9 जनवरी (कृष्णमोहन झा, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल). प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लगभग एक माह पूर्व जब तीनों नए कृषि कानून वापस लेने की घोषणा की थी तब यह उम्मीद की जा रही थी कि उक्त कृषि कानूनों के विरोध में लंबे समय से आंदोलन रत किसान भी प्रधानमंत्री की विनम्रता, विशाल हृदयता और संवेदनशीलता का सम्मान करते हुए अपना आंदोलन समाप्त कर देंगे और न्यूनतम समर्थन मूल्य संबंधी मांग पर सहानूभूति पूर्वक विचार करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा समिति गठित करने का वादा पूरा करने के बाद उक्त समिति की सिफारिशों की प्रतीक्षा करेंगे. परंतु यह निःसंदेह खेदजनक है कि पंजाब में किसानों का एक वर्ग केन्द्र के साथ टकराव की नीति का परित्याग करने के लिए तैयार नहीं है. इसका प्रमाण भी उस समय मिल गया जब प्रधान मंत्री की सुरक्षा व्यवस्था में अक्षम्य चूक के कारण उन्हें फिरोजपुर में अपनी पूर्व निर्धारित रैली रद्द कर वापस दिल्ली लौटना पड़ा. इसमें सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि पंजाब की कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री और सत्तारूढ़ पार्टी यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि प्रधानमंत्री के पंजाब दौरे में राज्य सरकार से उनकी सुरक्षा व्यवस्था में किसी तरह की चूक हुई और जब राज्य सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी, दोनों ही अपनी गलती मानने से ही इंकार कर दें तो फिर उनसे इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना पर पश्चाताप की तो कोई उम्मीद ही व्यर्थ है. गौरतलब बात यह है कि किसानों के एक वर्ग ने प्रधानमंत्री के पंजाब दौरे के कार्यक्रम की घोषणा होते ही यह धमकी दी थी कि वे पंजाब में प्रधानमंत्री की सभा को रोकने की कोशिश करेंगे. पंजाब सरकार को इस सवाल का जवाब देना होगा कि कुछ किसानों की इस धमकी को उसने गंभीरता से क्यों नहीं लिया और पहले ही उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई करने की आवश्यकता महसूस क्यों नहीं की। इस घटना के लिए देश भर में पंजाब सरकार को आड़े हाथों लिए जाने के बाद राज्य के मुख्यमंत्री ने स्थानीय एस एस पी को निलंबित कर दिया है परंतु स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार प्रधानमंत्री की सुरक्षा में हुई इस तरह की अक्षम्य चूक की घटना पर मात्र एक पुलिस अधिकारी के निलंबन की कार्रवाई से पर्दा नहीं डाला जा सकता । ऐसा प्रतीत होता है कि यह निलंबन केवल खानापूरी की केवल की एक छोटी सी कोशिश है ।यह अभूतपूर्व घ्घ्घ्घटना किन परिस्थितियों में घटी और क्या यह सोची समझी लापरवाही थीघ् या कोई कोई साजिश का हिस्सा ,यह सच तो देश के सामने आना ही चाहिए । पंजाब की कांग्रेस सरकार को दलगत भावना से ऊपर उठकर इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना की बारीकी से जांच कराना चाहिए. पंजाब के मुख्यमंत्री को यह स्वीकार करना चाहिए कि इस घटना ने न केवल पंजाब सरकार की छवि को धूमिल किया है बल्कि ऐसी घटनाओं से देश अंतरराष्ट्रीय छवि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. इस बात पर भी अफसोस ही व्यक्त किया जा सकता है कि कांग्रेस पार्टी पंजाब में अपनी सरकार की गलती पर पर्दा डालने के लिए हास्यास्पद तर्कों का सहारा ले रही है. कांग्रेस पार्टी को यह बात अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि प्रधानमंत्री की सुरक्षा में किसी भी तरह की चूक के जरिए वह कोई राजनीतिक हित नहीं साध सकती. प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था में चूक हमारे देश के संविधान की संघीय भावना के प्रतिकूल है. प्रधानमंत्री केंद्र सरकार के मुखिया हैं और सभी राज्य और केंद्र शासित प्रदेश भारत गणराज्य का हिस्सा हैं. इसलिए यह प्रत्येक राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह अपने यहां प्रधानमंत्री के आगमन पर उनकी सुरक्षा व्यवस्था के उत्तर दायित्व का निष्ठापूर्वक निर्वहन करे. राजनीतिक विरोध प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक की अनुमति नहीं देता. यहां यह भी विशेष ध्यान देने योग्य बात है कि प्रधानमंत्री उस सीमावर्ती राज्य के प्रवास पर थे जिसकी सीमाएं आतंकवाद को प्रश्रय देने के लिए दुनिया भर में बदनाम राष्ट्र की सीमाओं से जुड़ी हुई हैं हैं. इसलिए उनकी सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. लेकिन इसमें दो राय नहीं हो सकती कि पंजाब सरकार ने अपने यहां प्रधानमंत्री के प्रवास के दौरान जो सुरक्षा प्रबंध किए उनमें किसी न किसी स्तर पर गंभीर चूक तो हुई है जिसकी जिम्मेदारी से पंजाब की कांग्रेस सरकार नहीं बच सकती. स्वतंत्र भारत की अभूतपूर्व घटना ने पंजाब सरकार को शर्मसार कर दिया है.
सुरक्षा में चूक के कारण जिन परिस्थितियों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की फिरोजपुर रैली रद्द करने का फैसला किया गया उनसे कई सवाल उठ खड़े हुए हैं जिनका उत्तर पंजाब सरकार को देना होगा. सारा देश इन सवालों के जवाब जानने के लिए अधीरता से प्रतीक्षा कर रहा है. मुख्य सवाल तो यही है कि जब प्रधानमंत्री का काफिला सड़क मार्ग से जाने की योजना अचानक बनी तो इस की सूचना तत्काल ही प्रदर्शनकारियों को कैसे मिल गई. प्रधानमंत्री के काफिले को जिस मार्ग से ले जाने का फैसला किया गया वहां भारी पुलिस बल की तैनाती के बावजूद प्रदर्शनकारी चंद मिनटों में ही एकत्र होने में सफल कैसे हो गए और पुलिस ने उन्हें। तत्काल हटाने की तत्परता क्यों नहीं दिखाई. किसी भी प्रदेश में प्रधानमंत्री के दौरे के पूर्व एस पी जी और उस राज्य की पुलिस के द्वारा एडवांस सिक्युरिटी लाइजनिंग की जाती है. दोनों मिलकर प्रधानमंत्री के प्रवास के दौरान सुरक्षा के इंतजाम करते हैं. प्रधानमंत्री का काफिला जिस मार्ग से गुजरना होता है उस मार्ग के आसपास के इलाके में भी पुलिस तैनात की जाती है. पुलिस बल की तैनाती के बावजूद अगर प्रदर्शन कारी काफिले के मार्ग पर अचानक आ जाएं तो सचमुच आश्चर्य की बात है. इन सारे सवालों के जवाब पंजाब की चन्नी सरकार को देना है. देश के जिन राज्यों में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं उनमें पंजाब भी शामिल है लेकिन यह घटना संकुचित राजनीति का विषय नहीं है. यह भी ज्ञात हुआ है कि प्रधानमंत्री की रैली में शामिल होने के लिए उत्सुक लोगों को किसान आन्दोलन कारियों ने रास्ते में ही रोक दिया था. सवाल यह उठता है कि क्या किसान आन्दोलनकारियों के विरुद्ध कोई कानूनी कार्रवाई करने के बजाय चन्नी सरकार की पुलिस मूकदर्शक क्यों बनी रही. यह तो तय है कि इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना से शर्मसार चन्नी सरकार के पास उन सवालों के कोई संतोषजनक जवाब नहीं हैं जो प्रधानमंत्री की फिरोजपुर रैली रद्द होने का कारण बन गए थे. प्रधानमंत्री की सुरक्षा व्यवस्था में चन्नी सरकार की इस अक्षम्य चूक का खामियाजा आगामी विधानसभा चुनावों में चुकाने के लिए कांग्रेस पार्टी को तैयार रहना चाहिए.