7 फरवरी. राकेश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल. अब भारत में बजट के साथ एक नया विषय चर्चा में आ गया है, विषय डिजिटल मुद्रा है. यूँ तो क्रिप्टो या डिजिटल करेंसी को लेकर दुनियाभर में दीवानगी है, और भारत में भी एक अप्रैल से शुरू होने वाले अगले वित्त वर्ष में इसका देशी संस्करण पेश किया जाएगा. जो भौतिक रूप से प्रचलित मुद्रा के डिजिटल रूप को प्रतिबिंबित करेगा. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के मुताबिक डिजिटल रुपया नामक यह मुद्रा रिजर्व बैंक की ओर से डिजिटल रूप में जारी किया जाएगा और इसे भौतिक मुद्रा के साथ बदला जा सकेगा. इस केंद्रीय बैंक की डिजिटल करेंसी (सीबीडीसी) को नियंत्रित करने वाले विनियमन को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है. सीबीडीटी एक डिजिटल या आभासी मुद्रा है, लेकिन इसकी तुलना निजी आभासी मुद्राओं या क्रिप्टो करेंसी से नहीं की जा सकती है, जिनका चलन पिछले एक दशक में तेजी से बढ़ा है. निजी डिजिटल मुद्राएं किसी भी व्यक्ति की देनदारियों का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं, क्योंकि उनका कोई जारीकर्ता नहीं है। वे निश्चित रूप से मुद्रा नहीं हैं.
डिजिटल रुपये से फाइनैंशल टेक्नॉलजी की दुनिया में बड़े बदलाव आएंगे. सरकार को उम्मीद है कि कोई भी व्यक्ति ई-रुपया के बदले कैश यानी नकदी हासिल कर सकेगा. डिजिटल करंसी से नोटों की छपाई, प्रबंधन और लाने ले जाने पर जो खर्च होता है, उसमें भी बचत होगी. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले बजट भाषण में कहा था कि अगले वित्त वर्ष में रिजर्व बैंक डिजिटल रुपया लाएगा. वैसे, यह कोई नया प्रस्ताव नहीं है. २०१७ में सरकार की एक उच्चस्तरीय समिति ने भी रिजर्व बैंक को सेंटल बैंक डिजिटल करंसी (सीबीडीसी) लाने का सुझाव दिया था. इधर, दुनिया के कई देशों में केंद्रीय बैंक डिजिटल करंसी को लेकर प्रयोग कर रहे हैं. इनमें चीन, जापान और स्वीडन जैसे देश शामिल हैं. बहामाज और नाइजीरिया ने तो अपने सीबीडीसी लॉन्च भी कर दिए हैं. इसके साथ ही वैश्विक स्तर पर सीबीडीसी के फायदे और नुकसान को लेकर बहस भी चल रही है. इसका सबसे बड़ा फायदा तो यही है कि लोगों को पेमेंट का सस्ता जरिया मिलेगा. उन लोगों को खासतौर पर फायदा होगा, जिनकी पहुंच बैंकों तक नहीं है.
दूसरा लाभ यह है कि इससे काले धन पर रोक लगेगी. डिजिटल पेमेंट को ट्रैक किया जा सकता है. इसलिए उसे टैक्स के दायरे में लाने में मदद मिलेगी. सरकार सीबीडीसी डिजिटल वॉलेट का इस्तेमाल डायरेक्ट ट्रांसफर के लिए भी कर सकती है. इन फायदों के साथ डिजिटल रुपये को लेकर कई सवाल भी हैं. पहला सवाल तो यही है कि अगर रिजर्व बैंक ऐसी करंसी लाता है तो क्या निजी क्षेत्र की पेमेंट कंपनियां उससे मुकाबला कर पाएंगी क्योंकि लोग सीबीडीसी पर अधिक भरोसा जताएंगे? भारत में इधर निजी क्षेत्र में पेमेंट इनोवेशन तेजी से हुए हैं. सरकार ने यूपीआई के जरिये उन्हें एक अहम प्लैटफॉर्म मुहैया कराया है. डिजिटल रुपये को लेकर रिजर्व बैंक को यह सुनिश्चित करना होगा कि उससे निजी फाइनैंशल टेक्नॉलजी सेग्मेंट पर असर ना हो.
दूसरा सवाल यह कि अगर सीबीडीसी एकाउंट्स को बैंक खातों से सुरक्षित माना गया तो बैंकों में डिपॉजिट पर बुरा असर पड़ेगा. इससे मौद्रिक नीति भी प्रभावित हो सकती है, जो केंद्रीय बैंक का मुख्य काम है. रिजर्व बैंक और सरकार को इसका जवाब भी तलाशना होगा. देश में अभी ऐसा डिजिटल रिटेल पेमेंट सिस्टम है, जो दिन-रात काम करता है. आरबीआई ने दिसंबर 2018 से जनवरी 2019 के बीच 6 शहरों में रिटेल पेमेंट को लेकर सर्वे किया था. इससे पता चला कि 500 रुपये तक का भुगतान लोग नकद में करना पसंद करते हैं, वहीं ऊंची रकम के लिए डिजिटल माध्यम को तेजी से अपनाया जा रहा है. पिछले पांच साल में डिजिटल पेमेंट में 50 प्रतिशत से अधिक की रफ्तार से बढ़ोतरी हो रही है. ऐसी स्थिति में सीबीडीसी लाने का मकसद क्या है, यह स्पष्ट किया जाना चाहिए. साथ ही, इसे लाने से पहले सारे पहलुओं पर गौर करना चाहिए. इसमें कोई जल्दबाजी नहीं की जानी चाहिए.