एनसीपी नेता शरद पवार दुविधा में हैं. इससे पहले जब वे ज्यादा परेशानी महसूस कर रहे थे तो गुजरात जाकर चुपचाप अमित शाह से मिले थे. तब भी उसकी ज्यादा जानकारी सामने नहीं आई थी पर कहा गया था कि उन्होंने केन्द्रीय एजेंसियों की जांच से अपने परिवार की सुरक्षा को प्राथमिकता दी थी और साथ ही अपनी पार्टी के नेताओं के लिये भी इसी प्रकार की सुरक्षा देने का आग्रह किया था. परिणाम में काफी समय तक यह सुरक्षा व्यवस्था चली भी. लेकिन राजनीति ने ऐसी करवट ली कि फिर से पवार पर शिकंजा कसने लगा. पवार को सुनने की हिम्मत भाजपा में किसी ने नहीं उठाई. इस बार नितिन गढकरी ने सिर्फ इतना भर किया कि मोदीजी से मुलाकात की व्यवस्था करवा दी.
शरद पवार का कहना है कि महाराष्ट्र के विकास कार्यो को लेकर बात की. उद्धव सरकार ठाकरे ने सरकार में आते ही सात लाख करोड़ की विकास योजनाएं रोक दी थी. मोदी जी की अहमदाबाद से मुंबई बुलेट ट्रेन योजना को ‘‘कछुआ चाल’’ में फंसा दिया उस स्थिति में कैसा विकास. कहा जा रहा है कि शरद पवार और उद्धव ठाकरे के अति निकटवर्ती संबंधियों तथा राजनीतिक सिपहसालारों पर ईडी के छापों और सीबीआई जांच ने उद्धव ठाकरे और शरद पवार की नींद उड़ा दी. हाल ही में संजय राउत के यहां पड़े ईडी के छापों के बाद तो सबको लगने लगा कि उद्धव सरकार की विदाई की बेला आ ही गई है.
जानकार मानकर चल रहे है कि छापों से राहत की उम्मीद शरद पवार को नहीं करनी चाहिये. उद्धव ठाकरे ऐसी उम्मीद करें तो ये मुंगेरीलाल के हसीन सपनो जैसा ही रहेगा. कारण यह है कि उद्धव के राजनीतिक विश्वासघात से भाजपा को काफी नुकसान उठाना पड़ा है जबकि इस आत्मघाती कदम के बाद मिले परिणामों से तो शिवसेना की तो जड़ें ही खत्म सी हो गई हैं. शरद पवार कितने चतुर नेता हैं यह किसी से छिपा नहीं है. वे मोदी की राह में 2024 तक कितने और कैसे कैसे कांटे बौ देंगे यह कोई नहीं बता सकता. इसलिये मोदीजी और अमित शाह की जोड़ी को लगता है कि शरद पवार की लगाम जरा ज्यादा कस कर रखनी होगी.
कहा यह जा रहा है कि शरद पवार उद्धव सरकार से समर्थन वापस लेकर भाजपा की सरकार बनाने का रास्ता खोल सकते हैं. पर इससे न भाजपा को ज्यादा लाभ मिलने वाला है न शरद पवार को इसलिये इस तर्क में ज्यादा दम नजर नहीं आ रही है. उद्धव सरकार गिरने की स्थिति में भाजपा शरद पवार का समर्थन लेने की भूल नहीं करना चाहेगी क्योंकि इसका आगे जाकर बुरा असर नजर आएगा. वहीं सरकार में शामिल होने या समर्थन देने से पवार की राजनीतिक हैसियत पर भारी चोट लगेगी. इसलिये शरद पवार भी न सरकार में शामिल होना चाहेंगे न समर्थन देंगे.
तो फिर होगा क्या शरद की दुविधा की चर्चाएं चलती रहेंगी और भाजपा भी महाराष्ट्र में उद्धव और पवार के साथ चूहे बिल्ली का खेल खेलती रहेगी.