कमलनाथ की उछाली चुनौती को बिना सोचे समझे स्वीकार कर भोपाल से संसदीय चुनाव लड़ने वाले दिग्विजयसिंह को मोदी शाह की जोड़ी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को चुनाव लड़वाकर हरा कर सबक सिखा चुकी है. और अब लगता है कमलनाथ की बारी है. इसका अहसास मुझे फेसबुक पर वरिष्ठ पत्रकार दिनेश निगम त्यागी की एक पोस्ट पढ़ने के बाद हुआ है. हालांकि उस पोस्ट का इशारा भी इसी ओर प्रतीत होता है.
बात ज्योतिरादित्य सिंधिया के कट्टर समर्थक और शिवराजसिंह सरकार के वरिष्ठ मंत्री गाोविंदसिंह के 26 जनवरी को छिंदवाड़ा में ध्वजारोहण से निकली है. कमलनाथ जब से छिंदवाड़ा में चुनाव लड़ने आये हैं तब से सिर्फ एक बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा है. 1996 में कमलनाथ ने उनकी पत्नी अलकानाथ को छिंदवाड़ा से चुनाव लड़वाया था और वे जीत गई थी. पर उन्हों ने बाद में इस्तीफा देकर सीट खाली कर दी तो 1997 हुए उपचुनाव में कमलनाथ को भाजपा के वरिष्ठ नेता सुंदरलानल पटवा ने हरा दिया था. 1998 में हुए चुनाव में कमलनाथ फिर से छिंदवाड़ा से जीत कर सांसद बन गये थे. मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने 2019 में अपने पुत्र को छिंदवाड़ा से लड़वाकर जीत दिलाई थी. इसे बताने का आशय यही है कि छिंदवाड़ा की राजनीति कमलनाथ के इशारों पर ही 1980 में पहली बार सांसद बनने के बाद से नाचती रही है.
इन कमलनाथ को हराने का जो तानाबाना मोदीजी और अमितशाह जी की जोड़ी रच रही है उसकी ताकत भाजपा संगठन के साथ साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया का जोश और ताकत भी है. उन्हें भी कमलनाथ से राजनीतिक हिसाब बराबर करना है. हैं. प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने में ज्योतिरादिय सिंधिया का युवा चेहरा और दिन रात का परिश्रम अहम थे. उसमें कमलनाथ और दिग्विजय सिंह ही रणनीति की भी केन्द्रीय भूमिका थी. पर सरकार बनने के बाद कमलनाथ और दिग्विजयसिंह ने मिलकर सिंधिया को किनारे करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जिससे दुखी और कुपित होकर सिंधिया मन मारकर भाजपा में आ गये और कमलनाथ सरकार गिरा दी. इसमें राजमाता सिंधिया के उन तेवरों को कई लोगों ने देखा था जो उन्होंने द्वारकाप्रसाद मिश्र की सरकार को गिरवाकर गोविंदनारायण सिंह की संविद सरकार बनवाने में दिखाए थे. यह माना जा सकता है कि सिंधिया स्वयं कमलनाथ को छिंदवाड़ा में चुनौती न दें और भाजपा संगठन द्वारा चयनित चेहरा ही ताकत बताए. पर जमीनी और अपने क्षेत्र में लोकप्रिय नेता रहे गोविंदसिंह को सामने कर यह तो बता ही दिया है कि उनकी भी चुनौती की रणनीति में अहम भूमिका हो सकती है. कहीं गोविंदसिंह को छिंदवाड़ा के प्रभारी मंत्री का दर्जा मिल गया तो इस संकेत की पुष्टि तो माना ही जा सकता है.