केजरीवाल सरकार का बिना सिर-पैर का हंगामा

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2021-03-17 04:25:24


केजरीवाल सरकार का बिना सिर-पैर का हंगामा

केजरीवाल सरकार का बिना सिर-पैर का हंगामा
- धारा 239 एए में संविधान संशोधन से क्यों घबराए हुए हैं केजरीवाल
- जो अधिकार बाकी राज्यपालों को है उन्हें उप राज्यपालों को देने की बात ही तो खुलकर कह रहे हैं संशोधन
- ताकि राज्यपालों और उपराज्यपालों में बराबरी आ जाए
केजरीवाल सरकार अपने राजनीतिक हित साधने के लिये बिना सिर-पैर का हंगामा करने के लिये जानी जाती है. उसका ताजा शोर-शराबा मोदी सरकार द्वारा लाया गया संविधान संशोधन कानून है. इसमें कौव्वा ले गया कान के शोर की स्टाइल में केजरीवाल सरकार हल्ला मचा रही है कि मोदी सरकार दिल्ली की केजरीवाल सरकार के सारे अधिकार छीनकर केन्द्र की तानाशाही लादने जा रही है और इसका माध्यम उसने उप राज्यपाल को बनाया है.
पर सच्चाई क्या है यह तो जरा जान लें. केन्द्र सरकार संविधान की धारा 239 एए में संशोधन ला रही है. इसके पीछे संविधान में उप राज्यपाल के हकों को लेकर स्पष्ट व्याख्या का अभाव है. जबकि राज्यपाल को लेकर ऐसा नहीं है. यह मामला सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के समक्ष भी जा चुका है. तब उप राज्यपाल के अधिकारों की बात कही गई थी और निशाने पर यही धारा 239 एए थी. तब 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि धारा 239 एए की वही व्याख्या है जो संविधान में की गई है. यानि राज्यपाल और उप राज्यपाल के अधिकार करीब करीब बराबर हैं. बस उसमें अपवाद है कि केन्द्र शासित प्रदेश  की विधानसभा और सरकार तीन मामलों पब्लिक आर्डर, पुलिस और जमीन को लेकर  कानून नही बना सकती है.
वैसे भी तकनीकी और कानूनी तौर पर देखें तो संविधान में सरकार राज्यपाल और राष्ट्रपति की ही होती है किसी व्यक्ति की नहीं फिर वह चाहे इंदिरा गांधी रही हो या नरेन्द्र मोदी हों या फिर योगी अथवा केजरीवाल. हां जनता चूंकि विधायक और सांसदों को चुनती है इसलिये वह अपनी सरकारों को अपने प्रतिनिधियों के नाम से जानती है. इसलिये केन्द्र की आज की सरकार नरेन्द्र मोदी सरकार कह लाती है जबकि वह होती राष्ट्रपति की है. यही बात राज्य में लागू होती है. इसलिये दिल्ली में सरकार जनता की नजर में भले ही केजरीवाल की हो पर संवैधानिक तौर पर उसे उप राज्यपाल की सरकार ही कहेंगे. यही बात केन्द्र सरकार जो संविधान संशोधन ला रही है उसमें स्पष्ट कहा गया है कि सरकार उपराज्यपाल की कहलाएगी. इसे केजरीवाल सरकार प्रचारित कर रही है कि देखो अब दिल्ली में सरकार लाड साहब यानि उप राज्यपाल चलाएंगे. मुख्यमंत्री केजरीवाल नहीं. चुनीहुई सरकार के हक छीने जा रहे हैं. यह बेवजह का बिना सिर पैर का विवाद है या नहीं?
इसी प्रकार तकनीकी तौर पर कहें तो मुख्यमंत्री और उसके मंत्रिमंडल के मंत्रियों को कानून बनाने का हक नहीं है. कानून बनाने का हक सिर्फ विधानसभा को है. मुख्यमंत्री और मंत्री और प्र्रशासनिक अमला तो उसे लागू करता है. यही स्थिति केन्द्र में प्रधानमंत्री और उनके मंत्रियों की तथा संसद की है. मुख्यमंत्री और उनका मंत्रिमंडल कानून के प्रारूप को अपनी बैठक में पारित करवा कर विधानसभा में रखते हैं और पारित करवाते हैं. बिना विधानसभा में पारित करवाए सिर्फ मंत्रिमंडल के प्रारूप को पारित करने भर से कानून नहीं बन सकता. इसके बाद भी विधानसभा के द्वारा पारित किये गये कानून को उप राज्यपाल या राज्यपाल के सामने रखना पड़ता है. वह स्वीकृति देते हैं उसी के बाद ही कानून को उसके उपनियम आदि बना कर लागू किया जा सकता है उसके पहले नहीं. अब केजरीवाल हल्ला मचा रहे हैं कि संविधान संशोधन के माध्यम से हमसे कानून बनाने का हक छीना जा रहा है. हमें अब हर फाइल उप राज्यपाल के समक्ष रखनी होगी. जबकि ऐसा नहीं है. बस यही कहा गया है कि कानून के तहत जो फैसले लिये गये हैं उनकी फाइल उपराज्यपाल के सामने रखनी होगी ताकि वे जांच सकें कि फैसला कानून की  सीमा में है या नहीं. इसमें उप राज्यपाल वैसे भी अपनी सीमा नहीं लांघ सकते जो सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ अपने 2018 के फैसले में तय कर चुकी है. सरकार और उप राज्यपाल को संतुलन बनाकर चलना होगा. यानि हरेक फाइल नहीं, बस चुनिंदा फाइलें ही उन्हें बतानी होगी. वैसे राज्यपाल अपने अधिकार का उपयोग कर सरकार से किसी फैसले की फाइल मंगवा सकते हैं और कह सकते हैं कि उनके फैसले के बाद ही उसे लागू किया जाए.
दिलचस्प बात यह है कि इसमें संविधान ने राज्यपाल और उप राज्यपाल के हाथ बांध दिये हैं. वे मंत्रिमंडल की भेजी गई फाइल में दर्ज निर्णय को ठुकरा नहीं सकते. वे या तो उसे स्वीकृति दें या पुनर्विचार के लिये वापस भेंजे. अगर राज्यपाल या उपराज्यपाल दुविधा में हों तो वे राष्ट्रपति से मार्गदर्शन मांग सकेते हैं जिसके अनुसार उन्हें काम करना होगा. यही बात तो संविधान संशोधन में उपराज्यपाल के संदर्भ मेें ज्यादा स्पष्टता के साथ कही गई है. धारा 239 एए में राज्यपाल और राष्ट्रपति के संदर्भ में सारी बातें स्पष्टता से नहीं कही गई थी. संविधान संशोधन में बस ये बातें स्पष्टता के साथ उप राज्यपाल के संदर्भ में भी कह दी गई हैं तो इसमें कौन सा पहाड़ मोदी सरकार ने गिरा दिया जो केजरीवाल और उनके मंत्री हल्ला मचा रहे हैं.
हां जरा राजनीतिक हालातों को समझें तो केजरीवाल को भय है कि वे वोटबैंक साधने के लिये जो फैसले तुष्टिकरण के लिये कर लेते हैं उन्हें उपराज्यपाल संशोधन के बाद ज्यादा मजबूती से रोक सकेंगे. फिर केजरीवाल क्या करेंगे. वे वोटबैंक के लिये हवा कैसे बनाएंगे. इसीलिये सारा हल्ला है. फिर वह चाहे बिना सिर पैर का ही क्यों न हो.
 


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