भूख से मौत - सबके दोषों के साथ अपने को भी देखो सुप्रीम कोर्ट
देश में अनाज से भंडार भरे हैं फिर भी कोई भूख से मर जाए तो यह सभी सरकारों, प्रशासकों, व्यवस्था में लगे लोगों, सभी प्रकार के जनप्रतिनिधियों, समाज के मान्य नागरिकों के लिये शर्मनाक है. हालांकि इसमें दुनियाभर के लोगों को जोड़ा गया है बस न्यायपालिका को नहीं जोड़ा है क्योंकि अदालत की अवमानना से डर लगता है.
लेकिन लगता है कि भूख से मौत जैसे मानवीय और संवेदनशील मामले में हल्के से ही सही पर इसे भी जोड़ा जाना चाहिये. यह इसलिये कि जब भी ऐसे मामले सामने आते हैं सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट से लेकर सभी प्रकार की अदालतें जिम्मेदारों को हड़काने और फटकारने में जरा भी कमी नहीं रखती है. पर वे स्वयं अपने गिरेबां में क्यों नहीं झांकती हैं?
यह सवाल इस बात से उठा कि सुप्रीम कोर्ट में 9 दिसंबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने भूख से मौत संबंधी एक याचिका के संदर्भ में राज्यों से जवाब मांगा था पर उसका क्या हुआ यह मार्च 2021 में भी मालूम नहीं पड़ रहा है जबकि अब तक तो ऐसा फैसला आ जाना चाहिये था जिससे सबकी रूह कांप जाती और ऐसा सबक मिलता कि कोई भूख से मर जाए इसकी नौबत ही नहीं आती.
लेकिन भूख से मौत हो गई और सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में झारखंड में एक बालिका की भूख से मौत के मामले में सरकारों व अन्य जिम्मेदारों से जवाब मांगा है. जबकि इससे पहले उसे स्वयं भी देखना चाहिये था कि इससे पहले कब कब इसी प्रकार के जवाब उसने मांगे हैं उनका हश्र हुआ है? यदि वह उनसे नाराज है तो जरा अन्य तरीके से ज्यादा सख्ती से कुछ करना था ना कि रस्म अदायगी?
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट की प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबड़े की खंड पीभ् ने झारखंड मामले में संबंधित लोगों से जवाब मांगा है. मामला झारखंड की महिला कोयली देवी का है जिसे राशनकार्ड के आधार से नहीं जुड़ पाने के कारण राशन नहीं मिल पाया और उसकी बेटी की भूख से मौत हो गई. यह सही है कि राशन की दुकानों में बड़ी गड़बड़ियां हैं. राशनकार्ड को आधार से जोड़ने से काफी सारी गड़बड़ियों पर काबू पाया जा सका है और भ्रष्टाचार भी रूका है. फिर भी गरीबों को राशन नहीं मिल पाता है. इसका एकदम दोषरहित ऐसा तरीका निकाला ही जाना चाहिये जिससे जरूरतमंद को राशन मिल सके ताकि किसी की भूखमरी से मौत की नौबत ही नहीं आए.
सवाल व्यवस्था का भी है. कई राज्यों में सरपंचों के यहां सरकार राशन का कोटा रखती है ताकि गांव में भूखमरी के कगार पर पहुंचे लोगों तक सरपंच तत्काल राशन पहुंचा सके. गांव कस्बों में और भी ऐसे कई समाजसेवी और रसूखदार लोग होेते हैं जिन्हेें हम सिविल सोसायटी कहते हैं ये अदालतों में जनहित के मामले ले जाती रहती हैं. इसलिये रसूखदार नागरिकों और सभी प्रकार के जनप्रतिनिधियों को भी समान दोषी माना है.
उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट जल्दी ही ऐसी व्यवस्था बनाने के लिये कदम उठाएगा जिससे फिर किसी की बेटी की भूख से मौत की खबर नहीं देखने सुनने को मिले.