फर्जीवाड़ा है अरविंद केजरीवाल का ‘‘दिल्ली मॉडल’’. 12 मार्च.

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-03-12 08:09:09


फर्जीवाड़ा है अरविंद केजरीवाल का ‘‘दिल्ली मॉडल’’. 12 मार्च.

पंजाब में आप की आश्चर्यजनक जीत को दिल्ली मॉडल की जीत बताया जा रहा है. बताने वाले दिल्ली मॉडल की बारीकी से पड़ताल करेंगे तो पाएंगे की यह मॉडल फर्जीवाड़े की बुनियाद पर खड़ा है. इसकी आप की जीत में अहम भूमिका जरूर है पर यह जीत का एकमात्र कारण नहीं है.
जीत का सबसे बड़ा कारण है कांग्रेस की अंदरूनी खींचतान और अकाली दल की जड़ों को खा चुकी दीमक.
यही कारण है कि पंजाब के जिस मालवा को अकाली दल  का गढ़ कहा जाता था वहां रिकार्ड संख्या में आप जीती. बाकी दो हिस्सों में उसे ज्यादा बढ़त नहीं है. मालवा की रिकार्ड जीत ने ही आप की जीत को चमत्कारिक जीत बनाया.
नवजोतसिंह सिद्धू को सोनिया गांधी ने अमरिंदरसिंह को राजनीतिक तौर पर ठिकाने लगाने में समर्थ व्यक्ति देखकर ही भेजा था क्योंकि अमरिंदरसिंह गांधी परिवार की आर्थिक मांगों को पूरा नहीं करते थे. क्योंकि बिना निजी तौर पर भ्रष्टाचार किये अमरिंदर उन्हें पूरा कर नहीं सकते थे और वे इस भ्रष्टाचार के दाग और उसके कारण लगने वाले आरोपों को अपने पर लेने के लिये तैयार नहीं थे. स्वर्गीय राजीव गांधी से रही निकटता से उपजा संकोच सोनिया गांधी को अमरिंदर के खिलाफ कदम उठाने से रोक देता था. अमरिंदर और सिद्धू की लड़ाई की पृष्ठभूमि को देखते हुए सोनिया गांधी को कोई निर्देश देने की जरूरत ही नहीं पड़ी. यह बात और है कि सिद्धू ने कांग्रेस की ईंट से ईंट बजा दी.
वहीं चरणजीतसिंह चन्नी का चयन एक दलित के तौर पर कागज पर अच्छा नजर आ रहा था. पर यह बात सोनिया गांधी थी कि वह अब हिंदू सिख दलित नहीं रह गये हैं वे अब ईसाई है. ईसाई धर्म प्रचार और धर्मातंरण में सहायक है. जो हर ईसाई के दिल से जुड़ी एक अव्यक्त इच्छा है. दलित चन्नी सिर्फ कागज पर है. चन्नी ने कभी दलित नेता के तौर पर कोई काम किया हो ऐसा कभी सामने नहीं आया. वहीं दलित मुख्यमंत्री पंजाब की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाले जट्ट सिखों को पसंद नहीं आया. जो चन्नी की दोनों सीटों  पर हार के तौर पर सामने आया.
किसान आंदोलन का प्रभाव पंजाब में सबसे ज्यादा था और राजनीति में उतरे आंदोलन के नेताओं में से सिर्फ राजोवाल हार ने साथ साथ अपनी जमानत बचा पाए. बाकी सबकी जमानतें भी जब्त हो गई.
कांग्रेस और अकालियों के दीवालियापन के अलावा पंजाब के लोगों की एक आदत भी आप के काम आई जिसकी ओर एक सिख राजनीतिक विश्लेषक ने इशारा किया है. उनका कहना है कि पंजाब के लोग नई नई चीजों को एक बार चखने और अपनाने के लिये हमेशा तैयार रहते हैं. फिर चाहे जहर ही क्यों न हो, वे उसे भी चख कर देखेंगे कि वह तीखा है या खट्टा अथवा मीठा आदि. इसी आदत ने परिवर्तन की बयार के बीच पंजाबियों को आप को चैक करने का अवसर दे दिया. यह भी चमत्कारिक जीत का एक और कारण है.
जहां तक दिल्ली मॉडल का सवाल है तो पहले दिल्ली में हाल की  अरविंद केजरीवाल की वहां की चमत्कारी जीत को पहले परख लें. अरविंद केजरीवाल ने एकजुट मुस्लिम वोटों और हिंदू वोटों के विभाजन के सहारे चुनाव जीता है. वहीं केजरीवाल के चालाकी भरे साफ्ट हिंदूत्व ने भी हिंदुओं को भ्रमित करने में सहायता दी.  इसमें सीमित मात्रा में दी जाने वाली फ्री बिजली और पानी की सीमित भूमिका है.
रहा सवाल दिल्ली मॉडल का तो हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और जैसी स्थिति है. कुछ स्कूलों को चमका दिया और इसे शिक्षा में सफलता बता दी. मोहल्ला क्लीनिक शुरू में तो दिखे पर धीरे धीरे करीब करीब सब बंद हो गये. बस कुछ ही का अस्तित्व बचा है. वे भी निष्प्रभावी जैसे हैं. बार बार पूछने पर भी केजरीवाल यह नहीं बताते कि उन्होंने कितने नये स्कूल और कालेज खोले, कितनों के भवन बनवाए, कितने नये बड़े अस्पताल खोले, कितनी सड़कें बनाई.
पर जो भी है दिल्ली मॉडल की परीक्षा तो पंजाब में होगी जहां सरकार का खजाना तो खाली है ही, रिकार्ड कर्जे में भी डूबा है. भ्रष्टाचार कम करके वे कितना पैसा बना पाएंगे यह भी पूछा जा सकता है. फिर नशे में डूबे पंजाब को उसकी गिरफ्त में डूबे पंजाब को दुकान दुकान पर शराब बेचने की छूट देने के दिल्ली शराब मॉडल को अपना कर कैसे बचाएंगे, यह बताना भी मुश्किल काम है.
फिर पिछले चुनाव में ही उनका मौका हाथ से इसलिये निकल गया था कि उनके खालिस्तानियों से मेलजोल के संबंध उजागर  हो गये थे. तब भाजपा और आरएसएस ने अपने वोट अमरिंदर को डलवा कर कांग्रेस की सरकार बनवा दी थी. पर इस बार ऐसी स्थिति नहीं थी इसलिये इसलिये वह काम भी नहीं हो पाया और आप चमत्कारी जीत का दावेदार बन गई.
अमरिंदर स्वीकार कर चुके हैं कि उन्होंने फोर्ड फाउंडेशन से पैसा लिया था. फोर्ड फाउंडेशन को दुनियाभर में अमेरिकी खुफिया एजेंसी का फ्रंट आरगेनाइजेश माना जाता है. खालिस्तानियों से निकटता तो पिछली बार पता चल ही गई थी. वे अपने को स्वीट आतंकवादी बताने से पीछे नहीं हटे. लोग कहते हैं कि अरविंद केजरीवाल ने खालिस्तानियों का खुला समर्थन नहीं किया तो आज तक कभी भी खालिस्तानियों के विरोध में कोई बात नहीं कही है. ऐसे में खालिस्तानियों पर अंकुश कमजोर पड़ा तो मुश्किलें बढ़ सकती हैं.  
खालिस्तान को पाकिस्तान, चीन के साथ साथ कनाडा, आस्ट्रेलिया, आदि देशों  मे कई माध्यमों से भरपूर समर्थन मिल रहा है. इन देशों से अरविंद केजरीवाल की पार्टी को खूब चंदा आया है यह बात भी किसी से छिपी नहीं है.
एक और दिलचस्प बात बताते हुए कई लोग देश की अदालतों का एक फैसला बता रहे हैं कि खालिस्तानियों के समर्थन में या पाकिस्तान के समर्थन में नारे लगाना  कोई गंभीर अपराध नहीं है. इन पर देशद्रोह आरोप लगाना अदालतों में टिकता नहीं है. इन पर अंकुश लगाने के लिये दूसरी धाराओं का प्रयोग प्रशासन को करना पड़ता है जो बहुत कम प्रभावशाली होता है. पंजाब में शातिपूर्ण जलसों और जुलूसों में खालिस्तान समर्थक नारे लगे तो अलगाववाद की भावना के बढ़ने और पुख्ता होने से कैसे रोका जाएगा यह सभी के लिये चिंता का विषय तब तक बना रहेगा जब तक पंजाब सरकार के सामने इस प्रकार का कोई ठोस मामला नहीं आता और उसके जवाब में पंजाब सरकार क्या कदम उठाती है, उसी से सारा मामला तय होगा.
पंजाब की चमत्कारी जीत आप में भी तो संकट पैदा करेगी. एक पूर्ण राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान को कब तक और कैसे कंट्रोल करेंगे केजरीवाल यह देखना दिलचस्प रहेगा. मान उनकी कब तक सुनेंगे यह भी देखना होगा क्योंकि मान ने चुनाव के दौरान की केजरीवाल को मजबूर कर दिया था कि वे (केजरीवाल) उन्हें (मान) मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करें. केजरीवाल चाहेंगे तो भी मान की जगह अपना कोई आदमी बाद में ही सही आसानी से मुख्यमंत्री नही बनवा पाएंगे.

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