पांच हेक्टेयर तक के किसानों में 90 फीसदी किसान शामिल हो जाते हैं. बचे दस फीसदी किसानों की उपज इन 90 फीसदी के बराबर होती है. सुविधाओं की मांग 90 फीसदी की आड़ में होती है और लाभ 10 फीसदी वाले उठाते हैं. अकेले 90 फीसदी वाले ही राशन के लिये जरूरी अनाज और धान पैदा कर लेते हैं. जबकि 10 फीसदी वाले तो इसकी दोगुनी उपज देते हैं. इन्हें मिलाकर तीन गुनी उपज हो जाती है जिसे एमएसपी पर खरीदने के लिये भारत का पूरा बजट भी कम पड़ जाएगा. यही समस्या है जिसका समाधान राजनीतिक कारणों और बड़े किसानों के दबाव के कारण नहीं हो पा रहा है. इसके लिये आड़ 90 फीसदी छोटे किसानों की ली जा रही है.
समय आ गया है कि जिस प्रकार बीपीएल श्रेणी है उसी प्रकार से किसानों में भी सुविधाओं के लिहाज से श्रेणियां बनाई जाएं और उसके हिसाब से सुविधाओं की सीमा तय की जाए.
यह सब आंदोलनकारी किसानों से चल रही बातचीत में तय हो किया जा सकता है. क्योंकि यह वार्ता तभी संभव होगी जब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में विशेषज्ञों, किसानों और सरकार के प्रतिनिधियों के बीच होगी. किसानों और आंदोलनकारियों की सीधी बातचीत की उम्मीद न के बराबर है क्योंकि सरकार ने जो आमंत्रण भेजा है वह आंदोलनकारियों के मुताबिक सरकारी एजेंडे की शर्त के साथ है यानि एक एक क्लाज पर बातचीत और संशोधन जिसे किसान आंदोलनकारी ठुकरा चुके हैं और यस और नो की बात कर अपनी राय जता चुके हैं. आंदोलनकारी अपने एजेंडे पर बात करना चाहते हैं यानि पहले तीनों कृषि कानूनों की वापसी फिर नये सिरे से कानूनों के प्रस्ताव की रचना. इसे सरकार पहले से ही ठुकरा चुकी है. इसी प्रकार गतिरोध बना था और सरकार के बातचीत के नये प्रस्ताव के बाद इसी गतिरोध के बने रहने की संभावना है. तब उम्मीद क्या बनती है. साफ है कि जब 6 जनवरी केा सुप्रम कोर्ट का अवकाश खत्म होगा तभी बातचीत शुरू होगी.