कृषि कानूनों को लेकर भाजपा देशभर में जनजागरण अभियान चलाए यह सही कदम है. इसके लिये किसान सम्मेलन करे यह भी ठीक है. इसमें मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के साथ साथ बिहार को भी जोड़े. इनमें हिमाचल, कर्नाटक, गोवा, जम्मू कश्मीर और लद्दाख को भी जोड़ा जा सकता है. इसमें ज्यादा अड़चनें नहीं आएंगी. राजस्थान, छत्तीसगढ में भी ज्यादा परेशानी नहीं है क्योंकि वहां भाजपा काफी मजबूत है.
किसान सम्मेलनों के साथ साथ कांट्रेक्ट फार्मिंग और किसान संगठनों की कपनी बनाने को भी अभियान के तौर पर चलाए जाने की जरूरत है. कांट्रेक्ट फार्मिंग में किसानों को जो बेहतर कीमत मिलेगी वह कानूनों के पक्ष को और जन जागरण को मजबूत करेगी.
यह इसलिये कि पूर्वोत्तर की हल्दी अमेरिका में अच्छी कीमत पर बिकी इसका प्रचार हुआ. यह बेहतरीन गुणवत्ता की थी इसलिये बिकी लेकिन सबसे बड़े हल्दी उत्पादक राज्य तेलंगाना के हल्दी उत्पादकों की हालत तो बेहद खराब है. उनकी हल्दी भी तभी अच्छी कीमत पाएगी जब बेहतर टेक्नालाॅजी और पूंजी आएगी. यह तेलंगाना सरकार के बस की बात नहीं है. वह तो बस परंपरागत तरीके से नगद मदद और सबसीडी से किसानों को बहलाती रहेगी और हल्दी किसान मदद को हाथ फैलाता गरीब का गरीब बना रहेगा. लेकिन कांट्रेक्ट फाार्मिंग संभव है कि हल्दी किसानों को अच्छी तकनीकी और पूंजी सपोर्ट मिले और वे गरीबी के चंगुल से एक हद तक मुक्त हो सके.
कांट्रेक्ट फाार्मिंग का लाभ भाजपा शासित राज्यों और बेहतर भाजपा संगठन वाले अन्य दलों के शासित राज्यों में दिलाने का अभियान कृषि कानूनों को समर्थन दिलाने में सहायक साबित होगा. सुप्रीम कोर्ट के अवकाश के सात दिन इसके लिये बेहतरीन अवसर साबित होंगे. क्योंकि आंदोलनकारी किसानों की जिद केवल सुप्रीम कोर्ट में ही टूटेगी और वे सुप्रीम कोर्ट की प्रस्तावित कमेटी में बातचीत करने को राजी होंगे. सुप्रीम कोर्ट की कमेटी बनने के बाद सरकार को भी अदालत की शर्त के मुताबिक कानूनों का क्रियान्वयन अस्थाई तौर पर रोकना ही पड़ेगा. तभी तो किसान वार्ता की टेबिल पर आयेंगे.
इसी के बाद किसान क्लाज बाई क्लाज बहस कर संशोधन देने को तैयार होंगे और सरकार उनमें से अधिकांश सुधारों को मानकर बेहतर माहौल बनाने की ओर बढ़ेगी.
तब तक किसान अपने शांतिपूर्ण आंदोलन का विस्तार और सरकार कानूनों की अच्छाईयों के प्रचार में लगे रह सकते हैं. दिल्ली कि जनता सांस रोक कर समझौते का इंतजार कर सकती है.
उम्मीद पर दुनिया कायम है. आशा की जा सकती है कि कृषि कानून अपने बेहतर स्वरुप में बने रहेंगे और जल्दी की किसान आंदोलन खत्म होगा.