क्यों भारत में व्यापार करना आसान नहीं है ?
राकेश दुबे, वरिष्ठ पत्रकार, भोपाल
मध्यप्रदेश हो या देश का कोई अन्य प्रदेश, सारे मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अनुसरण करते हुए विदेशी उद्ध्योगपतियों को आकर्षित करने के नाम पर विदेश भ्रमण कर ही आते हैं। इस भ्रमण और प्रदर्शन कार्यक्रम के नतीजे के रूप में विदेशी संस्थानों का देश में आना होना और उसके परिणाम स्वरूप जी डीपी में बढ़ोतरी होना होना चाहिए था। लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का आकलन है, बांग्लादेश प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में भारत से आगे निकल जाएगा। इसके कई कारण नजर आते हैं। कुछ प्रमुख कारण बड़े सवाल भी पैदा करते हैं।
जैसे क्या भारत में निर्यात करना या व्यवसाय करना उतना ही आसान है, जितना बांग्लादेश में? यदि भारत मांग और दुनिया के अनुरूप चलता, तो आज एशिया के देशों में सबसे आगे होता। देश में इस बात बहुत चर्चा होती है कि कारोबार को कैसे बेहतर या आसान बनाया जाए। विश्व बैंक की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की रैंकिंग में भारत पिछले साल 63वें स्थान पर था। इसके विपरीत अप्रैल 2018 से अगस्त 2019 के बीच चीन से बाहर गए 56 व्यवसायों में से केवल 3 भारत आए, शेष ने वियतनाम, ताइवान, थाईलैंड और इंडोनेशिया को चुना। ध्यान देने वाली बात यह है कि इसी रैंकिंग में भारत व्यापार स्थापित करने में 136वें, अनुबंधों को लागू करने में 163वें, संपत्ति के पंजीकरण में 154वें और कर भुगतान में 115वें स्थान पर था।
गत माह प्रकाशित की गई भारत के राज्यों की ईज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग में राज्यों की स्थिति सुधरती तो दिख रही है, लेकिन जमीनी सच्चाई कुछ और बयां करती है। जैसे, इस रैंकिंग में 2017 में उत्तर प्रदेश 12वें स्थान पर था और ताजा रैंकिंग में वह दूसरे स्थान पर है। इसका अर्थ तो यही है कि वहां व्यापार करना बहुत आसान होगा, लेकिन वहां की हकीकत किसी से छिपी नहीं है, व्यापारी वहां की कानून व्यवस्था को अनूकुल नहीं मन रहे हैं। कागजी बदलाव और जमीनी बदलाव में बहुत फर्क होता है। सरकारें कितने भी दावे कर दें, जब तक कागजी बदलाव को जमीन पर नहीं उतारा जाएगा, कुछ नहीं बदलेगा।
जब भी हमारी तुलना होती है पडौसी बंगलादेश से होती है। जरा बंगलादेश की अर्थव्यवस्था पर गौर करें, तो मैन्युफैक्चरिंग और निर्यात उसकी आर्थिकी के दो मजबूत स्तंभ हैं। वस्त्र-निर्यात उसके कुल निर्यात का 80 प्रतिशत है। निर्यात के लिए उसने नियमों को बहुत सरल भी किया है और निर्यात को सुविधाओं से लैस भी। जैसे, वहां किसी सामान को बंदरगाह तक पहुंचने में एक दिन लगता है, पर भारत में करीब सात दिन। वहां की अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग का हिस्सा भी करीब 24.2 प्रतिशत है, जबकि भारत में लगभग 18 प्रतिशत । यह तुलना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर रोजगार के अवसर पैदा करने की सबसे ज्यादा क्षमता रखता है। भारत में रोजगार की बेहद जरूरत है।
भारत के व्यापार जगत का अविश्वास इस बात से भी झलकता है कि उद्योग और इन्फ्रास्ट्रक्चर क्षेत्रों में क्रेडिट-ग्रोथ में भारी गिरावट आई है। आर्थिक अनिश्चितता से जहां कुछ क्षेत्रों में व्यापार जगत क्रेडिट लेने से परहेज कर रहा है, वहीं सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को क्रेडिट की नहीं, नकद सहायता की जरूरत है। व्यवसाय करना मुश्किल होता जा रहा है। अब समय आ गया है, व्यापार को और सरल बनाने के लिए सभी हितधारकों का ख्याल रखना होगा, खासकर बेहतर बुनियादी ढांचा, संगत आर्थिक नीतियां, भूमि और श्रम मामलों में सुधार और पर्याप्त वाणिज्यिक अदालतें जरूरी हैं।
अमेरिका और चीन के व्यापार-युद्ध में कंपनियों को भारत की तरफ आकर्षित करने का मौका भी हमारे पास था, लेकिन हम कितना लाभ ले पाए, यह एक बड़ा सवाल है ? रही-बची कसर कर-व्यवस्था में सुधार न लाने की जिद पूरी कर रही है, जिस कारण कई कंपनियां भारत में मुश्किल महसूस कर रही हैं। जैसे, ऑटो कंपनियां सरकार से दो पहिया वाहनों पर जीएसटी 28 प्रतिशत से 16 प्रतिशत करने की मांग कर रही हैं। यह छूट आवश्यक है, क्योंकि पिछले दो वर्षों में जनरल मोटर्स, मान ट्रक और हार्ले डेविडसन जैसी कंपनियां भारत में अपना निर्माण बंद कर चुकी हैं।
भारत में आज भी किसी व्यवसाय को स्थापित करने में औसतन 18 दिन लगते हैं, जबकि न्यूजीलैंड में यह आधे दिन का काम है। प्रॉपर्टी रजिस्टर करने में भी भारत में 30 से 58 दिन तक लगते हैं। भारत को दूसरे देशों से सीख लेकर यहां की व्यावसायिक प्रक्रियाओं को ऐसा सरल बनाना होगा,जिससे व्यापारियों के समय और पैसे की बचत हो। वैसे सरकार ने भी व्यापार में सुधार के कई दावे किए हैं, मगर जमीन पर लाभ नहीं दिख रहा है में सुधार के कई दावे किए हैं, मगर जमीन पर लाभ नहीं दिख रहा है।