बैंकों के निजीकरण पर सरकार ने समग्र रूप से विचार नहीं किया

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2021-02-28 01:56:50


बैंकों के निजीकरण पर सरकार ने समग्र रूप से विचार नहीं किया

बैंकों के निजीकरण पर सरकार ने समग्र रूप से विचार नहीं किया
- राकेश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल
यह तो होगा कि सरकारी बैंकों के विनिवेश से कुछ हजार करोड़ जरूर आ जाएँ, लेकिन उससे सरकार को कितना फायदा होगा इसका भी आकलन करने की भी जरूरत है, फायदा नकदी में हो, यह जरूरी नहीं है. सवाल रोजगार जाने का और बचे हुए सरकारी बैंकों पर काम का दबाव बढ़ने का भी है. सरकार ने शायद समग्र रूप से विचार नहीं किया है या उसे भविष्य का अनुमान और चिंता नहीं है.
ऐसा  भारत के बैंकिंग इतिहास में ऐसा पहली बार होगा जब सरकार चार सरकारी बैंकों को बेचेगी या उनका निजीकरण करेगी. वैसे मार्च 2017  में, देश में 27 सरकारी बैंक थे, जिनकी संख्या अप्रैल 2020  में घटकर 12  रह गयी. अब चार सरकारी बैंकों- बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ महाराष्ट्र, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक में सरकार अपनी हिस्सेदारी बेचना चाहती है. इनमें बैंक ऑफ इंडिया बड़ा बैंक है, जबकि अन्य तीन छोटे. बैंक ऑफ इंडिया में 50 हजार, सेंट्रल बैंक में 33 हजार, इंडियन ओवरसीज बैंक में 26 हजार और बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 13 हजार कर्मचारी कार्यरत हैं. इन सबकी कुल 15 हजार 732 शाखाएं हैं.
इसके मूल में कोरोना काल में सरकारी राजस्व में भारी कमी आना है. सरकार विनिवेश के जरिये इस कमी को पूरा करना चाहती है. वित्त वर्ष 2021 में सरकार के लिए विनिवेश के लक्ष्य को हासिल करना लगभग नामुमकिन है. इसलिए, वित्त वर्ष 2021  में विनिवेश के लक्ष्य को कम करके 32 हजार करोड़ रुपये किया गया है. वित्त वर्ष 2022  के लिए सरकार ने विनिवेश से राजस्व हासिल करने का लक्ष्य 1.75 लाख करोड़ रखा है, जिसमें से एक लाख करोड़ सरकारी बैंकों और वित्तीय संस्थानों में सरकार की हिस्सेदारी बेचकर जुटाने का प्रस्ताव है.
इंडियन ओवरसीज बैंक में सरकार की हिस्सेदारी 95.8 प्रतिशत, बैंक ऑफ महाराष्ट्र में 92.5 प्रतिशत, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया में 92.4 प्रतिशत और बैंक ऑफ इंडिया में 89.1 प्रतिशत है. बैंक ऑफ महाराष्ट्र और सेंट्रल बैंक में अगर सरकार अपनी हिस्सेदारी को घटा कर 51  प्रतिशत करती है, तो उसे 6400 करोड़ रुपये मिलेंगे. इसी तरह, यदि सरकार बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन ओवरसीज बैंक में अपनी पूरी हिस्सेदारी बेच देती है, तो उसे लगभग 28 हजार 600 करोड़ मिलेंगे. इंडियन ओवरसीज बैंक के पास सबसे ज्यादा इक्विटी कैपिटल है, जबकि बैंक ऑफ इंडिया के शेयरों का बाजार मूल्य दूसरे सरकारी बैंकों से ज्यादा है.
 यह सही है बैंकों को बेचने से सरकार को उसकी पूंजी वापस मिल जायेगी, इन बैंकों में और अधिक पूंजी डालने की जरूरत नहीं होगी, जिससे सरकार को अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करने में मदद मिलेगी. इसके अलावा, वित्त मंत्रालय, केंद्रीय सतर्कता आयोग आदि जैसे सरकारी विभागों को इन संस्थानों की निगरानी और पर्यवेक्षण की आवश्यकता नहीं होगी, जिससे मानव संसाधन और धन दोनों की बचत होगी. कुछ लोग कयास लगा रहे हैं कि नये अधिग्रहणकर्ता बैंक को अधिक पूंजी वृद्धि के साथ कुशलता से चला पायेंगे.
आज भले ही सरकार बैंकों को बेचना चाहती है, लेकिन इन्हें बेचना उसके लिए आसान नहीं होगा. चार सरकारी बैंकों के निजीकरण से वहां कार्यरत कर्मचारियों की नौकरी जाने की संभावना बढ़ जायेगी. इसलिए, इन बैंकों के निजीकरण का नकारात्मक प्रभाव सरकार की छवि पर  निश्चित ही होगा. इन बैंकों का सेवा शुल्क भी बढ़ जायेगा. ग्रामीण इलाकों में सेवा देने से भी ये बैंक परहेज करेंगे. सरकारी योजनाओं को लागू करने से भी इन्हें गुरेज होगा.
अभी भी देश का एक तबका निजीकरण को हर मर्ज की दवा समझता है, लेकिन यह पूरा सच नहीं है. कई निजी बैंक डूब चुके हैं. ताजा मामला यस बैंक और पीएमसी का है.

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