सिंधिया घराना राजनीति में हमेशा अव्वल रहा है. आजादी के पहले की बातें छोड़ भी दें तो उसके बाद से राजमाता सिंधिया से इसका श्रीगणेश कहा जा सकता है. अभी मध्यप्रदेश में ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजस्थान में वसुंधरा राजे परिदृश्य में हैं. यशोधरा राजे भी मध्यप्रदेश की राजनीति में एक मंत्री के तौर पर हैं ही. ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में उपेक्षा से नाराज होकर भाजपा में आ गये. पर भाजपा का अनुशासन सिंधिया घराने के ज्यादा लोगों को ज्यादा सक्रिय नजर आने पर बंधन लाद देता है. वसुंधरा राजे अपने बेटे को इसके बाद भी संसद में ले जाने में कामयाब रही. पर ज्योतिरादित्य के लिये इस प्रकार का रास्ता आसान नहीं है. यशोधरा राजे भी ऐसा ही सोचती तो नजर आती हैं पर अभी तक उनके भी हाथ कुछ लगा नहीं है. संगठन में काम करिये और अपने लिये जमीन तैयार करिये. जनकल्याण कार्यो में बढ़चढ़कर हिस्सा लें. पैसा भी लगाएं तो और अच्छा रहेगा. आखिर सिंधिया घराने की यह तो पुरानी परंपरा है. ग्वालियर-चंबल क्षेत्र में कम से कम शिक्षा और स्वास्थ्य में सहारा दें तो यहां का परिदृश्य ही बदल जाए. हां राजनीतिक समर्थक बढ़ाना और अपना अहम संतुष्ट करते रहना यह सबको नजर आता है. लोकतंत्र में इसके साथ जनकल्याण का काम सोने में सुहागा है यह कब समझ में आएगा.