शराब को लेकर समाज के एक बड़े कथित आधुनिक तबके में सारी मर्यादाएं टूट चुकी हैं और यह सिलसिला जारी है. भारी भरकम टैक्सेस के बाद भी शराब से ज्यादा मुनाफा देने वाले धंधें कम ही हैं जो भ्रष्टाचार की नाली में डूबकी लगाने के हर आकांक्षी की मांग पूरी करने के बाद भी भरपेट मुनाफा शराब कंपनी और शराब ठेकेदार को दे जाता है. शराबी कहते हैं कि हमारी किस्मत इतनी बुलंद है कि घर के लिये रोटियों का इंतजाम हम भले ही न कर पाएं पर पीने का जुगाड़ तो हो ही जाता है. शराब की लत घर को बर्बाद करती है और शराब की कीमत गरीब की जेब से बाहर जाते ही वह जान का खतरा उठाकर भी कच्ची शराब की शरण में चला जाता है. कानून के जानकार इतने चालाक हैं कि वे उन धाराओं में मुकदमा करते है जिनमें जुर्माने से ही छुटकारा मिल जाता है. कठोर सजा के प्रावधानों को छूकर वे अपने पालनहार आकाओं को नाराज करने का जोखिम नहीं उठाते हैं. यही कारण है कि पूर्ण शराबबंदी वाले राज्यों में भी धड़ल्ले से शराब मिल जाती है. यह बात सही है कि शराबबंदी से घरेलू महिलाओं को महिला हिंसा और उत्पीड़न से एकहद तक राहत मिलती है. पर इससे महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों में कोई उल्लेखनीय कमी आएगी इसकी उम्मीद व्यर्थ लगती है. इन सबके बीच मध्यप्रदेश में शराबबंदी का ढ़ोंग करने पर कुछ लोग क्यों आमादा है यह समझ में नहीं आता.