साबित हो गया, वर्धा पर्यटन स्थल नहीं तीर्थ है

Category : आजाद अभिव्यक्ति | Sub Category : सभी Posted on 2021-02-08 08:30:44


साबित हो गया, वर्धा पर्यटन स्थल नहीं तीर्थ है

साबित हो गया, वर्धा पर्यटन स्थल नहीं तीर्थ है
- राकेश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार भोपाल
आजादी के 75 साल पर देश के सामने खड़े सवालों का जवाब खोजने की पहल शुरू हो गई है. सवाल उठाते और उनका जवाब खोजते लोग वर्धा में जुटे हैं. उसी वर्धा में जहाँ 1936 में गाँधी जी आये थे, जो दत्तोपंत ठेंगडी का वर्धा है, जिसके बारे में धर्मपाल जी लिख गये हैं, यह पर्यटन स्थल नहीं तीर्थ है. देश की दशा पर चिंतित लोगों के समूह को पहले ही दिन दिशा सूझना शुरू हो गई है. अपने आशीर्वाद में बाल विजय भाई ने रास्ता सुझा दिया “आज लोकसभा, राज्यसभा के साथ देश को आचार्य सभा की जरूरत है.” नई पीढ़ी को मालूम हो, यह बात अनुभव और देश की 75 साल से अधिक की निगहबानी कर रहे बाल विजय भाई, संत विनोबा भावे के अनुगामी हैं. उनके साथ भूदान के निमित्त यात्रा और निरंतर साथ ने उन्हें देश के तेवर और तासीर को समझने की वो अद्भुत दृष्टि दी है जो  आजादी 75 साल के बाद देश के सामने उठते सवालों का हल है.
आज लोकसभा-राज्यसभा हैं, फिर भी किसान आन्दोलन जारी है. वार्ता के दौर कोई हल देश को नहीं दे पा रहे हैं. किसान और मजदूर दोनों इस राज में हलकान हैं. कोरोना काल के कारण मजदूर और सरकार की हठ के कारण किसान परेशान हैं. बात फिर वही आ जाती है जो आज वर्धा मंथन के पहले दिन निकली है. जब शोरशराबे  में डूबी लोकसभा और राज्यसभा शांत चित्त से कोई विचार न कर पा रही हो, बहुमत के दम बिना विचारे कानून पारित हो कर लागू हो रहे तो ऐसे समय में नियंत्रण कौन करे, यदि आचार्य सभा जैसा कोई संगठन देश में होता तो रास्ता दिखाता. 75 साल की आजादी के बाद क्या खोया क्या पाया. पर 15 अगस्त  2021 को विचार करेंगे तो वर्धा मंथन के पहले दिन 6 फरवरी 2021 से रौशनी मिलेगी.
वास्तव में 6 फरवरी की आचार्य सभा की अनौपचारिक बैठक ही तो थी. केन्द्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी ने देश आगे कैसे बढ़े इसके एकदम सरल उपाय बताये. उनके अपने प्रयोग, कार्य करने की पद्धति देश के लिए बहुत कुछ कर सकती है. जैसे बायो सीएनजी और उससे छोटे वाहन से लेकर ट्रेक्टर तक चलाने के प्रयोग देश में क्रांति ला सकते हैं.
वर्धा मंथन के पहले दिन ने फिर ये रेखांकित कर दिया कि ग्राम भारत के सर्वांगीण विकास की मूल इकाई सनातन काल से है. वेद से लेकर विष्णु सहस्त्रनाम के सन्दर्भ के साथ ग्राम और कृषि विकार और कारीगरों के हुनर बचाने की चिंता किसी तीर्थ में ही सकती थी, जो  हुई.
महत्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलपति और आचार्यों ने देश के सामने मौजूदा और आसन्न संकट के हल खोजने को व्यथित उस समुदाय के स्वर को बुलंद किया है, जो सच में देश के लिए कुछ करना चाहता है. पद्म श्री डॉ महेश शर्मा ने सबको जोड़ने का भागीरथ प्रयास किया है. उनका जिन 5 बातों पर जोर है, वे देश को नई दिशा दे सकती हैं.
1. धारणक्षम  जीवन शैली और विकास के नये प्रतिमान.
2. बुनियादी जरूरतों के लिए सभी सक्षम लोगों को समुचित रोजगार.
3. विकेन्द्रित व्यवस्था हेतु समुचित प्रोधोगिकी एवं समुचित प्रबन्धन.
4. जल और पर्यावरण संरक्षण और संवर्धन तथा
5. भारतीय राज्य व्यवस्था.
ये पांच बिंदु देश में परिवर्तन ला सकते है.
मंथन फिर लौट कर श्री नितिन गडकरी की बात पर लौटता है. “राजनेता की दृष्टि पांच साल यानि अगले चुनाव तक होती है. विचारक और दृष्टा तो अगले सौ साल तक का सोचते हैं.”  ऐसे विचार और दृष्टि तो किसी तीर्थ में ही मिलती है, किसी पर्यटन स्थल में नहीं.

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