किसान आंदोलनकारियों से बातचीत के लिये बढ़ने की अपील करे संसद
किसान आंदोलनकारियों के सामने सरकार की ओर से जो प्रस्ताव रखा गया था उसे स्वीकार करने, उस पर चर्चा करने या किसानों की ओर से सरकार के प्रस्ताव से बेहतर प्रस्ताव पर चर्चा की बात एक फोन काल दूर है. पर किसान वह काल करने को राजी नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी बना दी और उसमें किसान कानूनों पर विमर्श के लिये तैयार नहीं हैं किसान आंदोलनकारी. शांतिपूर्ण आंदोलन के कारण दिल्लीवासियों को जो भारी परेशानियां हो रही हैं और दिल्ली की सीमाओं पर जहां किसान जमे हैं उनके कारण हाईवे के पास के किसानों को भारी दिक्कतें हो रही हैं. उनका कारोबार चैपट हो रहा है वे भी सड़कें खाली कराने के लिये आंदोलन कर रहे हैं. फिर भी किसान आगे नहीं आ रहे हैं. कहा जा रहा है कि इसका कारण वे ताकतें हैं जो पर्दे केे पीछे से आंदोलन का संचालन कर रही हैं. उनका उद्देश्य किसानों की भलाई नहीं मोदी को सत्ता से हटाना है. इसमें देश की राजनीतिक और सामाजिक ताकतें ही नहीं विदेशी ताकतें, आतंकवादी ताकतें भी शामिल हैं जिनका लक्ष्य देश को कमजोर करना है. छह साल से मोदीजी की अगुआई में देश जो तेजी से विकास कर रहा है उससे वे भी परेशान है ंऔर मोदीजी को सत्ता से हटाना चाह रही हैं. इसका ताजा प्रमाण टीवी पर चल रहे वे शो हैं जो बता रहे हैं कि तीन जनवरी से आंदोलन को किस प्रकार हिंसक बनाना है और 26 जनवरी को हिंसा को शीर्ष पर पहुंचाना है यह विदेशी ताकतों ने तय कर दिया था उसी को देश में छिपी देशद्रोही ताकतों ने लालकिले पर तिरंगे का अपमान कर अंजाम दिया. यह काम उन्होंने नासमझ किसान आंदोलनकारियों के कंघों पर अपनी बंदूकें रख कर किया. तिरंगे के शर्मनाक अपमान से देश दुनिया में भारत की बदनामी हुई. आंदोलन कमजोर पड़ा लेकिन प्लान बी के तहत इन्हीं ताकतों ने टिकेत के आंसूओं की आड़ में आंदोलन को दुबारा खड़ा कर लिया. पहले 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली पर अड़े थे. दिल्ली प्रवेश पर अड़े थे. सरकार ने समझदारी बता कर रैली करवाने पर कुछ शर्तो पर सहमति दे दी. रैली हुई और शांतिपूर्ण रही, पर आंदोलनकारियों के बीच आस्तीन के सांप के तौर पर पाले जा रहे कुछ असामातिक तत्वों और अतिउत्साही राह भटके युवको की आड़ लेकर ‘ लालकिले पर तिरंगे के अपमान के शर्मनाक कांड को अंजाम देने में देशद्रोही सफल हो गये. वे तो लाशों का अंबार चाहते थे इसी की बात वे पहले कह भी रहे थे पर सरकार ने समझदारी का परिचय दिया और चार सौ सुरक्षाकर्मियों को चोटिल होना स्वीकार कर लिया पर गोलियां नहीं चलाई. दुस्साहस भरा जोश कितना प्रबल था इसका अंदाजा इसी से लगता है कि एक युवा ट्रेक्टर चालक ने तेज गति से ट्रैक्टर घुमा कर पुलिस वालों को डराते डराते तेजी से अपने ट्रैक्टर को एक मजबूत अवरोधक पर चढ़ा दिया ताकि वह हट जाए. इसमें उसका ट्रैक्टर पलट गया और युवा मारा गया. राजनीति इतनी प्रबल है कि कांग्रेस का कोई नेता घायल सुरक्षा जवानों को देखने नहीं गया पर कांग्रेस महामंत्री प्रियंका गांधी मृत युवा के गांव जा पहुंची और मृत जवान के परिजनों को सांत्वना दी. विदेशी ताकतें तिरंगे के शर्मनाक हिंसा के बाद भी मानवाधिकारों के नाम पर किसानों को समर्थन देती दिखी और जब आंदोलन के समर्थन में क्रिकेट के भगवान कहे जाने वाले सचिन तेंदूलकर व अन्य जानीामानी हस्तियों ने वार्ता के समर्थन में आवाज उठाई तो कहा गया कि इनका किसानों से क्या संबंध है. ये क्यों बोल रहे है. आंदोलन के समर्थन में दूसरे क्षेत्रों की हस्तियां कथित किसान पुत्र बन बोल रही है तो सही है और दूसरे विरोध में तो नहीं पर वार्ता के पक्ष में बोेलें तो गलत.
संसद में वही सब हो रहा है जो राजनीतिक लाइनों पर अपेक्षित था. किसान सही हैं. मोदीजी बड़ा दिल बताएं और कानूनों को वापस ले लें आदि आदि. पर यह क्यों नहीं कहा जा रहा कि किसानों आप बड़ा दिल बताओ और बातचीत की टेबिल पर आकर कानूनों की खामियां बताओ, सुझाव दो. कमेटी में शामिल हों. एक सुझाव हे कि कानूनों को एक डेढ़ साल नहीं अनिश्चितकाल के लिये स्थगित कर बात करो. यह बात सिर्फ हवाई है. सरकार कह चुकी है कि बात तो शुरू करो कमेटी बनाते हैं और जब तक बात पूरी न हो कानूनों को स्थगित रख सकते हैं. हां यह काम अनंतकाल तक तो चल नहीं सकता. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी कमेटी को दो माह का समय दिया है. सरकार ने एक से डेढ़ साल का. यह भी कहा है कि जरूरत हुई तो इसे कुछ ओर बढ़ा सकते है पर अनन्तकाल तक नहीं.
वर्तमान हालात यह है किसान अगर तीनों कानून वापस लेने से रंचमात्र भी पीछे हटने को तैयार नहीं है तो सरकार भी तीनों कानूनों को लागू करने को लेकर दृढप्रतीज्ञ है. हां सरकार अपने प्रस्ताव और बात पर राजी है जिस पर एक फोन काल मात्र से आगे बढ़ा जा कसता है. उम्मीद की जानी चाहिये कि संसद से कोई सर्वसम्मत आवाज उठेगी और किसानों से कहेगी कि सरकार का न सही. अपना ही कोई प्रस्ताव लेकर बातचीत की टेबिल पर आइये. वार्ता से ही समाधान निकलेगा. अब देखना यही है कि विपक्ष का मकसद हंगामा मचाकर राजनीतिक वापसी ही रहता है या वह कुछ रचनात्मक होकर कोई कदम उठाता है.