ज्योतिरादित्य सिंधिया अपने समर्थकों के साथ भाजपा में आ गये. पहली शर्त सभी को कांग्रेस वाली मंत्री की स्थिति और चुनाव में टिकट मिल जाए यह पूरी हो गई. चुनाव बाद कुछ जीत गये तो कुछ हार गये. हारने वाले जो मंत्री थे वे निगम मंडलों में टिकट चाह रहे हैं. इसमें हारने वाले पूर्व विधायक भी हैं जो क्षतिपूर्ति के तौर पर निगम मंडलों में जगह मांग रहे हैं. जीतने वाले पूर्व मंत्री अभी तक मंत्री न बनाए जाने से दुखी हैं. अभी तक ज्योतिरादित्य सिंधिया की नजर में उनके समर्थकों की मांगें जायज हैं. सिंधिया अपने समर्थकों के लिये संगठन में भी जगह मांग रहे हैं.
कोढ़ में खाज वाली एक ओर स्थिति यह बनी है कि इंनकम टैक्स विभाग ही जांच रिपोर्ट के आधार पर जिन नेताओं और अफसरों पर कार्यवाही की जानी है उनमें सिंधिया समर्थक अफसर और नेता भी शामिल हैं. इनमें मंत्री बिसाहूलाल सिंह, राजवर्धन सिंह दत्तीगांव, प्रद्युम्न सिंह तोमर, एंदल सिंह कंसाना सहित कई प्रमुख नाम शामिल है. इसे लेकर शिवराज सरकार असमंजस में है.
ज्योतिरादित्य और उनके समर्थकों को अपने बेहतर भविष्य के लिये जमीनी हकीकतों को स्वीकार करना होगा. ज्योतिरादित्य को भाजपा में पूरा सम्मान और अवसर मिल रहा है. उन्हें अपने को बेहतर भाजपा नेता साबित करने के लिये पूरा समय मिलेगा. यही बात सिंधिया समर्थको के लिये भी लागू होती है. इन सबको याद रखना होगा कि यह भाजपा है कांगे्रस नहीं. कांग्रेस पार्टी से ज्याद एक ऐसा प्लेटफार्म है जहां कट्टर से कट्टर विरोधी भी साथ में रह कर फलफूल सकते हैं जबकि भाजपा पार्टी है प्लेटफार्म नहीं. यहां कतिपय मापदंड हैं उनका कठोरता से पालन किया जाता है. अपवाद जरूर रहते हैं पर बेहद कम. इसलिये ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके समर्थकों को साबित करना होगा कि वे भाजपा के प्रचार प्रसार के लिये कितना काम कर पाते हैं? ज्योतिरादित्य सिंधिया उनकी परिक्रमा को ही राजनीति मानने वालों को उतना लाभान्वित कभी नहीं कर पाएंगे जितना कांग्रेस में कर लेते थे. कार्यकर्ताओं के लिये भी यही कहा जा सकता है कि अब अनका काम बोलेगा, उनकी सिंधिया की परिक्रमा ज्यादा काम नहीं आएगी.