‘यूपी’ की चोट से भाजपा को उत्तराखंड में ‘सीख’

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2022-01-17 09:16:29


‘यूपी’ की चोट से भाजपा को उत्तराखंड में ‘सीख’

17 जनवरी. -सुरेश शर्मा, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल. भाजपा ने उत्तरप्रदेश के दलबदल से उत्तराखंड में सीख ली है. इसका प्रमाण हरक सिंह रावत को छह साल के लिए पार्टी से निकालने से सामने आया है. यूपी में स्वामी प्रसाद मौर्य अपने बेटे के लिए टिकिट मांग रहे थे तो हरक सिंह तीन टिकिट की दावेदारी कर रहे थे. जिसमें एक उनकी पुत्रवधु के लिए थी. भाजपा ने नीति बना रखी है कि एक परिवार से एक को ही टिकिट दी जा सकती है. यह नीतिगत बात है कि कोई भी बड़ा दल हो या संगठन वहां व्यक्ति बड़ा हो जाता है तब संगठन को नुकसान होना शुरू हो जाता है. इसलिए दूसरे दलों से भाजपा में आये नेता क्षणिक लाभ तो दे सकते हैं लेकिन वे स्थाई लाभ देने की स्थिति में तभी होते हैं जब वे भाजपा रूपी दूध में शक्कर की भांति घुल जाते हैं. मसलन ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा को जिस प्रकार अपनाया है वह इसका सटीक उदाहरण है. बहुगुणा परिवार ने भी भाजपा में रमने का प्रयास किया है. लेकिन भाजपा यूपी में इन परिस्थितियों को संभालने में कायामब क्यों नहीं रही यह अभी सामने नहीं आया है? कहने को तो यह भी कहा जा रहा है कि स्वार्थी नेताओं के भाजपा छोडने का अनुकूल असर हो रहा है. उनके स्वार्थ सामने आ रहे हैं. जनता और समाज उन पर मंथन करने को विवश है.
स्वामी प्रसाद मौर्य से एक चैनल में सवाल पूछा गया कि यह बतायें कि अखिलेश ने मौर्य समाज के लिए कोई तीन काम किये हों? स्वामी प्रसाद के पास गिनाने को कोई एक भी काम नहीं था. यदि वह पत्रकार यह सवाल पूछ लेता कि आपने समाज के लिए योगी जी से कौन से तीन काम करने ेको कहे और उन्होंने इंकार कर दिया या टालमटोल की तब भी यही जवाब आने वाला था. क्योंकि समाज को गुमराह करके राजनीति करने वालों की नजर में समाज केवल वोट है. दलबदलु नेता खुद को क्षमतावान समझकर व्यवहार करता है जबकि यह उसका समाज को चुनाव के वक्त उद्वेलित करने का तरीका होता है. वे भयादोहन भी करते हैं. यह बात अखिलेश यादव को समझ में आ गई और इसीलिए उन्होंने कहा है कि अब जिसका टिकिट भाजपा काटेगी उसको वे अपने यहां शामिल नहीं करेंगे. मतलब दलबदलुओं की राजनीति सबकी समझ में आ रही है. भाजपा ने उत्तराखंड के लिए बड़ा कदम उठाया है. हरक सिंह रावत को पार्टी से छह साल के लिए निकाल दिया. अनुशासन की आड़ ली गई लेकिन पूरे देश को यह संदेश चला गया कि भाजपा अब दबने वाला दल नहीं रहा है. अन्य वे नेता भी समझ जायेंगे जिनके दिमाग में कहीं ऐसी चिंगारी होगी.
वैसे भी उत्तराखंड का इतिहास सरकार बदलने का रहा है. भाजपा मिथक तोडऩा चाहती है और कांग्रेस उम्मीद लगाये है. ऐसे में हरक सिंह जैसे नेता का ठिकाना कहां होगा यह राजनीति का अपना खेला है? दलबदल कानून बनाया गया था. लेकिन वह निर्वाचित जनप्रतिनिधि के लिए था. अब ऐसे कानून की जरूरत है कि कोई भी नेता चुनाव के वक्त दल बदलता है तब उसको उस वर्ष चुनाव लडऩे की पात्रता नहीं होगी? यह चुनाव आयोग भी तय कर सकता है? यूपी तो ऐसा राजनीतिक दंगल है जिसमें व्यक्तियों का चुनाव के वक्त दलबदलना एक रिवाज जैसा हो गया है. इस प्रकार के बदलाव का लाभ भी मिलता रहा है इसलिए इसे बढ़ावा ही मिलता रहा है.

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