16 जनवरी.कहते हैं अपराधी किसी का सगा नहीं होता. उसका कोई जाति धर्म और राजनीतिक पार्टी नहीं होती. अपराधी बस अपराधी होता है. आपके घर पर कब उसकी नजर फिसल कर गड़ जाए इसे कोई नहीं बता सकता. इसलिये अपराधी से दूर रहो.
पर यह सब आदर्श की बाते हैं. या ये तभी तक सही हैं जब तक आपका कोई अपराधी सगा न हो.
सच तो यह है कि भले ही अपराधी का कोई सगा न हो पर अपराधी हमेशा सबको अपना सगा बनाने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ता फिर चाहे उसका शत्रु ही क्यों न हो, बस उसे यह यकीन हो कि वह निकट भविष्य में उसका बुरा नही करेगा.
अपराधी यदि किसी का सगा है तो सज्जन परिवारजन, दोस्त यार साथ छोड़ दें पर अपराधी नहीं छोड़ता. यहां तक कि वह साथ निभाने में खतरे तक मोल ले लेता है. इसलिये अपराधी जिनका भी सगा होता है वे उसे सगा बनाए रखना चाहते हैं. इसलिये लोग राजनीति में वोट डालने से लेकर आगे बढ़ाने में अपराधी के साथ रहते हैं.
तब वह भूल जाते है कि अपराधी किसी का सगा नहीं होता. उसकी नजर कभी भी आपको लेकर बदल जाती है. पर सकारात्मक सोचने पर जोर देते देते लोग कहते हैं कि इंगित अपराधी दूसरों के लिये बुरा हो सकता है, या उन दूसरों पर उसकी नजर बदल सकती है पर हमारे प्रति ऐसा नहीं हो सकता.
बस यहीं अपराधी जीत जाता है.
यही राज है कि ढ़ेरों अपराधों का बोझ लादे अपराधी राजनीतिक दलों में प्रिय रहते हैं. पद, सम्मान और सीट पा जाते हैं और जीत भी जाते हैं. इसलिये राजनीतिक दलों केा जब किसी विरोधी पार्टी के अपराधी को हराना होता है तो वे अपराधी का चयन करते हैं. कहते हैं लोहा ही लोहे को काटता है. इस प्रकार राजनीति ही नहीं समाज जीवन में भी अपराधी बढ़ते जाते हैं.
अंत में यही याद रखिये बकरे की मां कब तक खैर मना सकती है? इसलिये आपका साथ अपराधी के साथ है तो छोड़ दीजिये. ऐसा नहीं करेंगे तो आप बकरे की मां, या पिता या भाई अथवा दोस्त हैं तो आप कब तक खैर मनाएंगे, कभी तो छूरी के नीचे आएंगे.
याद रखें
बेहतर समाज की रचना सज्जन शक्ति ही कर सकती है. दुर्जन ताकतें नहीं.