रम की क्रमबद्ध समीक्षा करें तो घमंड से तने माथों और जमीन पर गिरे कपड़ों के बीच कई सूत्र जुड़ जाते हैं. महाभारत में चीरहरण करने वाले दुशासन का नाता उनसे था, जिन्होंने पुत्र मोह में इतिहास के भीषणतम युद्ध को अंजाम दे दिया. यहां भी मामला पुत्र  मोह का ही है. गुरूर से भरे विधायक यदि सत्ता पक्ष के हों तो गुरूर का पक्ष कुछ और भी अधिक गुरुत्व हासिल कर लेता है. इसके बाद विधायक के बेटे द्वारा पुलिस में शिकायत दर्ज कराई जाती है और फिर सामूहिक चीरहरण का एपिसोड बन जाता है. लेकिन ये घमंड आया कहां से? शिवराज सिंह चौहान ने निश्चित ही असामाजिक तत्वों के खिलाफ कार्यवाई के लिए पुलिस के हाथ खोल रखे हैं, लेकिन इन खुले हाथों का विस्तार इस आततायी तरीके से हो जाने की छूट मुख्यमंत्री ने किसी को भी नहीं दी होगी. यह सही है कि लगातार सत्ता में बने रहने के मद में कई भाजपा नेता चूर हो चुके हैं. फिर भी इस मद का ऐसा विकृत स्वरूप शिवराज के आज तक के कार्यकाल में इससे पहले देखने को नहीं मिला था. आप यकीनन मंदसौर गोली काण्ड का जिक्र कर सकते हैं, लेकिन ऐसा करने में आपको इस तथ्य की भी फिक्र करना होगी कि वहां पुलिस ने कानून-व्यवस्था बनाये रखने के अंतिम विकल्प के तौर पर ही फायरिंग की थी.
एक रोचक दलील सुनाई दी है. सोशल मीडिया पर सीधी पुलिस को यह कहते लिखा जा रहा है कि पत्रकार कपड़ों को बांधकर फांसी लगा सकते थे, इसलिए उनके कपड़े उतरवा दिए गए. यदि सोशल मीडिया का यह दावा सही है तो खुलकर कहा जा सकता है कि इतनी जलील किस्म की दलील इससे पहले विरले ही सुनाई दी गयी होगी. फेक आईडी बनाने का आरोप सही है तो निश्चित ही आरोपियों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही होना चाहिए. गलत खबर लगाने के मामले में भी कानूनी कार्रवाई के तमाम विकल्प खुले हैं, किन्तु कम से कम खाकी की इज्जत तो बख्श दो. इस तरह के कपड़ा-उतारू और ठेठ बाजारू आचरण की सभ्य समाज में कोई जगह नहीं है.
शिवराज सिंह चौहान ने थाना प्रभारी और एसएचओ को पहले लाइन हाजिर और आज सस्पेंड करने के आदेश दिए हैं. यह शुभ संकेत है कि सरकार इस तरह के आचरण पर सख्ती दिखा रही है. तस्वीर झूठ नहीं बोलती, इसलिए यह सच है कि कोतवाली में पत्रकारों के शरीर पर कपड़े नहीं थे. इसलिए अब यह सच भी सामने आना चाहिए कि कपड़े विधायक के कहने पर उतरवाए गए या फिर विधायक को खुश करने के लिए ही सीधी की पुलिस इस तरह अपनी पर उतर आयी थी. यह सत्य बहुत आवश्यक है, क्योंकि मामला केवल कानून-व्यवस्था का नहीं, बल्कि व्यवस्था से जुड़े उन चेहरों का भी है, जो मौजूदा आरोपों के घेरे में शिवराज सरकार की इमेज के साथ कतई मेल नहीं खा रहे हैं.

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