सुप्रीम कोर्ट चाहता है कि किसान सीमा सील करने जैसा तरीका न अपना कर कोई और जगह पर आंदोलन करें. वहीं केन्द्र सरकार कृषि कानूनों को लागू करने के काम को कुछ समय के लिये स्थगित कर दे. दोनों पक्ष वार्ता के माध्यम से विवाद को सुलझायें. इससे नागरिक आवाजाही पहले कि तरह सुगम हो सकेगी. सुप्रीम कोर्ट वार्ता के लिये समिति बनाने के सुझाव पर अभी भी कायम है.
पहला सवाल यह है कि स्थगन का यह सुझाव कितनी समयावधि के लिये हो. एक दो माह के लिये तो हो ही सकता है. इससे ज्यादा होना काउंटर प्राॅडक्टिव हो जाएगा ऐसा मेरा मानना है.
सुझाव अच्छा है लेकिन क्या किसान मानेंगे. क्योंकि सरकार अपेक्षाकृत जल्दी इसके लिये राजी हो सकती है.
मान लिया जाए कि दोनों पक्ष एक माह के लिये राजी हो भी जाएं तो क्या किसान आंदोलन के विस्तार को रोक देंगे. केवल नियत दूसरे स्थान पर ही धरना प्रदर्शन तक सीमित हो जाएंगे. इसे लेकर मुझे संदेह है. ऐसी स्थिति में सरकार ने कानूनों के पक्ष में माहौल बनाने का जो सिलसिला जगह जगह किसान सम्मेलन और विभिन्न प्रदेशों के किसान संगठनों को कानूनों के पक्ष में बोलने का सिलसिला शुरू किया है वह क्या रूक पाएगा. इसमें भी मुझे संदेह है. क्योंकि एक पक्ष सक्रिय रह कर अपने पक्ष में माहौल बनाए और दूसरा पक्ष चुप रह जाए यह समान अवसर की मान्यता के खिलाफ ही जाएगा.
बेहतर तो यही रहेगा कि सुप्रीम कोर्ट वार्ता के लिये कमेटी के बनाने के साथ वार्ता की समय सीमा तय करे, आंदोलन के लिये स्थान भी सुनिश्चित करे, आंदोलन का तरीका भी तय करे और आंदोलनकारियों की संख्या भी सीमित करे. बाकी को मय ट्रेक्टर ट्राली और अन्य वाहनों के वापस जाने को कहे.
साथ ही यह भी सुनिश्चित करे कि यह सब हो, इसके लिये मानीटरिंग कमेटी भी लगे हाथ बना दे जो सुप्रीम कोर्ट को समय समय पर रिपोर्ट देती रहे. इन सबको ज्यादा समय तक नहीं चलाए क्योकि इससे निहित स्वार्थी तत्वों केा अपनी चालें चलने का मौका मिल जाएगा. इससे किसानों और सरकार दोनों की बदनामी होगी और सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा पर भी आंच आएगी.