‘सामाजिक’ असन्तुलन पर बड़ी चिंता है ‘सुराना’?

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2022-01-21 02:13:28


‘सामाजिक’ असन्तुलन पर बड़ी चिंता है ‘सुराना’?

20 जनवरी सुरेश शर्मा वरिष्ठ पत्रकार भोपाल. यह आरोप लगातार सुना तो जाता रहा है कि जहां भी सामाजिक असन्तुलन हुआ है और मुस्लिम समाज की आबादी अपेक्षा से अधिक हो गई है वहां हिन्दू समाज के धार्मिक मामले हों या सामाजिक बाधित करके उन्हें पलायन के लिए मजबूर किया जाता रहा है. कैराना का मामला हम सबकी आंखों के सामने था. राज्यों की बात तो इसलिए नहीं जा रही है क्योंकि कश्मीर में हिन्दूओं का पलायन पाक की साजिश के रूप में भी देखा जाता था. फिर भी उस समय यह जरूर कहा गया कि कांग्रेस की सरकार है इसलिए इतना बड़ा पलायन हो गया और सरकार ने कोई सुध लेने की कौशिश नहीं की. जिस गुलाम नवी आजाद की विदाई पर प्रधानमंत्री रोये थे उस आजाद ने भी कुछ नहीं किया. ऐसे में यह सोचते हुए घबराहट होती है कि यदि आज प्रदेश में कमलनाथ की सरकार होती तो रतलाम जिले का सुराना गांव किस हालत में होता? क्योंकि कमलनाथ साहब का एक वीडियो वायरल हुआ था जिसमें मुसलमानों को एक साथ वोटे देने की बात कही जा रही थी. यह शिवराज सरकार है और नरोत्तम मिश्रा प्रदेश के गृहमंत्रालय की कमान संभाले हैं. सुबह समाचार छपता है और दिन में कार्यवाही हो जाती है. लेकिन वहां की जानकारी समाचार पत्रों से इतर मिलती और कार्यवाही होती तब थी कोई बात?
खैर! जो हुआ वह भी त्वरित ही है. लेकिन जो बात सामाजिक असन्तुलन की कही जाती है वह एक बार फिर से प्रमाणित होती दिखाई दे रही है. यूपी के कैराना में जो हुआ और उसके बाद जो हुआ वह दुखद है. हरियाणा के मेवात में जिस तरीके से घटनाक्रम सामने आया कि संख्या में अधिक होने पर वहां के मसलमानों ने हिन्दूओं का जमीन बेचकर गांव छोडऩे को विवश किया. वहां खट्टर की सरकार की आंख खुली और वहां कुछ प्रयास किये गये. तीसरी बड़ी घटना मध्यप्रदेश के रतलाम जिले की सामने आ गई? इस घटना को केवल एक गांव की घटना नहीं माना जा सकता। यह मानसिकता की बात है. ऐसी मानसिकता पर चिंता होना चाहिए. गांव के बीच का पुराना मंदिर बंद करवा दिया गया क्योंकि दूसरे समुदाय को पूजा व हवन पसंद नहीं थे. गांव के बाहर नया मंदिर बना लिया गया. अब गांव के लोग पलायन करने की बात प्रशासन के सामने कह रहे हैं? यह और भी गंभीर है. ऐसा क्यों होना चाहिए जब हम गंगा जमुनी तहजीब की बात करते हैं. क्या इसकी जिम्मेदारी एक बहुसंख्यक समाज की ही है? सभी की है. सभी जगह समझदार व्यक्ति हैं. समझदारों को शरणागत न होकर प्रशासन की मदद से इसे रोकना चाहिए था?
एक अख्लाक की हत्या पर पूरा देश सिर पर उठा था क्योंकि जो हुआ वह उचित नहीं था. तब क्या इसे उचित कहा जायेगा कि जहां हिन्दू कम हुए उन्हें पूरखों की जमीन छोडऩे और पलायन करने को विवश कर दिया जायेगा? यह सामाजिक असन्तुलन का डर है. इस प्रकार का इतिहास डरा रहा है. लेकिन इसके बारे में बोलने और इस प्रकार की मानसिकता का विरोध करने वाले वे तो कम से कम नहीं हो सकते जो अखलाक के लिए सामने आये थे? इसलिए समभाव रखने वाले इस मानसिकता को पनपने का विरोध जरूर करें. समाज को जगाने का काम जरूर करें, जिससे कहीं और न तो कैराना हो और न ही सुराना.

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