कश्मीर फाइल में घुटता अब्दुल्ला का दम. (प्रकाश भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल). 25 मार्च.

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2022-03-25 07:23:34


कश्मीर फाइल में घुटता अब्दुल्ला का दम. (प्रकाश भटनागर, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल). 25 मार्च.

फारूक अब्दुल्ला की बौखलाहट उफान पर है. कश्मीर फाइल्स की झाड़-पोंछ से उठी धूल उन्हें शूल की तरह चुभ रही है. जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री को उस क्रूर दौर के सच से परहेज हो रहा है, जिसमें घाटी में रहने वाले असंख्य कश्मीरी पंडित मार डाले गए. उनकी महिलाओं के शरीर तथा आत्मा के साथ वो जुल्म किये गए, जिनकी स्मृति मात्र स्वतंत्र भारत के सबसे बड़े कलंक के रूप में हर सच्चे मनुष्य को सिहरन से भर देती है. नब्बे के दशक के वह अंतिम दिन, जब कश्मीर में रहने वाले हिन्दुओं ने अपने हिन्दू होने के गुनाह के सबसे बुरे दिन देखे.
अब्दुल्ला को इस सबके सिनेमा के माध्यम से जिक्र से आपत्ति है. इस भाव को वह तीन तरीके से प्रकट कर रहे हैं. उनका कहना है कि विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘‘दि कश्मीर फाइल्स’’ उनके खिलाफ नफरत भड़काने की साजिश है. हालांकि हकीकत और फिल्म, दोनों ही में यह किसी से नहीं छिपा है कि घाटी में उस  समय जो अनाचार हुए उनका तब सबसे अधिक फायदा स्थानीय राजनीतिक दलों को ही मिला.
अब्दुल्ला की दूसरी प्रतिक्रिया यह है कि कश्मीर में उस समय जो कुछ हुआ, उसकी एक आयोग बनाकर जांच की जाना चाहिए. यह बात और है कि फारूक अब्दुल्ला 7 नवंबर 1986 से 18 जनवरी 1990 तक मुख्यमंत्री थे. यह वो दौर था, जब कश्मीर धीरे-धीरे आतंकियों की गिरफ्त में जा रहा था और खुफिया एजेंसियों की चेतावनी के बावजूद हालात को संभालने की गंभीर कोशिश नहीं हुई. फरवरी 1986 में, दक्षिण कश्मीर में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हमले हुए.
कट्टरपंथियों की भीड़ ने कश्मीरी पंडितों की संपत्तियों और मंदिरों को लूटा या नष्ट कर दिया. किन्तु इसके तुरंत बाद हुए  चुनाव में अब्दुल्ला एक बार फिर मुख्यमंत्री बने. उन्होंने छह साल से अधिक समय तक शासन किया. बाद में उनके बेटे उमर अब्दुल्ला भी छह साल से अधिक समय तक के लिए मुख्यमंत्री रहे, लेकिन न पिता और न ही पुत्र ने कश्मीरी पंडितों के मामले पर किसी जांच या आयोग के लिए कोई कदम उठाए.
नवंबर 1986 में राजीव गांधी और फारूक अब्दुल्ला ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और बाद में मुख्यमंत्री के रूप में फारूख को बहाल कर दिया गया. यह वह अवधि थी, जिसने नरसंहार को देखा. 1986-1989 की अवधि कश्मीर के इतिहास में महत्वपूर्ण है. इसे कैसे नजरअंदाज किया जा सकता है. पलायन रातोंरात नहीं हुआ. इसके लिए पूरी तैयारी थी. कह सकते हैं कि राजीव गांधी और अब्दुल्ला ने इस समझौते से देश को भ्रमित किया. कह सकते हैं कि अब्दुल्ला अक्षम थे, घाटी में जो कुछ हो रहा था, उसमें उनकी सहमति थी. मुख्यमंत्री होते हुए वे घटनाओं की वास्तविकताओं से अनभिज्ञ कैसे हो सकते थे. वह इसमें पूरी तरह से शामिल थे, सब कुछ जानते थे और पंडितों के साथ अत्याचारों को होने दिया.
अब्दुल्ला ने यह भी कहा है कि यदि कश्मीरी पंडितों के साथ हुई ज्यादती के लिए वह दोषी पाए गए, तो इसके लिए वह फांसी की सजा पाने के  लिए तैयार हैं. कश्मीरी पंडितों को तो लगता ही है कि अगर फारूक अब्दुल्ला ने मुख्यमंत्री रहते हुए कड़े कदम उठाए होते, तो कश्मीर आतंकवाद की चपेट में नहीं आता. न अल्पसंख्यकों पर अत्याचार होते और ना ही उन्हें जबरन घाटी से बाहर किया जाता. वे अब जवाब मांग रहे हैं और चाहते हैं कि एक न्यायिक आयोग का गठन किया जाए और फारूक अब्दुल्ला की जांच की जाए.
यहां इस तथ्य को ध्यान  रखना होगा कि आतंकवाद तथा अलगाववाद के नंगे नाच वाले इस दौर में अब्दुल्ला सहित उनकी पूरी नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी राज्य के लोगों को उनके हाल पर छोड़कर कश्मीर से भाग खड़ी हुई थी. फारूक तो प्रदेश में विधानसभा के वर्ष 1996 के चुनाव के पहले तक  लगभग पूरे समय लंदन में जाकर  छिप गए थे. उनकी पार्टी के बाकी सभी लोग जम्मू में जा बसे थे. तो क्या यह पलायन इस प्रदेश में आतंकवादियों और अलगाववादियों को वॉकओवर देने जैसा कायराना कृत्य नहीं था? क्या यह किसी अपराध से कम कहा जा सकता है? वाकई इस अपराध की सजा फांसी से कम होनी भी नहीं चाहिए.
कश्मीरी पंडितों के साथ हुए अमानुषिक व्यवहार के सामने आने से देश में एक नयी विचार प्रक्रिया आरंभ हुई है. विशेषकर नयी पीढ़ी के लिए इस फिल्म के रूप में ऐसा सच सामने आया है, जो उन पर अब तक थोपे गए प्रायोजित इतिहास की तलहटी में छिपाई गयी गंदगी को ऊपर ले आया है. अब्दुल्ला सहित मेहबूबा मुफ़्ती आदि की तकलीफ यह भी है कि यह फिल्म ऐसे समय हर तरफ छाई हुई है, जब घाटी में विधानसभा चुनाव की आहट फिर तेज हो गयी है. जो फिल्म सारे देश की सोच को प्रभावित कर रही हो, उसका राज्य के चुनाव पर भी असर होना तय है. शायद यही कारण है कि अब्दुल्ला ‘‘दि कश्मीर फाइल्स’’ के भीतर खुद का दम घुटता महसूस कर रहे हैं.

Contact:
Editor
ओमप्रकाश गौड़ (वरिष्ठ पत्रकार)
Mobile: +91 9926453700
Whatsapp: +91 7999619895
Email:gaur.omprakash@gmail.com
प्रकाशन
Latest Videos
जम्मू कश्मीर में भाजपा की वापसी

बातचीत अभी बाकी है कांग्रेस और प्रशांत किशोर की, अभी इंटरवल है, फिल्म अभी बाकी है.

Search
Recent News
Leave a Comment: