एमएसपी समग्र चिंतन की दरकार

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2020-12-13 01:25:50


एमएसपी समग्र चिंतन की दरकार

खुले बाजार की खूब वकालत हो रही है. कांट्रेक्ट फार्मिंग के भी गीत गाए जा रहे हैं. लेकिन कई सच्चाइयों को भी चालाकी से छिपाया जा रहा है. ये व्यापारी, कारपोरेट्स बिहार जाकर क्यों नहीं हाथ आजमा रहे हैं जिनका अनाज एमएसपी से काफी कम में बिक रहा है और लागत भी नहीं निकल रही है. महाराष्ट्र के जिस किसान के गीत मन की बात में गाए गये और कहा गया कि मंदसौर के एसडीएम ने कीमत दिलवा दी. पर इस बात को तो छिपाया जा रहा है कि किसान को जिस रेट से दाम दिलाए गये हैं वह कांट्रेक्ट के हिसाब से भले ही सही हो पर एमएसपी से तो बहुत कम है. चलते चलते यह भी देखें कि इसी किसान की ज्यादा ही सही दाम पर जो फसल गई वह उसकी पूरी उपज नहीं थी, उसका एक हिस्सा थी. फसल का बड़ा भाग तो उसने भी बेहद कम दाम पर ही बेचा. सारी फसल एमएसपी पर बिकती और अब जैसी भी जिस कीमत पर भी बिकी उसाकी गणना करें तो किसान को काफी कम रकत मिली है. यही किसान आंदोलन की चिंता है. साथ ही आंदोलनकारियों और स्वतंत्र सोचने वालों की भी यही चिंता है कि आने पौने दाम पर अपनी उपज बेचने वाले दो हेक्टेयर या उससे कम जमीन वाले 85 फीसदी किसान कभी भी एमएसपी नहीं पा सकेंगे क्योंकि व्यापारी या कारपोरेट्स एमएसपी से कम पर कांट्रेक्ट कर लेंगे. जबकि किसान को वह रकम भी ज्यादा लगेगी. ऐसी एमएसपी लिखित हो या 50 साल से मौखिक चल रही हो उसका क्या फायदा जो 85 फीसदी किसानों के साथ न्याय नहीं कर रही हो. यही बात सरकारी और प्रायवेट मंडियों को लेकर भी कही जा रही है. इसलिये तर्कसंगत सही मांग तो यही है कि एमएसपी को कानूनी रूप दिया जाए या खत्म कर दिया जाए.

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