भाजपा को सिर्फ मेहनत नहीं मिल पाएगी सत्ता, किस्मत के सुहागा की भी पड़ेगी जरूरत
- बंगाल में अंत तक दिखेगी कांटे की टक्कर
बंगाल में भाजपा का चुनावी घोषणापत्र जिसे संकल्पपत्र कहा गया ममता की टीएमसी पर करारा दाव पड़ा है जिसमें मिलने वाले अंक भाजपा को जीत में निर्णायक मदद दिला सकते हैं. बंगाल में चुनाव मोदी और ममता की छवि के बीच है. ममता को भाजपा में चेहरे की कमी की चाल को कमजोर करने में भाजपा काफी हद तक सफल रही है. ममता के माटी पुत्र बनाम बाहरी के दावपेंच को भाजपा का यह घोषणापत्र एक हद तक निष्प्रभावी कर देगा. हिंसा का दबाव ममता ने खूब बनाया था पर केन्द्रीय बलों की तैनाती और चुनाव आयोग की सख्ती के कारण अब नजर नहीं आ रहा है. भाजपा को लग रहा है कि उसके वाचाल और चुप्पा दोनों प्रकार के वोटर बिना डर और दबाव के वोट डाल देंगे.
हिंदू-मुसलमान के भाजपा के दाव में ममता फंस गई और कांग्रेस के राहुल की तरह अपने को ब्राम्हण पुत्री कहते हुए चंडी पाठ करने लगी. पर इससे वो भाजपा की डुप्लीकेट की तो कह लाएगी. हिंदुत्व की ओरिजन काॅपी तो भाजपा ही रहेगी. ममता को केजरीवाल की तरह हिंदू-मुसलमान विवाद से दूर ही रहना चाहिये था. हिंदू वोट तो ममता के खिसकेंगे इन्हें चंडी पाठ ज्यादा नहीं रोक पाएगा क्योंकि भाजपा हिंदू-मुसलमान ध्रुवीकरण में काफी हद तक सफल रही है. मंत्रिमंडल की पहली बैठक में ही सीएए को लागू करने का वादा कर उसने हिंदू वोटरों को और पक्का किया है. पुरोहितों को तीस हजार रूपये का मासिक भत्ता और मंदिरों के सुधार के लिये फंड की बात कह भाजपा ने हिंदू कार्ड ही तो चला है.
महिलाओं के लिये कई प्रकार की राहतें दी हैं और महिला वोट बैंक बनाने की कोशिश की है. किसानों का वोट पाने के लिये भी पहल की है. युवाओं को भी बेहतर शिक्षा के माध्यम और ज्यादा रोजगार के अवसर से लुभाया है. इस मामले में भाजपा के वादे ममता से बेहतर है.
भाजपा ने कर्मचारियों को सातवां वेतन आयोग मास्टर स्ट्रोक लगाया है.
ममता के पास दस साल का संगठन है और भाजपा के पास जमीनी काम. संगठन तो निश्चित ही भाजपा का अपना ज्यादा नही है. स्थानीय कार्यकर्ता और नेता नये हैं. एमएलए के टिकट भी आधे तो टीएमसी से आए नेताओं को मिले हैं. फिर भी भाजपा का जो संगठन का अनुभव है. एक छोटी पर ठोस अनुभवी विश्वस्त टीम है जो वाचाल और चुप्पा दोनों प्रकार के वोटरों को मतदान केन्द्र पर लाने में सफल है. परेशानी वोटर की है जो वोट डालने से ज्यादा रुचि सैर सपाटे में लेता है. ऐसे वोटर ममता के पास काफी कम हैं जबकि भाजपा में इनकी संख्या बहुत है. अगर उन्हें भाजपा पकड़ पाई तो उसकी जीत पक्की नहीं तो उसे दूसरी बड़ी पार्टी पर ही संतोष करना पड़ेगा. हां उसकी मेहनत से वह पहली सबसे बड़ी पार्टी का तमगा पा भी गई और सीटों की संख्या 148 से कम रही तो तय मानिये सत्ता का ताज ममता के सिर पर होगा. भाजपा को नेता प्रतिपक्ष पर ही संतोष करना पड़ेगा.