आंदोलनकारी किसान इलेक्ट्रीसिटी विधेयक का विरोध कर रहे हैं. सरकार ने इसे फिलहाल नहीं लाने की बात स्वीकार कर ली है. यह अभी तो ड्राफ्ठ के रूप में ही था इसलिये इसमें ज्यादा दिक्कत थी भी नहीं.
लेकिन इसका विरोध क्यों था तो मेरी नजर से देखें और समझें. इसमें कहा गया था कि किसानों को बिजली का पूरा बिल भरना होगा. जब बिल भर जाएगा तो राज्य सरकारें सबसीडी का पैसा उनके खातों में डाल देंगी. ऐसा इसलिये किया जा रहा था कि राज्य सरकारें किसानों को मनमानी सबसींडी तो दे देती थी पर वर्तमान इलेक्ट्रीसिटी कानून के तहत छूट की पूरी राशि राज्य सरकारों को बिजली कंपनी या बोर्ड को देनी होती थी. राज्य सरकारों की देरी से बिजली वितरण संस्थाएं दिवालिया जैसी हालत में घंसती जा रही थी. विधेयक आ जाता तो सरकार को तुरंत पैसा भरना पड़ता. स्थिति कमोबेश गैस सबसीडी जैसी होती. पंजाब सरकार सामने आकर तो विरोध कर नहीं सकती थी पर परदे के पीछे से वे भी आंदोलनकारियों का इस मांग पर समर्थन कर रही थी. अगर यह नहीं होता और राज्य सरकार इमानदार होती तो वह कह सकती थी कि वह एवरेज राशि एडवांस में किसान के खाते में डाल देगी.
किसानों को डर था कि राज्य सरकारें समय पर पैसा जमा कराएगी नहीं और किसानों के कनेक्शन पेमेंट न करने पर कट जाएंगे. एक दिलचस्प बात और खाते में जो राशि जाती वह तो जिसके नाम जमीन होती उसी के खाते में जाती. पंजाब में तो दो हेक्टेयर वाले ज्यादातर किसान खुद खेती करते ही नहीं हैं. वे जमीन किराये जिसे देते हैं उसी के मातहत मजदूरी करने लगते हैं. या दूसरा कामधंधा पकड़ लेते हैं. अगर उनके खेत में पंप नहीं चलता तो बिल उस किसान का बिजली बिल आता ही कैसे. अगर उसके खेत का पंप चला भी लिया जाता तो राशि तो जमीन के मालिक किसान के खाते में जाती. इस पर पैसे के लेनदेन को लेकर विवाद की स्थिति भी बन सकती थी.
अब आप ही समझ लें कि इस कानून में क्या गलत था. यह वित्तीय जिम्मेदारी का भी सवाल था जिसे वर्तमान हिंदुस्तान में कोई पसंद नहीं करता है.