अखिलेश और आजम खान के संसद से इस्तीफे का अर्थ, सपा की प्राथमिकता है यूपी. 23 मार्च.

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-03-23 01:27:15


अखिलेश और आजम खान के संसद से इस्तीफे का अर्थ, सपा की प्राथमिकता है यूपी. 23 मार्च.

अखिलेश यादव ने संसद से इस्तीफा दे दिया और उनके साथ साथ आजम खान ने भी ऐसा ही किया. विश्लेषक कह रहे हैं उन्हें ऐसा करने की सलाह उनके पिता मुलायमसिंह यादव ने दी होगी. सही हो सकता है. यह भी संभव है कि मुलायमसिंह यादव ने ऐसी ही सलाह आजम खान को भी होगी. दोनों ने मान लिया.
इसका अर्थ है कि सपा का अब सबसे ज्यादा जोर उत्तरप्रदेश पर रहेगा और उसे राज्य की ऐसी ताकतवर क्षेत्रीय पार्टी बनाने की ओर रहेगा जो सत्ता की सबसे मजबूत दावेदार बनकर उभरे. वैसे यह अभी भी है. पर उसे क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर मायावती की बसपा और गैर ओबीसी, गैर जाटव  तथा मुस्लिम पार्टियों तथा उनके नेताओं की चुनौतियां मिलती रहती है. ये दोनों नेता मिलकर काम करेंगे तो ये चुनौतियां खत्म तो कभी नहीं होंगी पर कमजोर जरूर पड़ेंगी.  इन्हें जाटों का समर्थन रालोद नेता जयंत चौधरी के सहारे मिलता रहेगा. यह अखिलेश और आजम खान की जोड़ी सशक्त विपक्ष देगी और उसकी ताकत रालोद नेता जयंत चौधरी बढ़ाएंगे.
सच तो यह है कि अखिलेश ने इस बार काफी परिवक्व नेता का परिचय दिया है. यह विधानसभा चुनावों में अपनाई गई रणनीतियों से साफ है. आजम खान तो अपनी स्टाइल में परिपक्व नेता हैं ही. हां जयंत में इसका अभाव नजर  आया. इस कारण वे अखिलेश के दावपैंच समझ नहीं पाए. फिर भी उनकी पार्टी को जीती गई सीटों के लिहाज से काफी फायदा तो मिला ही. वे परिवक्व होते तो इनकी संख्या निश्चित ही ज्यादा होती. इस अपरिपक्वता का परिचय उन्होंने एक बार फिर दिया है और राज्यसभा में जाने का रास्ता चुना है. वह भी अगर राज्य सभा में जाने की बजाय विधानपरिषद में रह कर राज्य की राजनीति करते तो उनके और उनकी पार्टी के लिये बेहतर होता. वे अखिलेश के लिये ज्यादा उपयोगी साबित होते. पर जिस प्रकार चांदी की चम्मच की आदत बमुश्किल अखिलेश ने छोड़ी है. उसी प्रकार जयंत भी चांदी की चम्मच का लालच छोड़ नहीं पा रहे हैं. उसी का नतीजा निकलने वाला है कि उनकी पार्टी में अखिलेश और भाजपा बहुत तेजी से सेंघ लगाने में कामयाब हो जाएंगे.
बात अखिलेश की सबसे पहले हो. यादव एक ताकतवार जाति है. मुलायमसिंह के सत्ता में आने से पहले ही उसकी दबंगई खूब थी जो मुलायमसिंह के सत्ता में आने से बढ़ी और उसमें अत्याचार का समावेश भी हो गया. ये ही बातें मुसलमान समाज में भी काफी हद तक लागू होती हैं. यही कारण है कि इस चुनाव में मुलायम सिंह और अखिलेश यादव के शासन काल में यादवों की दबंगई की बदनामी बार बार चर्चा में आई. आजम खान का मुसलमानों की दबंगई को खुले समर्थन की बात भी की गई. इसका खामियाजा सपा को उठाना पड़़ा.
विधानसभा टिकट वितरण में अखिलेश ने इसे दूर करने की कोशिश शुरू से ही की. पर उन्हें सफलता तो मिली पर कम. अब अखिलेश चाहते हैं कि इस प्रकार की दबंगई आगे न हो तो आने वाले समय में सपा को राजनीतिक लाभ मिलेगा. इसी रणनीति के साथ आजमखान भी मैदान में आए हैं. पर इसमें सफलता कितनी मिलेगी यह  तो समय बताएगा. क्योंकि दबंगई का स्वभाव हो या आपराधिक मनोवृति का यह समय समय पर उभरती ही रहती है. समर्थन पर्दे के पीछे से भी हो सकता है. पर वह ज्यादा असरकारी नहीं रहता है. ये तत्व सामने आकर खुला समर्थन देने की बात करते हैं.  इनको समर्थन न मिले तो इन दबंगों और अपराधियों से जुड़े समाज दूरी बनाने लगते हैं. जाटों का एक तबका भी दबंगई में पीछे नहीं रहता है. इसलिये इस प्रकार की समस्या का सामना जयंत चौधरी को भी करना पड़ेगा. देखना यही है कि अखिलेश, आजम खान और जयंत चौधरी इस समस्या से कैसे निपटते हैं.
एक और बड़ी समस्या वोट बैंक को साधे रखना है. यह तभी संभव होता है जब समस्या आने पर मैदान में नजर आएं. यह काम सांसद की तुलना में विधायक ज्यादा बेहतर तरीके से कर पाते हैं. अखिलेश को यादव वोट बैंक साधना है तो आजम खान को मुस्लिम वोट बैंक. इसलिये ये दोनों विधानसभा के मैदान में हैं.
फिर बसपा के दलित वोट बैंक में ज्यादा गहराई से सेंध लगाना हो या गैर यादव ओबीसी और गैर जाटव दलितों को साधना हो अथवा उनके नेताओं से बेहतर तालमेल बिठाना हो, यह काम भी अखिलेश विधायक रह कर आसानी से कर पाएंगे क्योंकि तब उन्हें जमीनी हकीकत का सही सही अंदाजा रहेगा. यह सांसद रहने पर नहीं हो पाता.
पर इससे क्या योगी आदित्य नाथ और भाजपा को घबराना चाहिये. घबराना तो बिल्कुल नहीं चाहिये पर ज्यादा सतर्क जरूर रहना होगा. क्योंकि विपक्ष के नाते अखिलेश की नजर गड़ी रहेगी कि कोई ऐसा कदम योगीजी या उनकी सरकार अथवा भाजपा उठाए जिससे वह राजनीतिक तूफान खड़ा कर अपनी राजनीति चमका सकें. आजकल राजनीति में जो चल रहा है उसमें किसी भी कदम का काल्पनिक अर्थ निकाल कर भी हंगामा खड़ा किया जा सकता है यह बात किसान आंदोलन, सीएए में देखा भी गया. ऐसा कारण भी मिल गया तो अखिलेश पीछे नहीं रहेंगे. सांसद रहते तो विरोध कमजोर रहता पर विधायक वह भी नेता प्रतिपक्ष बनकर तो वे आंधी ही नहीं बार बार तूफान पैदा करेंगे. इनसे निपटने की कूटनीतिक योग्यता योगी जी कितनी बता पाते हैं यह देखना होगा.  
 

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