कुख्यात कटमनी पर जीवनयापन कर रहे ममता के सिपाही और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को भय है कि अगले चुनाव में भाजपा सत्ता में आई तो उनकी कटमनी का सिलसिला बंद हो जाएगा. इसलिये वे हत्या पर हत्या कर रहे हैं ताकि भाजपा के लोग डर जाएं. भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं का आंकड़ा सवा सौ से पार हो चुका है. इसलिये हो सकता है डर भी सकते हैं. इसका पुख्ता आधार है पूर्व मे ंहुए पंचायत चुनाव जिसमें छह हजार पंचायतों में ममता की पार्टी ने निर्विरोध जीत दर्ज करवाई थी. 1997 में बंगाल में दशकों तक राज करने वाली वामपंथी सरकार के तत्कालीन गृहमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने विधानसभा में बताया था कि 1977 से 1996 तक बंगाल में राजनीतिक हिंसा में 28 हजार लोग मारे गये थे. 1977 में सत्ता में आने के बाद पहले वामपंथी सरकार ने गरीबों को जमीनें बांटी और फिर रेजिमेंट फोर्स का गठन करना शुरू किया इसमें भर्ती होने वाले ही तो उसके केडर बने. इस फोर्स की अनुमति के बगैर दुकान हो या व्यापार-व्यवसाय, निर्माण कार्य हो या ठेका नहीं चल सकता था. इसी ने कटमनी का खूंखार रूप ले लिया. ममता के आंदोलन के विरोध में इन्हीं कटमनी वालों ने तृणमूल के मूल कार्यकर्ताओं का खून बहाया. इसके बाद भी जब ममता जीत गई तो झंडा डंडा बदल कर तृणमूल के कार्यकर्ता बन गये और इनकी संख्या बढ़ती गई. आज ये भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं का खून बहा रहे हैं. इसलिये चुनाव होने तक कितना खून बहेगा यह सोचकर ही दिल दहल जाता है. ममता को सहानुभूति वोट न मिल जाए इसलिये भाजपा बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने से बच रही है. लेकिन इसके बीच केन्द्र को अपनी सीमाओं में रहकर ही सही ठोस कदम उठाने चाहिये ताकि अहिंसक राजनीति का दौर उस बंगाल में वापस लौट सके जहां रक्तरंजित राजनीति का लंबा इतिहास है. यह खून बहने का दिल दहला देेने वाला सिलसिला थम सके.