अरे, भ्रष्टाचार फिर चर्चा में आया पर नया क्या है?
मुंबई के पुलिस कमीश्नर परमवीरसिंह को डीजी होमगार्ड बनने पर याद आया कि अरे महाराष्ट्र के गृहमंत्री अनिल देशमुख ने मुबंई पुलिस की क्राइम ब्रांच के सचिन बझे को कहा था कि उन्हें हर माह सौ करोड़ रूपये चाहिये. उन्होंने फटाक से एक खत महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लिख मारा. बात उजागर हो गई और संसद में भी हंगामा मचा है. महाराष्ट्र में तो शोर होना ही था. मेरी नजर में बात इतनी सी है कि ऐसी बाते कई बार तो सामने आ चुकी है फिर हंगामा क्यों? दिल्ली से सटे नोयडा में पदस्थ रहे एक आईपीएस ने भी एक बार आरोप लगाया था कि उत्तर प्रदेश में थाने नीलाम होते हैं. तब भी हंगामा मचा पर नतीजा कुछ सामने नहीं आया. यहां भी शरद पवार जो पहले इस आरोप को गंभीर बता कर जांच की बात कर रहे थे वे भी मुकर गये और कहने लगे कि नये तथ्यों के प्रकाश में आने के बाद जांच की जरूरत नहीं है. गृहमंत्री बेदाग हैं उन्हें इस्तीफा देने की जरूरत नहीं है. इसके आगे पवार ने लक्ष्मण रेखा खींच रखी है कि कार्यवाही करने का हक मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को है वे इसके लिये आजाद हैं.
जो भी मीडिया में है और प्रशासन और राजनीति के बारे में जानते हैं वे मलाईदार पोस्टिंग की चर्चा करते और सुनते रहते हैं. यह मलाई वह रूपया ही तो हे जो पदस्थ व्यक्ति वसूल करके अपने आकाओं और संरक्षकों को पहुंचाता है. हां बड़ा हिस्सा खुद रखने से कभी नहीं चूकता. कभी आबकारी तो कभी परिवहन, के कमीश्नर क्या कम चर्चा में आते हैं. थाने तो खैर बदनाम हैं ही, पर ऐसा नहीं है कि सारे कुए में भांग घुली है. मलाई से जुड़े तो मात्र दस फीसदी होते हैं पर बदनामी की संदेहभरी निगाहें बाकी 90 प्रतिशत को भी झेलनी पड़ती है.
मेरा सवाल सिर्फ इतना सा ही है कि जब सारा भ्रष्टाचार कभी चर्चा में तो कभी अफवाहों में रहता है तो परमवीर के आरोप पर इतना हंगामा क्यों? क्यों नहंीं अदालत सीबीआई से जांच करवा लेती है बस इतना और करे कि जांच अदालत की निगरानी में हो, तब शायद कुछ ठोस हाथ लग पाएगा.