केंद्र और राज्य के बीच आईएएस प्रतिनियुक्ति को लेकर विवाद क्यों?

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2022-01-24 01:42:25


केंद्र और राज्य के बीच आईएएस प्रतिनियुक्ति को लेकर विवाद क्यों?

24 जनवरी. सरयूसुत मिश्र. भाजपा की केंद्र सरकार आईएएस अफसरों की कमी से जूझ रही हैद्य ऑल इंडिया सर्विस के आईएएस, आईपीएस और  आईएफएस अफसरों का रिक्रूटमेंट केंद्र सरकार करती है, राज्य कैडर में आवंटित अफसर राज्यों के नियंत्रण में काम करते हैं. इन अफसरों की नियुक्ति, पदोन्नति, बर्खास्तगी और अनुशासनात्मक कार्यवाही केंद्र सरकार के अधीन होती है. केंद्र शासन में पदस्थ सभी ऑल इंडिया सर्विसेज के अधिकारी प्रतिनियुक्ति पर होते हैं. ऑल इंडिया रिक्रूटमेंट रूल्स के अंतर्गत राज्य केडर से केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर पदस्थापना के विधिवत नियम और प्रक्रिया निर्धारित हैं. केवल केंद्र शासित प्रदेशों में अखिल भारतीय सेवाओं का केडर केंद्र के अधीन होता है.  
राज्यों में राजनीतिक हस्तक्षेप के कारण रिक्रूटमेंट रूल्स का पालन करते हुए अफसरों को केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर भेजने में कोताही की जाती है, जो धीरे-धीरे बढ़ते हुए केंद्र स्तर पर अफसरों की कमी की समस्या के रूप में  में खड़ी हो गई है.
केंद्र सरकार ने इस समस्या से निपटने के लिए ऑल इंडिया रिक्रूटमेंट रूल्स  में बदलाव का प्रस्ताव किया हैद्य इस प्रस्ताव के संबंध में केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय ने सभी मुख्य सचिवों को पत्र भेजा है.
नियमों में जो संशोधन का प्रस्ताव दिया गया है, उसमें यह व्यवस्था प्रस्तावित की गई है कि वर्ष के प्रारंभ में अखिल भारतीय सेवाओं के अधिकारियों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति का रिज़र्व तैयार कर लिया जाएगा. राज्य सरकार केंद्र में प्रतिनियुक्ति पर भेजने के लिए अधिकारियों की एक मुश्त सूची केंद्र को भेजेंगे. केंद्र आवश्यकतानुसार इस सूची से अधिकारियों को प्रतिनियुक्ति पर ले सकेगा. इसके लिए केंद्र को राज्य की सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं होगी. इस प्रस्ताव को कई राज्य सरकारें अपने अधिकारों में हस्तक्षेप मानकर विरोध कर रही हैं. खास करके गैर बीजेपी शासित राज्यों के द्वारा विरोध की आवाज उठाई गई है. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री को इस संबंध में दो पत्र लिखे हैं. जिसमें उन्होंने आरोप लगाया है कि राज्य सरकार इस संशोधन के माध्यम से राज्यों के अधिकार को सीमित कर, राज्य के अधिकारियों पर अपना नियंत्रण बढ़ाना चाहती है.
भारत में ब्यूरोक्रेटिक स्ट्रक्चर जो कायम है, उसके तहत  ऑल इंडिया सर्विसेज की प्रमुख सेवाओं आईएएस, आईपीएस और आईएफएस का कोई केंद्र का कैडर नहीं होता. सारे अधिकारी विभिन्न राज्यों के कैडर में होते हैं. केंद्र में राज्यों से प्रतिनियुक्ति पर अफसरों की पदस्थापना होती है.
इस तरह से राज्य के कैडर के अधिकारी ही केंद्र सरकार में काम करते हैं. शायद संघीय ढांचे का यह प्रक्टिकल स्वरूप है. जब कार्यपालिका के एग्जीक्यूटिव नियुक्त केंद्र से किए जाते हैं और काम राज्य के ढाँचे  में करते हैं, राज्य कैडर के अधिकारी ही केंद्रीय शासन में एक्जिक्यूटिव की भूमिका प्रतिनियुक्ति पर जाकर निभाते हैं.
नियमों में संशोधन के प्रस्ताव से केंद्र और राज्य के बीच में जो विवाद पैदा हुआ है, उसका कारण केंद्र द्वारा यह बताया जा रहा है कि केंद्र में अफसरों की कमी है. भारत सरकार की शिकायत यह है कि राज्य केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए पर्याप्त अधिकारियों की मंजूरी नहीं दे रहे हैं. केंद्र का यह भी कहना है कि केंद्रीय स्तर पर पर्याप्त संख्या में अधिकारियों के ना होने से, केन्द्रीय मंत्रालयों और विभागों का कामकाज प्रभावित होता है. साथ ही राष्ट्रीय सुरक्षा, आपदा प्रबंधन और प्रमुख योजनाओं और कार्यक्रमों के संचालन के लिए केंद्र में अधिकारियों की अधिक आवश्यकता प्रतीत हो रही है.
अखिल भारतीय सेवा के आईएएस, आईपीएस और आईएफएस अधिकारियों की कमी, वास्तविक रुप से तो समझ से परे लगती है. हर राज्य में कैडर के अलावा एक्स केडर में सैकड़ों  पद बनाकर अधिकारियों को पदोन्नति देकर समायोजित किया जाता है. आईपीएस अफसरों को पदोन्नति देने के लिए बढ़ाये गये पदों का औचित्य इससे समझा जा सकता है कि एडीजी स्तर के अधिकारी कितनी बड़ी संख्या में पुलिस मुख्यालय में पदस्थ हैं. इसके साथ ही विभागों की संख्या भी अनावश्यक रूप से बढ़ा दी जाती है. नए-नए विभाग इन अफसरों को एडजस्ट करने के लिए बनाए जाते हैं. जो तकनीकी पद हैं, तकनीकी काम वाले वाले विभाग हैं वहां भी किसी न किसी प्रकार से आईएएस अधिकारियों को पदस्थ करने का कुचक्र हमेशा रचा जाता है. चाहे हेल्थ सेक्टर हो, एजुकेशन हो या अन्य विशेषज्ञता वाले क्षेत्र, सभी जगह ऑल इंडिया सर्विसेस के अधिकारी कब्जा जमाए हुए हैं.
देश के ब्यूरोक्रेटिक स्ट्रक्चर में रिफार्म की आवश्यकता स्पष्ट रूप से लगती है. केंद्र और सभी राज्यों में ऑल इंडिया सर्विसेज के स्वीकृत पदों और वास्तव में एक्स कैडर के रूप में बढ़ाए गए पदों, वर्तमान में उनकी आवश्यकता, परफारमेंस ऑडिट, टेक्निकल पदों पर परफॉर्मेंस एक्सपीरियंस जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर, व्यापक चिंतन मनन कर, प्रशासनिक सुधार की बेहद जरूरत है.
ऑल इंडिया सर्विस के अधिकारियों के कामकाज में राजनीतिक हस्तक्षेप को भी न्यूनतम किए जाने की आवश्यकता है. ऑल इंडिया सर्विसेज के अफसरों को मिलने वाले वेतन भत्ते में सुधार भी जरूरी लगता है. इन सेवाओं के अधिकारियों के कैरियर प्रोग्रेशन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है. इस तरीके के रिफार्म किए जाएंगे तो ऑल इंडिया सर्विस में लेटरल एंट्री से भी अधिकारियों की कमी को दूर किया जा सकता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस संबंध में प्रयास भी किए हैं. ऑल इंडिया सर्विसेज के अधिकारियों के काम के बेहतर एटमोस्फियर बनाने से इन सेवाओं में कारपोरेट, रिसर्च और अकेडमिक क्षेत्रों से, विशेषज्ञों को लाया जा सकता है. राज्यों को विभागों की संरचना पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. विभागों की संख्या कम की जानी चाहिए. निगम, निकाय और संस्थाएं जिस तरह से राजनीतिक उद्देश्यों से बढ़ाई और बनाई जाती हैं, वह भी गुड गवर्नेंस पर वित्तीय बोझ बढाने के अलावा, कोई उपयोगिता सिद्ध नहीं कर पाती.
आईएएस अफसरों के लिए निर्धारित पदों पर पहले भी कई राजनीतिक लोगों ने, अन्य सेवाओं के अधिकारियों की नियुक्ति की थी, मायावती ने अपने मुख्यमंत्री काल में एविएशन सेक्टर के अफसर शशांक शेखर सिंह को अपना प्रमुख सचिव बनाया था, इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में रमन सिंह ने रेवेन्यू सर्विसेस के अमन सिंह को अपना पीएस नियुक्त किया था.
अफसरों की केंद्रीय प्रतिनियुक्ति के लिए नियमों में संशोधन के प्रस्ताव पर केंद्र और राज्य में टकराहट देश हित में नहीं होगा. रिफार्म कर ऐसी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है.
सहयोग -  वेबपोर्टल न्यूज पुराण भोपाल

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