बंगाल में ममता ने बदली चुनावी रणनीति

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2021-03-06 06:21:30


बंगाल में ममता ने बदली चुनावी रणनीति

बंगाल में ममता ने बदली चुनावी रणनीति
मुस्लिम तुष्टिकरण की जगह हिंदू समर्थक छवि बनाने की कोशिश
ममता बनर्जी ने बंगाल के चुनाव में नई रणनीति बनाई है. उसने अपनी मुस्लिम समर्थक की छवि  को बदल कर हिंदू समर्थक बनाने की कोशिश करनी शुरू कर दी है. इसकी झलक उसकी ताजा 191 उम्मीदवारों की प्रत्याशी सूची में दिख रही है. कहा जाता है कि ऐसा उसने अपने राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांतकिशोर की सलाह पर  किया है. भाजपा बंगाल में हिंदू मतों का धु्रवीकरण करने में काफी हद तक सफल रही है. इससे उपजे खतरे को देखते हुए ममता दीदी ने यह कोशिश की है.
इस प्रयास में फुरफुरा शरीफ के गद्दीनशीन पीरजादा अब्बास सिद्दीकी की नई पार्टी के उदय और असदउद्दीन औबेसी की बंगाल की राजनीति  में एंट्री को भी ध्यान में रखा है. ममता को यकीन है कि उसका मुस्लिम वोटर उसे एक हद से ज्यादा नहीं छोड़ेगा. वह न उसकी स्वयं की बदली हुई हिंदू समर्थक छवि से गुमराह होगा न औबेसी और अब्बासी के झांसे में आएगा. हालांकि उसने मुस्लिम वोट बैंक की राजनीतिक परिपक्वता, एकजुटता और गैर भाजपाई विनिंग केंडिडेट को वोट करने की राजनीतिक चतुराई को ध्यान में रखा है. उसने उन्हीं इलाकों में अपने मुस्लिम प्रत्याशी  उतारे हें जहां मुस्लिम मतदाताओं का प्रतिशत तीस या उससे कम  है और ऐसे में भी उसके प्रत्याशी की जीत की संभावनाएं ज्यादा नजर आती हो. वह जानती है कि इस स्थिति में मुस्लिम वोटर्स ने गैर भाजपाई ज्यादा विनिंग संभावनाओं वाले प्रत्याशी को ही वोट दिया है. इस स्थिति में प्रत्याशी मुस्लिम हो तो और भी बेहतर होता है. उसने यह सबक मायावती, मुलायम सिंह, कांग्रेस और वामपंथियों को लेकर मुस्लिम वोटर्स के रूझान में आये बदलाव से लिया है. इसकी पुष्टि हाल ही में नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के साथ हुए बर्ताव से भी हुई है जिसमें सीमांत बिहार में इन दोनों के हाथ के तोते उड़ा दिये थे.
यही देखते हुए ममता दीदी ने सिर्फ 35 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं जबकि 2016 में इनकी संख्या 57 थी. ऐसा कर ममता दीदी ने अपनी मुस्लिम वुष्टिकरण की छवि को ठीक करने की कोशिश की है. वह ज्यादा प्रत्याशी उतारती तो शायद वह पुरानी छवि पुष्ट होती जिससे ममता दीदी को नुकसान हो सकता था. इससे एक हिंदू समर्थक या निष्पक्ष छवि तो बनेगी इसकी उम्मीद ममता बनर्जी को है.
वहीं ममता दीदी ने करीब 30 पुराने विधायकों का पत्ता भी काट कर नये लोगों को स्थान दिया है. वैसे ममता दीदी ने करीब 100 नये चेहरे उतार कर बदलाव के संकेत दिये और पुराने पापों की गठरी को हल्का करने की कोशिश की है. 80 साल से ज्यादा उम्र के लोगों से परहेज भी किया है.
ममता ने करीब 50 महिला प्रत्याशी उतारे हैं. ये सभी पढ़ेलिखे और प्रगतिशील माने जाते हैं. महिलाओं को इस प्रोत्साहन से ‘बंगाली भद्र लोक’ के वोटर भी प्रभावित होते हैं और उनकी छवि हिंदू और प्रगतिशील समर्थक की भी बनती है. इससे ममता का भद्र लोक का वोटर उसके पाले में वापस आएगा ऐसी दीदी को उम्मीद है.
यह भी माना जाता  है कि आरक्षण सीटों  पर और इस वर्ग के प्रत्याशियों पर धर्म की लहर खासकर हिंदू समर्थक लहर ज्यादा असर नहीं डालती है. वहीं इन वर्गो के वोटर उनके लिये किये गये कामों से काफी ज्यादा प्रभावित होते हैं. ममता ने इन वर्गो के लिये काम भी किये हैं. इन्हें भुनाने के लिये ममता दीदी ने आरक्षित वर्ग के लिये आरक्षित सीटों से ज्यादा उम्मीदवार इन वर्गो के उतारे हैं. अनुसूचित या हरिजन वर्ग की 60 सीटें आरक्षित हैं और ममता के प्रत्याशी हैं 79. इसी प्रकार अनुसुचित जनजाति यानि आदिवासी वर्ग की सीटें हैं 16 और प्रत्याशी हैं 17. इस प्रकार से आरक्षित सीटें हैं 84 और प्रत्याशी हैं 96. यानि दीदी के इन वर्गो के प्रत्याशी दूसरी अनारक्षित सीटों पर भी अपनी किस्मत आजमाएंगे.
दीदी ने मुस्लिम वोटर ज्यादा दुविधा में न पडे़ इसका भी ख्याल रखा है. जैसे औबेसी की आजमाई हुई रणनीति है कि वे पचास फीसदी मुस्लिम वोटर वाली सीटों पर ही ज्यादा घ्यान केंद्रित करते हैं. हां कुछ 40 फीसदी मुस्लिम वोटर वाली सीटों पर भी दाव लगा देते हैं. इससे उनका स्ट्राइक रेट शानदार निकलता है. औबेसी ने 22 सीटों पर लड़ने का  मन बनाया है. सूची जल्द सामने आएगी.
इसी प्रकार अब्बास सिद्दीकी भी 37 सीटों पर ताकत आजमा रहे हैं. इनमें से 30 सीटें वामपंथी मोर्चे और 7 सीटें कांग्रेस ने उन्हंे दी हैं. वे तीस-चालीस फीसदी या उससे कम मुस्लिम वोटों वाली सीटों का चयन करने वाले हैं क्योंकि उन्हें उम्मीद है  कि गठबंधन में होने के कारण उन्हें गैर मुस्लिम वोट भी मिलेंगे.
ममता दीदी ने इन दोनों को ध्यान में रखकर ही अपने मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं. ऐसा माना जा रहा है.
प्रशांतकिशोर की रिपोर्ट के बाद यह तो साफ हो गया है कि बीजेपी 51 फीसदी मुस्लिम वोटर को आकषित करने में काफी हद तक कामयाब हो गइ्र्र है. बस देखना यही है कि उसके कितने वोटर वोट डालने जाते है और कितने मतदान दिवस को छुट्टी मानकार मौज  मस्ती के लिये सिनेमा देखने या सैर सपाटे के लिय निकल जाते हैं. सही भी है भरे पेट वालों के लिये मतदान से भी जरूरी और भी कई काम होते है ंजिन्हें वे मतदान दिवस की छुट्टी पर निपटाते हैं. यह हम दिल्ली में देख चुके हैं और बंगाल में क्या होता है यह देखना बाकी है.

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