शाहनवाज हुसैन का पुनर्मूषको भव अवतार
- राकेश अचल, वरिष्ठ पत्रकार ग्वालियर
भारतीय जनता पार्टी की विचारधार से भले ही मेरी असहमति मित्रों को अखरती हो लेकिन एक बात आपको बता दूँ कि मै भाजपा का इस बात के लिए कायल हूँ कि ये पार्टी अपने कठपुतली नेताओं का पूरा ख्याल रखती है और मौका मिलते ही उनका पुनर्वास भी करती है. भाजपा में मूषक को हाथी और हाथी को मूषक बनाने में देर नहीं लगती. पूर्व केंद्रीय मंत्री शानवाज हुसैन को बिहार में मंत्री बनाया जाना इसका साफ उदाहरण है.
शाहनवाज हुसैन भाजपा के कम उम्र के प्रवक्ताओं में से एक हैं, वे शालीन हैं, शर्मीले हैं लेकिन जरूरत पड़ने पर वे पार्टी के लिए कुछ भी करने को तत्पर दिखाई देते हैं. आपको याद दिला दूँ कि शाहनवाज हुसैन ने भारतीय जनता पार्टी में अपनी राजनीतिक शुरुआत 1999 में 13 वें लोकसभा चुनाव से की थी. वे सबसे कम उम्र में केंद्रीय मंत्री बने थे. उन्होंने उस समय मानव संसाधन विकास युवा मामले और खेल, खाद्य संस्करण, उद्योग मंत्रालय का प्रभार संभाला। 2001 में उन्हें कोयला मंत्री के रूप में अलग से प्रभाव दिया गया था. हुसैन की निष्ठा और दक्षता को देखते हुए 2001 की दूसरी छमाही में उन्हें नागरिक उड्डयन मंत्री के रूप में पदोन्नति मिली. 2003 में उन्हें कपड़ा मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया. हालांकि शाहनवाज 2004 में चुनाव हार गए और इसके बाद 2006 में वे भागलपुर लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े और और 15 वीं लोकसभा के सदस्य बने.
शाहनवाज को एक बार फिर से 2014 के चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा. जिसके कारण 2019 के लोकसभा चुनाव में इन्हें पार्टी द्वारा प्रत्याशी नहीं बनाया गया. लेकिन, इसके बावजूद वे संगठन के कार्य में लगे रहे. जिसका उपहार शाहनवाज को अब जाकर मिला है. हुसैन की नयी ताजपोशी को उनकी पदोन्नति कहा जाये या अवन्ति ये आप खुद तय कर सकते हैं.
शाहनवाज भाजपा के केंद्रीय नेता थे, लेकिन उन्हें चुपचाप किसी गोपनीय योजना के तहत बिहार भेज दिया गया. बिहार में पहले उन्हें बिहार विधान परिषद में एमएलसी बनाया गया, इसके बाद बिहार में उद्योग मंत्री बनाया गया. कहा जाता है कि शाहनवाज को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के आग्रह पर बिहार भेजा गया है. सुशील मोदी के राज्यसभा जाने के बाद एक भरोसेमंद साथी की जरूरत थी, जिसकी कमी शाहनवाज हुसैन पूरा करते हुए नजर आ रहे हैं.
आपको याद हो कि न हो लेकिन नीतीश और शाहनवाज की दोस्ती अटल बिहारी वाजपेई के जमाने से चली आ रही है. बिहार के दोनों नेता को अटल जी भी बहुत पसंद किया करते थे. बिहार के लिए जाने वाले हर एक हर एक फैसले में दोनों की संयुक्त भागीदारी होती थी.
ऐसा माना जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शाहनवाज को जम्मू-कश्मीर में भाजपा का खाता खुलवाने में अप्रत्याशित मेहनत करने के कारण नवाज गया है. शाहनवाज हुसैन ने वहां मेहनत भी खूब की थी. शाहनवाज हुसैन ने चुनावों को लेकर पहले अच्छी तैयारी की थी. वो चुनावी रैलियों में उर्दू जबान का ही इस्तेमाल करते थे और कश्मीरी पोशाक ही पहनते थे. मकसद साफ था - वो एक आम कश्मीरी की तरह लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रहे थे और अपने मिशन में कामयाब भी रहे. शाहनवाज हुसैन महीने पर कश्मीर में डेरा डाले रहे और आंकडों के हिसाब से हर रोज एक से ज्यादा चुनावी रैली किये. मदद के लिए केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी को भी भेजा गया था लेकिन वो शिया बहुल इलाकों तक ही सीमित रहे. मुख्तार अब्बास नकवी शिया मुसलमान हैं, जबकि सुन्नी मुस्लिम होने के नाते शाहनवाज हुसैन बहुसंख्यक आबादी में बीजेपी के लिए वोट मांगते रहे. शाहनवाज हुसैन को पटना भेजे जाने के पीछे कहीं वही रणनीति तो नहीं है जो पूर्व नौकरशाह अरविंद शर्मा को लखनऊ भेजे जाने के पीछे समझी जा रही है?
बिहार की राजनीति में शाहनवाज हुसैन की एंट्री काफी हद तक वैसे ही हुई है जैसे यूपी में आईएएस अफसर रहे अरविंद शर्मा की थी. दोनों को दिल्ली से क्रमश पटना और लखनऊ भेजा गया हैं - क्या दोनों को भेजे जाने के पीछे केंद्रीय नेतृत्व की सोच एक जैसी हो सकती है?
माना जा रहा है कि जैसे दिल्ली में बीजेपी का मुस्लिम चेहरा मुख्तार अब्बास नकवी हैं और यूपी में मोहसिन रजा, करीब करीब वैसे ही शाहनवाज हुसैन को बीजेपी बिहार में अपने मुस्लिम चेहरे के तौर पर पेश कर रही है. बीजेपी को बिहार में मुस्लिम वोट तो मिलने से रहा, क्योंकि वो तो बकौल साक्षी महाराज, असदुद्दीन ओवैसी के खाते में जमा होता है - और अब शाहनवाज हुसैन के जरिये लगता है बीजेपी ने नीतीश कुमार के सम्पर्कों पर धावा बोल दिया है.
शाहनवाज के पटना में पुनर्वास से ये संकेत मिलने लगे हैं कि भाजपा अपनी पार्टी के तमाम सक्रिय और निष्क्रिय नेताओं को एक बार फिर नयी भूमिका दे सकती है. अगला नंबर मध्यप्रदेश का हो सकता है क्योंकि मध्यप्रदेश में भी भाजपा की सरकार होते हुए भी हालात अच्छे नहीं हैं. मुमकिन है कि मध्यप्रदेश में भी केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को एक बार फिर राज्य की राजनीति में वापस भेज दिया जाये, क्योंकि एक कृषिमंत्री के रूप में वे ज्यादा सफल नहीं हो पाए हैं. हालाँकि तोमर और हुसैन की राजनीतिक पहुँच और पार्टी में हैसियत अलग-अलग है, मध्यप्रदेश से राज्य सभा के सदस्य रह चुके प्रभात झा जैसों के पुनर्वास की भी चर्चाएं हैं. अब पार्टी किसे हठी और किसे मूषक बनाएगी, ये केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्ढा जी जानते हैं.
मध्यप्रदेश के एक और नेता पिछले कई वर्षों से बंगाल में ऐड़ियाँ घिस रहे हैं. यदि बंगाल विधानसभा चुनाव में भाजपा ममता बनर्जी सरकार को अपदस्थ कर स्की तो मुमकिन है कि मध्य प्रदेश के कैलाश विजयवर्गीय को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाकर भेज दिया जाये और शिवराज सिंह चैहान को केंद्र में बुला लिया जाये.लेकिन अभी ये सब कयास से अधिक कुछ नहीं है. हाँ ये बात जरूर है कि भाजपा कांग्रेस या दुसरे दलों के मुकाबले दूर की सोचती है और वैसी ही रणनीति भी बनाती है.