आर्थिक सर्वेक्षण के सशर्त आशाजनक संकेत

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2021-01-30 00:46:51


आर्थिक सर्वेक्षण के सशर्त आशाजनक संकेत

आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 जब से संसद में पेश हुआ है सरकार इस बात को लेकर झूम रही है कि अगले वित्तीय वर्ष में विकास दर 11 फीसदी रहेगी. अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष इससे पहले 11.5 फीसदी की बात कह चुका है. जब वर्तमान वित्तीय साल की विकास दर 7.5 प्रतिशत का अनुमान है. इस लिहाज से मोदी समर्थकों का उत्साह कुछ तो आधार रखता है. पर याद रखिये यह आंकड़ों का माया जाल है 11 फीसदी का आंकड़ा आने वाले वर्षो में पांच बार बदलेगा तब फायनल विकास दर पता चलेगी. उसी के बाद यह पता चलेगा की 11 फीसदी की जगह हमने अगले वित्तीय वर्ष में किस दर से विकास किया था. लेकिन बजट की सीामाएं है इसलिये सारी चर्चाएं हमेशा ही इसी प्रकार अनुमानों पर चलती है.
आर्थिक सर्वेक्षण बताता है कि देश में निवेश बढ़ा है यह आशाजनक है. पर इसमें ज्यादा हिस्सा तो सरकारी निवेश का है. निजी निवेश अभी भी नहीं बढ़ रहा है. क्योंकि लोग अभी खर्च नहीं कर रहे हैं जिससे निजी क्षेत्र इंतजार में है. सरकार विभिन्न प्रकार की देसी और विदेशी कंपनियों से कर्जा लेकर निवेश कर रही है जो देश को चलाने और कल्याणकारी लोकतंत्र को बनाए रखने के लिये अनिवार्य है. इसलिये सरकारी उधारी 12 लाख करोड़ की हो चुकी है. उस हिसाब से कर्ज में 833 प्रतिशत की वृद्धि बता रहा है. यही नही अब रेलवे सहित अन्य एजेंसिया खुद भी बाजार से और विदेशी संस्थाओं से कर्जा लेने लगी है जो बजट में परिलक्षित नहीं होता है. इस लिहाज से चिंता और बढ़ जाती है. चुनावी राजनीति छूटों और रियायतों की बौछार के लिये बाध्य कर देती हैं. इसलिये वित्तीय घाटा कहां जाएगा यह बताना कठिन है.
आर्थिक सर्वेक्षण जब भी आता है तो इनकम टैक्स की रियायतों की चर्चा होती ही है. इस बार भी इसी की चर्चा है कि क्या इनकम टैक्स की सीमा ढ़ाई लाख से पांच लाख होगी? हालात को देखकर जमीनी धरातल पर चर्चा करने वाले कहते हैं कि यह तीन लाख हो जाए यह संभव है. इसका कारण है कि सरकार ने इनकम टैक्स की दो दरों में से कम छूट वाली कम दर की योजना करीब करीब विफल हो चुकी है. सरकार आज तक इसके आंकड़े सार्वजनिक नहीं कर पाई है. सफाई यह है कि जुलाई तक टैक्स रिटर्न की तारीख है उसी के बाद शायद सरकार बता सकेगी.
स्ट्रक्चरल रिफार्म की भी चर्चा सर्वेक्षण में अकसर होती है. पर मोदी सरकार ने इसका नाता बजट से करीब करीब तोड़ दिया है. साल के बीच में इस प्रकार के कदम उठा लेती है. रेलवे, बैंक व सार्वजनिक क्षे़त्र में ऐसा ही देखा गया है.
नये करों की आशंका की भी चर्चा है पर सरकार इस अप्रिय कदम से बचना चाहेगी उसकी जगह वह सेस लगाने की दिशा में बढ़ सकती है जैसे कोविड सेस या स्वास्थ्य सेवाएं सेस, या रक्षा सुरक्षा सेस आदि. पर राज्यें के विरोध की संभावनाओं को देखते हुए वह इस पर भी एहतियात बरतेगी क्योंकि सेस से राज्यों को कोई हिस्सा नहीं मिलता है. चर्चा इस बात की है कि सरकार इसकी जह बांड जारी कर सकती है. इसमें भी वह टैक्स फ्री बांड उसके लिये ज्यादा मुफीद हो सकते हैं.
अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिये सरकार लोगों से खर्च बढ़ाने की अपेक्षा कर रही है. पर कोविड के कारण लोगों ने खर्च से हाथ खींच रखे हैं. कल कारखानों में मंदी है. 49 लाख सरकारी व अर्धसरकारी कर्मचारियों को छोड़ दें तो बाकी निजी क्षेत्र के कर्मचारी तो डरे सहमे है. बड़ी संख्या में नौकरियां गई हैं या वेतन कटौतियां हुई हैं. यह स्थिति कब तक सुधरेगी कोई नहीं जानता इसलिये वे खर्च नहीं करने के मूड में है. एक रुपया बचाने के लिये तीन रुपया खर्च करने की मजबूरी वाली योजना फेल हो चुकी है. दस हजार की खरीद हेतु कर्ज की योजना भी परिणाम दे पाई क्योंकि आज दस हजार में तो ढंग का मोबाइल फोन तक नहीं आता है. पर आशा की किरण यही है कि लोगों में विश्वास बढ़े जिसके लिये  नरेन्द्र मोदी का जादू ही काम आएगा. यह बात और है कि मोदीजी ने बड़ी संख्या में जहां समर्थक बढ़ाए है वहीं विरोधी भी कम नहीं हैं. खासकर राजनीति, मीडिया, बुद्धिजीवियों में संख्या कुछ ज्यादा ही है क्योंकि मोदी सरकार इन पर वैसी धन और सुविधाओं की छप्पर फाड़ बरसात नहीं करती हैं जैसी मोदी विरोधियों की सरकारें करती रही हैं. इन सबके बाद भी लोगों का मोदीजी पर यकीन है कि वे हालात बदल देंगे. इसलिये आने वाला समय अच्छा ही रहेगा यह बात यकीन से कही जा सकती है.

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