दाल के खेल पर मोदी की चोट

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2021-01-03 02:35:24


दाल के खेल पर मोदी की चोट

बीस साल से हम आयात की गई दालें खा रहे हैं. इस पर अमरिंदरसिंह और बादल सहित अनेकों लोग कमाकर  खजाना भर रहे हैं. साथ में कनाडा में बसे सिख भी शामिल हैं. इनमें से कई तो कई बार खालिस्तानियों का समर्थन करने के कारण भारत की आंख की किरकिरी बने हैं. उनकी पक्षधर वहां की जस्टिन डुडो की सरकार  भी बनी हुई थी. बीस साल से दालों के आयात पर निहित स्वार्थो और कनाडा की मौज चल रही है.
2005 में मनमोहनसिंह की सरकार ने दालों पर सबसीडी खत्म कर दी तो भारत में दालों की खेती महंगी पड़ने लगी. दो साल बाद ही करीब 2007 में मनमोहनसिंह सरकार ने नीदरलैंड, आस्ट्रेलिया और कनाडा की सरकारों से अनुबंध कर दालों का आयात शुरू कर दिया. तब कनाडा की सरकार ने दालों की खेती के अनुभवी वहां बसे सिखों  को  लैंटिन की खेती के लिये प्रोत्साहित करना शुरू कर दिया. वहां इसके बड़े बड़े लैटिन फार्म बन गये. कनाडा से भारत बड़ी मात्रा में दालों आयात करने लगा.
मोदी सरकार ने अपने कृषि विजन के तहत दाल दलहन और तिलहन को प्रोत्साहन देना शुरू किया तो दालों के आयात में धीरे धीरे कमी करते हुए मोदी सरकार ने दालों के आयात पर रोक लगाई तो कनाडा के सिखों के लैटिन के फार्म सूखने लगे और बादल और अमरिंदरसिंह जैसों के खजाने को चोट पहुंची. चोट जस्टिन डूडो सरकार पर भी लगी. तो सभी तिलमिला गये और किसान आंदोलन में उन्हें मौका मिल गया. इससे भारत सरकार के सारे विरोध और तीखे तेवरों को दरकिनार कर जस्टिन डूडो सरकार किसान आंदोलन के समर्थन में लगी हुई है. आंदोलन को कनाडा से भरपूर आर्थिक सहयोग आ रहा है ताकि मोदी सरकार हिले और हो सके तो गिर जाए. मोदी सरकार ने आंदोलन को मिल रही विदेशी मदद पर शिकंजा कसा तो वे फिर तिलमिला गये.
किसान आंदोलन के खत्म होने के बाद मोदी सरकार देखना पंजाब और हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को बिल्कुल नहीं छेड़ेगी. उन किसानों को भी हाथ नहीं लगाएगी जो एमएसपी पर अपनी उपज बेचने में सफल हो रहे हैं. पर जो इससे वंचित हैं और दूसरी उपजें ले रहे हैं उन्हें निजी खरीददार बेहतर कीमतों पर  दाल दलहन, तिलहन की उपज के लिये प्रोत्साहित कर खुद भी कमाएंगे और किसान भी. देश की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी क्योंकि इससे दालों और तेल के आयात का  भार भी कम हो सकेगा. तब ऐसा भी हो सकता है कि ये किसान  पंजाब और हरियाणा के किसानों से भी ज्यादा कमाने लगे. पंजाब खेती का पैटर्न न बदलने के कारण बंजर भूमि का मालिक होकर रह जाए.
पंजाब को बंजर होने से बचाने के लिये ही मोदी सरकार पूरे प्रयास कर रही है. लड़ाई आने वाले समय के नुकसान और लाभ के बीच है. संभावित लाभ की खुशी पर नुकसान की आशंका स्वाभाविक तौर पर हावी हो जाती है. इसलिये किसान आंदोलित हैं. वहीं मोदी सरकार और भाजपा ने जिन नेताओं और पार्टियों को राजनीतिक वनवास पर भेज दिया है, मीडिया के जिन घुरंधरों को महंगी शराब, सैर सपाटों, मोटे वेतन से वंचित होने को मजबूर कर दिया है. उन सब ने अपनी बंदूके इन आंदोलित किसानों के कंधों पर रख दी हैं.
लेकिन मोदीजी की रणनीति ने शेष भारत में जो अपना किसान  वोट बैंक बना लिया है और जिसका लगातार विस्तार हो रहा है उसको देख  वे विश्वास के साथ मैदान में डटे हुए हैं. अगला संसदीय चुनाव भी मोदी के हाथ में ही दिख रहा है और जो संभावित नारा रहने वाला है वह होगा अगली बार चार सौ पार ............

Contact:
Editor
ओमप्रकाश गौड़ (वरिष्ठ पत्रकार)
Mobile: +91 9926453700
Whatsapp: +91 7999619895
Email:gaur.omprakash@gmail.com
प्रकाशन
Latest Videos
जम्मू कश्मीर में भाजपा की वापसी

बातचीत अभी बाकी है कांग्रेस और प्रशांत किशोर की, अभी इंटरवल है, फिल्म अभी बाकी है.

Search
Recent News
Leave a Comment: