24 जनवरी. केन्द्र सरकार आईएएस अधिकारियों की राज्य से केन्द्र में सीमित समय के लिये की जाने वाली पदस्थापना पर नियम बदलने जा रही है. इसका राज्य विरोध कर रहे हैं. वे इसे देश के संघीय ढ़ांचे के खिलाफ बता रहे हैं. अभी केन्द्र राज्यों से अफसरों के नाम मांगता और कई बार कई अफसर स्वयं भी केन्द्र में जाने की इच्छा जताते थे. यह भी सच है कि केन्द्र अपने स्तर पर किसी खास अफसर की मांग भी रखता था. लेकिन सभी स्थितियों में राज्यों की सहमति जरूरी रहती थी तभी कोई अफसर केन्द्र में आ सकता था. या कहें लाया जा सकता था. लेकिन राज्य सरकारें खासकर विपक्षी सरकारें इसमें रोड़े अटकाती थी और सहमति नहीं देती थी. इसका कारण राजनीतिक होता था और निजी भी. इससे केन्द्र में आईएएस अफसरों की कमी हो रही थी. इसमें यह भी देखा जा रहा था कि सीनियर अफसरों को तो फिर भी राज्य सरकारें भेज रही थी जो ज्वाइंट सेक्रेट्री या उससे भी उंचे पदों पर काम कर सके. पर ऐसे अफसरों की ज्यादा कमी हो रही थी जो वरिष्ठता क्रम मे जरा कम हों और केन्द्र में निचली पायदान डिप्टी सेक्रट्री या इससे जरा उपर वाले पदों पर काम कर सकें. इस स्तर के अफसरों की केन्द्र में जाकर बाबूगिरी करने में कम रूचि देखी जा रही थी. क्योंकि ये वरिष्ठता में भले ही थोड़े कम हों पर वे राजनीतिक तिकड़मों के बल पर खूब फलफूल रहे होते हैं. इसका राजनीतिक फायदा राज्यों के सत्तारूढ दल के नेताओं को भी मिलता था इस कारण से राज्य सरकारें इन्हें भेजने में आनाकानी ज्यादा ही कर रही थीं.
राज्यों की यह राजनीति केन्द्र के कामों पर बुरा असर तो डाल ही रही थी उनका रवैया भी तो देश के फेडरल स्ट्रक्चर के भी तो खिलाफ था. हां राज्य सरकारों को राजनीतिक तौर पर केन्द्र को नीचा दिखाने में कुछ ज्यादा ही मजा आ रहा था.
अब मोदी सरकार ने रास्ता निकाला कि वह राज्यों की सहमति का प्रावधान ही खत्म करने जा रही है ंतो राज्यों के मुख्यमंत्री खासकर भाजपा विरोधी मुख्यमंत्री बिलबिला रहे हैं. इस सुधार को देश के फेडरल स्ट्रक्चर के खिलाफ बता रहे हैं.
जब इस बारे में नियम बनाते समय शायद तब के लोगों को अंदाज नहीं रहा होगा कि देश में ममता बनर्जी जैसी मुख्यमंत्री भी आयेंगी जो केन्द्र के हर काम में अड़गा डालने को ही अपनी राजनीतिक सफलता मान लेंगी. केन्द्र हाथ पर हाथ धर कर देखता रहेगा जैसे बंगाल के विधानसभा चुनाव के दौरान और उसके बाद भी देखता रहा. लेकिन समस्या होती है तो समाधान भी देर से ही सही मिल जाता है. मोदी और अमित शाह की जोड़ी हो तो जरा कम देरी से मिलता है.
तो अब क्यों परेशान हैं ममता दीदी? दीदी के लिये तो फेडरल स्ट्रक्चर एक बहाना था जिससे मोदी को खिजाना था. पर जब दाव उल्टा पड़ गया तो कोर्इ्र क्या कर सकता है. हां मामला अदालत में तो जाना तय है तब की तब देखी जाएगी. अगर अंतरिम स्थगन नहीं मिला तो ममता दीदी क्या करेंगी यह देखना दिलचस्प रहेगा.