किसान आंदोलन ने खोई अहमियत
किसान आंदोलन ने आखिर अपनी अहमियत खो दी. यह अन्नदाताओं का आंदोलन था. यह अन्नदाताओं के हितों को प्रभावित करने वाले कृषि कानूनों को लेकर था. इसलिये सब उसके आगे नतमस्तक हो गये. लेकिन इसके पीछे निहित स्वार्थ हैं, राजनीतिक स्वार्थ है और मोदी विरोध है यह बात समझकर भी सब अनजान से बन गये और बताओ अन्नदाता की बात कहने लगे. बात भी पूरे सम्मान और विनम्रता से कही गयी.
नम्रता बनी रही पर समय के साथ आंदोलन का चेहरा उजागर होता गया. अंत में जो बचा वह था राजनीतिक स्वार्थ और हर कीमत पर मोदी विरोध. इससे मोदीजी और भाजपा ने अपने तरीके से निपट लिया. इसलिये जो अन्नदाता की भावना थी वह नहीं बची. कानून काले हैं पर उसमें काला पन बताओ की सरकार की विनर्म प्रार्थना के आगे तीनों कानून बिना शर्त वापस लो की निहित स्वार्थे की जिद हार गई.
सरकार ने अगला कदम एमएसपी की खरीद का भुगतान किसानों के खातों में करने की बात कह कर आड़तियों के होश उड़ा दिये. अब भाषणों और टीवी बहसों में कह रहे हैं कि जमीनों का बंटवारा तो परिवार में हुआ नहीं. जमीन से लाभ उठाने वाले कई हैं और खाता किसी एक के नाम पर है. जब पैसा खाते में आएगा तो कैसे बटेगा? तब वह यह बताना भूल जाते हैं कि आड़तिया भी तो एक ही को भुगतान करता था तब वह कैसे बांटता था.
किसान आंदोलन में राजनीतिक दलों के लोग शुरू से ही शामिल थे. लेकिन वे विभिन्न मोर्चो के माध्यम से राजनीति से जुड़े थे. आंदोलन के संचालकों ने चालाकी से यह बात सबको बताई की राजनीतिक दलों को मंच नहीं देंगे. यह कुछ समय तो चला पर समय के साथ असली किसान दूर होते गये तो भीड़ जुटाने के लिये यह मुखौटा उतार फैंकना पड़ा. राजनीतिक दलों के शामिल होते ही सारा आंदोलन बिखर गया. अरे राजनीति ही तो है जिसकी ताकत स्वार्थो में बसती है. इसलिये वह विभाजन पर टिकती है. स्वार्थ टकराते हैं और राजनीतिक दल और उनके नेता तथा कार्यकर्ता बिखर जाते हैं. इसलिये भी किसान आंदोलन बिखर गया. अब तो इसके नेता किसान आंदोलन को समेटने के बहाने तलाश रहे हैं. इसीलिये मैने कहा कि किसान आंदोलन अपनी अहमियत खो चुका है.
किसान समस्याओं को लेकर सत्तर साल बाद मोदी सरकार ने जो नीतियां बनाई हैं वे आज के हिसाब से सही हैं.
आज अधिकांश किसानों के पास जो अनुभव और ज्ञान है वह आज की जरूरतों के हिसाब से नाकाफी है. किसानी कोे आज पूंजी, तकनीकी, और प्रबंधन की जरूरत है. इसके लिये पूंजी, तकनीकी और प्रबंधन में कुशल लोगों के हाथ में किसानी को सौंपने की जरूरत है. इसमें कुशल और अकुशल मानव श्रम लगेगा इस कारण किसानी से पैदा होने वाले रोजगार कम नहीं होंगे. विज्ञान की प्रगति से जो किसानी संबंधी ज्ञान पैदा हुआ है वह कम जमीन पर ज्यादा उपज देकर सबका पैट भर देगा. आज कृषि भूमि के सिर्फ अनाज, धान और दालों की उपज के साथ साथ अन्य क्षेत्रों में भी उपयोग की जरूरत है. नया ज्ञान, नई तकनीकी गांवों में ज्यादा खुशहाली लाएंगे, ज्यादा बेहतर रोजगार पैदा करेंगे.
हमें आज बस नजरिया बदलने की जरूरत है. इसके बगैर न कृषि प्रगति करेगी, न किसान, न समाज और न ही देश.
एक जमाने में राजीव गांधी के कम्प्यूटर का विरोध करने वाले आज कम्प्यूटर की दम पर ही देश पर राज कर रहे हैं और राजीव गांधी की पार्टी के लोग, उनके साथ चलने वाले अन्य लोग आज के नये ज्ञान का विरोध कर अपनी प्रासंगिकता खोते जा रहे हैं. यह देश हित में नहीं है. पर क्या करें, सोते हुए को जगाया जा सकता है सोने का बहाना करने वालों को नहीं.