भोपाल, 19 जनवरी(सुरेश शर्मा). लम्बे समय तक देश भर का मीडिया यह अनुमान प्रसारित करता रहा कि यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या से विधानसभा का चुनाव लडऩे वाले हैं। यदि वे किसी कारण वश अयोध्या ने नहीं लड़ेंगे तब मथुरा उनका दूसरा विकल्प होगा? लेकिन जब टिकिट की घोषणा की गई तब उन्हें गोरखपुर सदर से प्रत्याशी बनाया गया. आखिरकार वह कौन सी बात है कि मीडिया इतनी सी बात को भी नहीं खोज पाया? क्या मीडिया का एक वर्ग किसी के कहने पर यह सब प्रचारित कर रहा था या उनकी खबर परखने की क्षमता इतनी कमजोर हो गई? लेकिन गोरखपुर से योगी की टिकिट फायनल हो गई तब भी इलेक्ट्रानिक मीडिया ने अपनी बात को प्रमाणित बताने का ही प्रयास किया और लीपापोती करने का खूब खेल किया. इसी बीच मुझे अयोध्या से वरिष्ठ पत्रकार साथी ने एक पोस्ट भेजी. उसे पढक़र लगा कि योगी न केवल राजनीति में समझदार हो गये हैं अपितु वे तो धर्म के भी बड़े जानकार हैं. इसलिए उन्होंने राजनीतिक व धार्मिक प्रसंगों को ध्यान में रखकर निर्णय लिया है. इसलिए उन्होंने न तो अयोध्या को चुना और न ही मथुरा को. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिरकार वह लॉबी कौन सी थी जो योगी को अयोध्या या मथुरा से चुनाव में उतारने की लॉबिंग कर रही थी?
जो पोस्ट मेरे पाई आई उसमें बजरंग दल के चर्चित अध्यक्ष विनय कटियार के लोकसभा चुनाव हारने से अपनी बात को शुरू किया गया है. कटियार साहब से हारने का कारण पूछा तो उन्होंने बड़े सहज भाव से जवाब दिया कि अरे भाई! यह अयोध्या है जो राजा राम की नहीं हुई वह हमारी कहां हो सकती थी. बात तो इससे भी आगे बोली गई. अयोध्या और मथुरा दोनों कभी शासकों के लिए शुभ नहीं रही. मथुरा के शासक को द्वारका में जाकर रहना पड़ा और अयोध्या वालें ने जंगल में अधिकांश समय बिताया. जब राजकाल का समय आया तो अयोध्यावासियों ने पत्नी से विछोह करा दिया. इसलिए भाजपा में योगी के तथाकथित शुभचिंतक उन्हें अध्योध्या या मथुरा से चुनाव लड़वाकर आगे के लिए घेरना चाहते थे? इसमें एक और खास बात यह है कि मीडिया ने जिस गति से प्रचार किया उससे यह सोचना भी व्यवहारिक बनता है कि इसके पीछे कोई ताकतवर लॉबी काम कर रही थी. इसलिए ऐसा माहौल बनाया गया कि योगी जाल में फंस जायें और जैसी रणनीति बनाई जा रही है वैसी के अनुसार चुनाव के बाद की स्थिति का लाभ उठाया जा सके.
अब लगता है कि योगी राजनीतिक रूप से परिपक्वय हो गये हैं। उन्हें धर्म का ज्ञान तो है ही. उन्होंने इस जाल को काटने का काम कर लिया. वे उसी गौरखपुर से चुनाव लड़ेंगे जिस पर गोरखनाथ मंदिर का प्रभाव है. स्वयं योगी महाराज उसके महंत हैं. यूपी से आये लोग यह कहते भी हैं कि यदि योगी को अकेले मैदान में उतार कर चुनाव की कमान दे दी जायेगी तब भी यूपी में वापस भाजपा की सरकार बन सकती है. यूपी में बड़ा बदलाव हुआ है. लेकिन सोशल मीडिया और मीडिया में आकर बोलने वाली ही यूपी की आवाज नहीं है. योगी ने एक बात यह भी साफ कर दी की साधुओं को भावना अनुसार प्रभावित नहीं किया जा सकता और किस प्रकार से विचार और सरकार में सन्तुलन बनाया जा सकता है.