बिहार में सत्ता पलट या मध्यावधि की आहट

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2020-12-30 07:31:20


बिहार में सत्ता पलट या मध्यावधि की आहट

- बंगाल चुनाव के बाद तय, लेकिन पहले भी संभव
बिहार में 43 सदस्यों वाली जेडीयू के नेता नीतीश  कुमार को 74 सीट वाली भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया है. कर्नाटक में कांग्रेस ने भी ऐसा ही प्रयोग किया था पर विफल रहा. महाराष्ट्र में प्रयोग की बार बार सांस फूलती है. लगता है उद्धव ठाकरे सरकार अब गई, तब गई. लेकिन कम से कम मुझे बिहार में इसकी आशंका तो थी पर कम. लग यही रहा था कि भाजपा नीतीश को अपमानित करने की चाल नहीं चलेगी. नीतीश भी अपमान की आशंका के चलते लालू-तेजस्वी की राजद की ओर नहीं  जाएंगे.
लेकिन अनुमान का दम फूल रहा है. कारण है नीतीश का कथित खुद्दार बर्ताव. इसे मोदी विरोधी मीडिया शुरू से बहुत तूल दे रहा है. नीतीश दोस्त  बदलने में बहुत चतुर हैं यह बात भाजपा जानती है इसलिये उसने नीतीश पर मुख्यमंत्री बनने के लिये दबाव डाला. पर जदयू में भाजपा विरोधी और भाजपा में नीतीश विरोधी लोगों पर न नीतीश लगाम लगा पा रहे हैं न भाजपा. इससे माहौल बिगड़ रहा है.
यह एक कड़वी सच्चाई है कि भाजपा और जदयू दोस्ती की सीमा बिहार तक सीमित है. तभी तो झारखंड में भाजपा का खेल बिगाड़ने जदयू पहुंच गई. अब बंगाल में जाने की काफी समय पहले से घोषणा कर रही है जबकि भाजपा वहां इज्जत की लड़ाई लड़ रही है. भाजपा के रणनीतिकार इससे नीतीश के हवा के साथ बदलने वाले चरि. से अंजान नहीं हैं इसीलिये उन्होंने रामबिलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान को एक हद तक ही रोका. उससे नीतीश की सारी जमावट बिगड़ गई. उनके नजदीकी हार के कारण दूर हो गये. भाजपा में छिपे नीतीश के वफादारों को भाजपा के रणनीतिकारों ने दूर कर दिया.
इन बढ़ती दूरियों में अरूणाचल प्रदेश में जदयू के छह विधायकों के भाजपा में जाने ने आग में घी का काम कर दिया. यह कहीं छपा कि इन विधायकों ने ऐसा क्यों किया? बस यह पता चला कि उनकी काफी समय से इसकी योजना थी. उन्होंने चुपचाप अपना नेता बदल लिया था और जदयू के रणनीतिकारो को भनक नहीं लगी या से जानकर भी अनजान बने रहे. उन्हें यकीन रहा होगा कि भाजपा उसे नहीं होने देगी.
नीतीश पहले दिन से ही मुख्यमंत्री पद के लिये अरुचि की बात सार्वजनिक तौर पर कहते रहे. यह भी कहते रहे कि भाजपा ने दबाव डाल कर उन्हें मुख्यमं.ी बनने को बाध्य किया है. भाजपा बड़ी पार्टी बनने के बाद मनमानी का संदेश देने से बचने के लिये ऐसा करने को बाध्य थी. इसका फायदा नीतीश ने उठाया और अपनी मनमानी के लिये उतारू नजर आने लगे.
वे खुद राजद में जाकर तेजस्वी के मातहत काम करने को तैयार नहीं हैं. तेजस्वी को मातहत बनाकर काम करने का कटु अनुभव वे ले चुके हैं. इसलिये चाहते हैं कि उन पर भाजपा जदयू सरकार को गिराने की तोहमत भी न लेगे और तेजस्वी मुख्यमं.ी बन भी जाएं. तब तक वे मनमानी कर भाजपा की नाक में दम करने की रणनीति पर चल रहे हैं.
उन्होंने जदयू की अध्यक्ष की कुर्सी सीआरपीसी सिंह को अस्थाई तौर पर सौंप दी है. अब पार्टी के बारे में अमित शाह को जो भी बात करनी हो उनसे करें. पार्टी न लव जिहाद पर भाजपा के साथ है न किसान आंदोलन पर. न नागरिकता कानून पर साथ थी और न तीन तलाक पर. इसलिये पार्टी भाजपा पर हमला करे तो बात आरसीपी सिंह से करो, नीतीश से नहीं. नीतीश चुन चुन कर अपने पुराने दोस्तों को मोदीजी को घेरने के लिये तैयार कर रहे हैं. वे जदयू  में रहें या उससे बाहर उन्हें मोदीजी पर हमले में परदे के पीछे से नीतीश का पूरा समर्थन रहेगा. भाजपा इस बात को समझ कर भी अनदेखी कर रही है.
सरकार को लेकर नीतीश अपने विशेषाधिकार को लेकर किसी भी प्रकार के समझौते के पक्ष में नहीं हैं. तो भाजपा क्या करेगी. भाजपा विकास की योजनाएं देगी,   मंत्री   पद के लिये नाम देगी. फैसला नीतीश करेंगे और उनके इशारों पर चलने वाले जदयू कोटे से बने मंत्री. किसे कौन सा विभाग देना है ये तो नीतींश ही विशेषाधिकार के तहत नीतीश ही तो तय करेंगे. केन्द्र में मोदीजी भी तो यही करते हैं इसलिये नीतीश कुमार ने वहां किसी को मंत्री नहीं बनने दिया.
अपने लालू अंदाज में बिहार के जमीन से गहराई  तक जुड़े एक वरिष्ठ पत्रकार ने तेजस्वी के मुख्यमंत्री बनने की अटकल लगा कर तारीख तक बता दी है. मुझे भी लगता है यह सही है. बस नीतीश कुमार कब तक भाजपा को पलटकर जवाब देने को मजबूर कर पाते हैं यह तो समय ही बातएगा.

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