ऐसे तो बर्बाद हो जाएगी युवा पीढ़ी.

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2022-01-18 00:16:07


ऐसे तो बर्बाद हो जाएगी युवा पीढ़ी.

18 जनवरी. - संजय सक्सेना, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल. इस समय चर्चाओं में चल रहे बुली ऐप पर होने वाली महिलाओं की नीलामी हालांकि वर्चुअल ही थी, लेकिन इसके मूल में नफरत और विधर्मी महिलाओं का निहायत निम्न स्तर पर जाकर मजाक उड़ाना ही लग रहा है. बुली ऐप पर जिन महिलाओं की तस्वीरें शेयर की जाती थीं, वो ज्यादातर वो मुखर मुस्लिम महिलाएं हैं, जिन्हें सेक्युलर या हिंदू कट्टरता का विरोधी माना जाता है. खास बात यह कि ये काम मध्यप्रदेश से ही शुरू हुआ.
बुल्ली ऐप के पहले पिछले साल एक सुल्ली ऐप भी सामने आया था, लेकिन उसकी चर्चा कम हुई थी. यह ऐप ओंकारेश्वर ठाकुर नाम के युवक ने बनाया था और पुलिस में एफआईआर होने के बाद उसने यह ऐप डिलीट भी कर दिया था. दिल्ली पुलिस ने ओंकारेश्वर को मध्यप्रदेश के इंदौर शहर से गिरफ्तार किया था. हालांकि गिरफ्तारी  के बाद ओंकारेश्वर ने कहा कि अगर मैं गलत हूं तो मुझे फांसी पर चढ़ा देना. पुलिस के अनुसार, सुल्ली ऐप केस में ग्रुप के सदस्यों ने पचास से ज्यादा मुस्लिम महिलाओं की फोटो डाली थी. हंगामा हुआ तो उसने गिटहब पर बनाए ऐप और ट्विटर पर बनाए ट्रेडमहासभा ग्रुप को डिलीट कर दिया था. ओंकारेश्वर अपने सभी डिजिटल फुटप्रिंट मिटा चुका था, इसलिए उसे पकड़ाए जाने का जरा भी अंदाजा नहीं था. उसने इंदौर में बीसीए तक की पढ़ाई की है. बाद में वह फ्रीलांसिंग करने लगा था और सोशल मीडिया पर ज्यादा समय बिताता था. उसने देखा कि ट्विटर पर कुछ मुस्लिम महिलाएं हिंदू धर्म पर गलत टिप्पणी करती हैं. ऐसे ट्वीट को वह उस क्षेत्र के पुलिस अधिकारियों को टैग कर देता था. सवाल यह उठता है कि क्या किसी गलत गतिविधि का विरोध भी कानून के दायरे से बाहर हो जाता है?
महिलाओं की नीलामी का लिंक ट्विटर पर फर्जी अकाउंट के नाम से अपलोड किया जाता था. ये काम 24 घंटे चलता था और इसके लिए वॉयस कॉल से भद्दे कमेंट भी किए जाते थे. इससे यूजर के पास भी नोटिफिकेशन पहुंच जाता था. नए यूजर भी ऑक्शन से जुड़ जाते थे. बोली लगाने वाले वॉयस कॉल से एक दूसरे से जुड़े होते थे. बोली महिला की खूबसूरती के हिसाब से लगती थी. उसे बेइज्जत करने के लिए सर्वाधिक सुंदर महिला की सबसे कम बोली लगाई जाती थी. न्यूनतम बोली 1 से 2 पैसे तक की होती थी. इस गंदे खेल में ज्यादातर 20 से 25 साल के युवा शामिल थे. ये सभी अपनी पहचान छुपाने के लिए फर्जी आईडी बनाते थे. पुलिस अब इन लोगों को भी पकड़ रही है.
बुल्ली बाई ऐप मामले में मुंबई पुलिस के साइबर सेल ने उत्तराखंड से 19 वर्षीय युवती श्वेता सिंह और इंजीनियरिंग के छात्र मयंक रावल को तथा बेंगलुरू से सिविल इंजीनियरिंग के छात्र विशाल कुमार झा को गिरफ्तार किया है. श्वेता सिंह तो 12 वीं छात्रा है. उसके परिजनों का कहना है कि वो निर्दाेष है, उसका अकाउंट हैक किसी ने यह ऐप बनाया है. अब ये सवाल बेमानी है कि इसकी शुरूआत पहले किसने की? उन्होंने, जिन्होंने हिंदू देवीताओं पर अश्लील कमेंट शुरू किए या फिर उन्होंने, जो सुल्ली या बुली ऐप पर हिंदू विरोधी महिलाों की नीलामी या भद्दे कमेंट कर रहे थे?
मुद्दा यह है कि जिसने भी यह निंदनीय सिलसिला शुरू किया, उसके खिलाफ तत्काल कार्रवाई क्यों नहीं की गई? क्या उन्हें पुलिस और राजनीतिक संरक्षण मिला हुआ था? अगर कार्रवाई हो गई होती तो मामला इतना नहीं बिगड़ता. धार्मिक विरोध, राजनीतिक असहमतियां अपनी जगह हैं, लेकिन इसकी आड़ में आस्था के बिंदुओं और नारी की अस्मत से खिलवाड़ की इजाजत तो नहीं दी जा सकती. यह ऐसा खतरनाक खेल है, जिसकी देश को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है. सबसे दुखद पहलू यह है कि जिस उम्र में बच्चों को अपना भविष्य बनाने में जुटना चाहिए, वे इस तरह के एप बनाकर दुष्चक्र में उलझ रहे हैं. डिजिटल प्लेटफार्म का उपयोग नहीं दुरुपयोग हो रहा है. इसके माध्यम से एक-दूसरे को ब्लैकमेल करने की होड़ चल रही है. भारत का भविष्य अश्लीलता और ब्लैकमेलिंग के साथ ही देह व्यापार जैसे भंवर में फंस रहा है, इस पर तो समाज के ठेकेदारों को ध्यान देना चाहिए. राजनीति में बैठे लोग तो इस पीढ़ी को बर्बाद करने पर तुले हुए हैं, कोई तो जागे. युवाओं में भी समझदार लोग हैं, लेकिन वो ऐसे मामलों का विरोध करने आगे आते नहीं दिख रहे. काश! कहीं से तो उजाले की किरण दिखे.

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