22 जनवरी.सुरेश शर्मा. यूपी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की भूमिका कितनी है इसको लेकर अभी तक कोई चर्चा नहीं हो रही है. सर्वे की बात हो या मीडिया में होने वाले अन्य प्रकार के आकंलन, कांग्रेस कहीं भी चर्चा में नहीं है. चर्चा तो बसपा की भी नहीं हो रही है. इसके बाद भी कांग्रेस हाथ-पांव मारती हुई दिखाई जरूर दे रही है. लडक़ी हूं लड़ सकती हूं जैसा नारा देकर यूपी में अपनी पार्टी को चर्चा में लाने का प्रयास किया गया. महिलाओं को 40 प्रतिशत टिकिट देने की बात पर महिलाओं को आकर्षित करने की योजना हो फिर 20 लाख रोजगार देने का लालच देकर तेजस्वी की भांति युवाओं को आकर्षित करने की योजना हो कांग्रेस हारी हुई बाजी पलटने का प्रयास कर रही है. अब तो एक ऐसी घटना हो गई जो सबको चकित कर रही है. प्रियंका वाड्रा ने खुद को ही यूपी में चेहरा घोषित कर लिया. आमतौर पर इस प्रकार की घोषणा कोई दूसरा व्यक्ति या पार्टी का प्रमुख करता है. लेकिन भाई-बहन ने खुद ही मजमा जमाया और खुद को ही बादशाह घोषित कर लिया. जिस तरह घोषित किया वह भी अजीब था. केजरीवाल ने जिस प्रकार से अपने नेताओं को महिमा मंडित किया और नाम का एलान किया कम से कम वैसा ही तरीका कांग्रेस अपना लेती. लेकिन सवाल आया और प्रियंका खुद ही बन गई मुख्यमंत्री का चेहरा?
पिछली विधानसभा में कांग्रेस के सात विधायक थे. इसमें दो तो भाजपा में चले गये. अबकी बार क्या कांग्रेस का नेतृत्व सीधे सरकार बनाने की मंशा पाल बैठा है? राजनीतिक प्रयास तो करना चाहिए लेकिन जब कहीं चर्चा में नहीं हैं तब चेहरा घोषित करना कितनी राजनीतिक समझदारी है. पिछली बार शीला दीक्षित को यूपी में चेहरा घोषित किया गया था इस बार खुद प्रियंका बन गईं. शीला के नाम पर 7 विधायक जीते थे प्रियंका के नाम पर कितने जीतेंगे पता नहीं? राजनीति अवधारणाओं का खेल है. अखिलेश हालांकि अकेले भाजपा से लड़ रहे हैं इसके बाद भी ड्रामा दिन भर भीड़ का करते हैं. योगी जी चेहरा घोषित हैं लेकिन केन्द्र-राज्य के साथ अपने सहयोगियों की भीड़ दिखाते हैं. कांग्रेस ऐसी पार्टी है जिसमें दोनों भाई-बहिन ही सब जगह मिलते हैं। मानो पार्टी का इतिहास इन दो परिजनों तक आकर सिमट गया हो। यूपी ही क्या पूरे देश का नेता ही कांग्रेस के केंप से रवाना हो गया है? युद्ध हो या चुनाव नेताओं (सैनिकों) का जमावड़ा तो दिखाना ही पड़ता है. लेकिन कांग्रेस खाली है.
यह भी अपने आप में विचार करने का पहलु है. क्या कांग्रेस नेतृत्व ने देश में अपनी कमजोरी को स्वीकार कर लिया है? जिस खानदान ने केवल प्रधानमंत्री ही पैदा किये हैं वहां अब मुख्यमंत्री बनने का मानस बना लिया है? वह भी ऐसी स्थिति में जब न तो पार्टी का जनाधार ही शेष है और न ही कहीं से कोई संभावना ही दिखाई दे रही है. यही सवाल इस समय सबके जहन में है कि प्रियंका ने खुद को यूपी में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है या फिर चुनाव में अगुवाई का चेहरा? जो भी हो कांग्रेस का ऐसा निर्णय होगा यह तो समझने में बहुत समय लग रहा है. पंजाब में सरकार है वहां पर समय देने की बजाए यूपी में इतनी मेहनत भी समझ से परे दिखाई दे रही है. चलों कोई बात नहीं प्रियंका वाड्रा सीएम के सपने में अधिक प्रचार जरूर करेंगी.