कब तक सुनिश्चित हो पाएगी सभी को दो वक्त की रोटी?.

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-01-13 02:27:28


कब तक सुनिश्चित हो पाएगी सभी को दो वक्त की रोटी?.

13 जनवरी. देश की एक बड़ी आबादी ऐसी है जिसे रोजाना दोनो वक्त की रोटी नहीं मिल पाती है. उसे कभी एक दिन तो कभी दो दिन की भूखमरी के बाद रोटी मिलती है. यह भी सच है कि इससे थोड़ी कम ही सही ऐसी आबादी है जिसे रोजाना सिर्फ एक समय ही खाना नसीब होता है. उससे थोडी़ी कम आबारी बमुश्किल ही सही पर दोनो वक्त की रोटी जुटा लेती है.
ऐसा कहने या सोचने के लिये कोई बड़ा अर्थशास्त्री या बुद्धिजीवी होने ही जरूरत कतई नहीं है. क्योंकि यह सभी की के अनुभव में आता है और आंकड़ों की बात करें तो देश की एक फीसदी आबादी के पास देश  की 42.5 फीसदी संपति सिमटी हुई है यानि देश की करीब करीब आदी पूंजी इसी के पास केन्द्रित है. और बची हुई करीब करीब पचास फीसदी यानि आधी आबादी दो वक्त की रोटी जुटाने से लेकर एक दो दिन की भूखमरी के बीच जिंदगी के लिये संघर्ष करती रहती है.
इसलिये ज्यादा दिमागी मशक्कत करने के बजाय सरकारें यह क्यों नहीं सुनिश्चित कर पाती हैं कि सबको दोनोें वक्त की रोटी मिल जाए. हालांकि वे इस बारे में सोई हुई नहीं है. सरकारी योजनाओं को टटोलें तो कहा जाता है हरेक पंचायत में सरपंच के पास यह अधिकार है कि जब कोई ऐसा भूखा व्यक्ति उससे इस प्रकार की शिकायत करे तो वह उसे दिये गये फंड में से उसे की व्यवस्था करे. कई बार अदालतों में भी जब इसी प्रकार की बाते ं आई हैं तो उन्होंने सलाह देते हुए पूछा भी है कि राज्य सरकारें ऐसी कोई भोजनशाला या अन्य व्यवस्था क्यों नहीं करती है जिसमें हर भूखे को रोजी नसीब हो सके. इसमें चेक एण्ड बैलेंस की बात सोची जा सकती है पर इस दिशा में कोई कदम तो उठे.
बढ़ती आर्थिक असमानता हर सरकार के लिये लाइलाज बीमारी रही है. वे इसे अपनी कथित कल्याणकारी योजनाओं की चमक में छिपाने की जीतोड़ कोशिशें करती हैं. विडंबना यह है कि कुछ लोग सरकार के इन आधे अधूरे कामों में भी बाधा बनने से बाज नहीं आते हैं. इसके पीछे मोटेतौर पर राजनीति होती है. यह राजनीति जानती है कि इस प्रकार के गरीबो को भड़काना आसान होता है.  इससे  उनकी रोटी चलती है. सरकारों के खिलाफ इससे जो असंतोश पनपता है उससे सत्ता में बदलाव का लालच छिपा रहता है. दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि इसमें वे देश भारी मदद ऐसी ताकतों को देते हैं जो सरकार के प्रति असंतोष भड़का कर सरकार के लिये परेशानियां पैदा करते रहें. इनमे मित्र देश से लेकर तटस्थ नजर आने वाले देश तो रहते ही हैं उनसे ज्यादा देश के दुश्मन इन लोगों को मदद देकर उन्हें अपने हाथ का खिलौना बना लेते हैं. तब ये लोग या तो इस प्रकार के षडयंत्रों से अनजान होते हैं या जानबूझ कर इन्हें अनदेखा करते हैं.
सरकारो के प्रयासों के बाद भी सभी देशवासियों को दोनों वक्त की रोटी सुनिश्चित करने के प्रयासों में अभी तक जो कमजोरी रही है वह यह है कि इससे निपटने के लिये परंपरागत तरीके ही अपनाए गये हैं जो असंवेदनशीलता, लापरवाही और भ्रष्टाचार के चलते पर्याप्त प्रभावशाली नहीं हो पाते हैं. इनमें यदि आधुनिक टेक्नालॉजी का उपयोग किया जाए तो इन खामियों को दूर किया जा सकता है.
हालांकि मोदी सरकार ने इस दिशा में काम किया है. उसने यह बात काफी हद तक नियंत्रित की है जिसमें कहा जाता था कि सरकार का एक रूपया जब गरीबों की तरफ बढ़ता है तो उसके हाथ में सिर्फ पन्द्रह पैसा ही आ पाता है. आज कई योजनाओं  में पूरा का पूरा रूपया यानि सौ पैसा हितग्राहियों के हाथ में आ रहा है. राज्यों में इस बारे में काफी ढीलपोल है क्योंकि वहां राजनीति और अफसरशाही ज्यादा हावी रहती है जिसका पेट ही भ्रटाचार से भरता है.
राज्य सरकारों को जहां अपने कामों में सुपरविजन और डिलीवरी में तकनीकी का उपयोग बढ़ाना चाहिये वहीं केन्द्र को भी तकनीकी का उपयोग कर सभी देशवासियों को दोनो वक्त की रोटी सुनिश्चित करने के बारे में कदम उठाना चाहिये.

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