पूर्व नियोजित षड्यंत्र है दिल्ली में किसान आंदोलनकारियों की अराजकता और तिरंगे का अपमान

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2021-01-26 22:01:33


पूर्व नियोजित षड्यंत्र है दिल्ली में किसान आंदोलनकारियों की अराजकता और तिरंगे का अपमान

मोदी विरोध देश विरोध की सीमा तक बार बार जाता रहा है यह कई बार देखा है और किसान आंदोलन की छिपी पर स्पष्ट नजर आ रही मोदी विरोध की राजनीति की परिणिति है दिल्ली में भारी अराजकता और हिंसा. यह विजयी विश्व तिरंगा प्यारा कहने वाले इसके लिये जान कुर्बान करने वाले हिंदुस्तान में देशद्रोहियों और पाकिस्तान समर्थकों, अर्बन नक्सलियों तथा खालिस्तानियों के पर्दे के पीछे से रचे गये षड्यंत्र की सफलता भी है. इसकी आंदोलनकारियों के जाने माने नेताओं को जानकारी थी जिसे वे सप्रयास छिपा रहे थे. अब भी उससे बचने की पुरजोर कोशिष कर रहे हैं. कहा तो यहां तक जा रहा है कि अराजकता में शामिल संगठनों के नेताओं ने आंदोलन के नेताओं को 25 जनवरी की देर रात ही इसकी सारी जानकारी दे दी थी जिसे वे छिपा गये.
कहा जा रहा है कि अन्नदाता किसानों ने देश का विश्वास खो दिया. जबकि ऐसा नहीं है. दिल्ली पुलिस और केन्द्र सरकार ने इसमें गच्चा खाया है. किसानों का राजनीतिक विश्वास भाजपा न खो दे इसलिये किसानों के प्रति नरमी और कृषि सुधार कानूनों के प्रति सख्ती का रवैया केन्द्र सरकार अपना रही थी. इसलिये दिल्ली पुलिस ने नरमी का रुख अपनाया. हालांकि यह भी सही है कि इससे छोटी छोटी अराजकताओं की स्थिति में पुलिस ने जमकर लाठियां चलाई हैं, खूब अश्रुगैस के गोले चलाए हैं और गोलियां तक चलाई हैं पर इसमें उसने यह सब कम किया. गोलियां तो चलाई ही नहीं. यह पुलिस प्रशासन समझ रहा था कि ज्यादा किया और गोली चली तो घायलों की संख्या काफी होगी और मृतकों का आंकड़ा भी डरावना हो सकता है. हो सकता है पुलिस की खुफिया जानकारी आंदोलनकारी नेताओं के दोगलेपन और अराजकता के षड्यंत्र की जानकारी दे रहा हो फिर भी सरकार के दबाव में उसकी अनदेखी की गई.
अब सवाल यही है कि आगे क्या? जवाब है बिना शर्त किसानों की अपने घरों की ओर वापसी हो. एनआईए और ईडी की जांच में तेजी लाई जाए. पाकिस्तानियों, खालिस्तानियों और देश विदेश में बैठी हिंदुस्तान विरोधी ताकतों के उस षड्यंत्र को बेनकाब कर सार्वजनिक किसा जाए जिसे कम्युनिस्टों और जिहादी ताकतों ने युवाओं के कंधों पर बैठकर अमल में लाया है.
किसान कानूनों को साल डेढ साल तक स्थिगित करने का केन्द्र सरकार के प्रतिनिधियों का प्रस्ताव खत्म किया जाए और सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर दो माह तक स्थिगित करने के निर्देश को मानकर सुप्रीम कोर्ट की कमेटी को कानूनों के सुझाावों और संशोधनों को एकत्रित कर रिपोर्ट देने का काम को करने दिया जाए. किसान आंदोलनकारियों सहित सभी लोग इस कमेटी के सामने जाकर अपनी बात रखे.
यह सर्वविदित है कि कांग्रस और कम्युनिस्टों सहित सभी विपक्षी दल कानून विरोध के लिये आंदोलन रत रहेंगे. उसमें वर्तमान किसान आंदोलनकारी भी सहयोग करेंगे. लोकतंत्र में विरोध का सम्मान है इसलिये इसमें कोई बुराई भी नहीं है. लेकिन आंदोलन अन्य आंदोलनों की तरह कानून की मर्यादा में रहे इसका सख्ती से पालन किया जाए. नागरिकों को असुविधा न हो और आंदोलन शांतिपूर्ण रहे तो इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिये. हां वह शाहीनबाग या अब तक चले किसान आंदोलन का रूप दुबारा न ले ले इसका सबको देशहित में सख्ती से ध्यान रखना है इसकी सरकार सहित सबसे अपेक्षा जरूर की जानी चाहिये.

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