चीन के प्रति भारत के सख्त होने का समय. 19 मार्च.

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-03-19 05:10:41


चीन के प्रति भारत के सख्त होने का समय. 19 मार्च.

चीनी विदेशमंत्री वांग यी इस मार्च माह के अंत में भारत यात्रा पर आ रहे हैं. स्वाभाविक तौर पर इसके बाद भारतीय विदेशमंत्री एस. जयशंकर को चीन यात्रा का आमंत्रण मिले और वे जाएं भी. इस यात्रा को लेकर चीन का अपना एजेंडा है. वह भारत की उसके प्रति सख्ती को नरम कर जो बंदिशें मोदी सरकार लगातार लगाती जा रही है उन्हें रूकवाना चाहता है, व्यापारिक संबंधों को और बढ़ाना चाहता है जबकि व्यापारिक संतुलन पहले से ही चीन के पक्ष में हद से ज्यादा झुका हुआ है. वह फिल्म और मनोरंजन उद्योग को पुराने स्तर पर देखना चाहता है. यह सब चीन के पक्ष में है. पर भारत  के लिये क्या है. लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दो साल से तनाव चल रहा है. उसे सुलझाने के लिये पन्द्रह  दौर की कंमाडर स्तर की वार्ताएं हो चुकी हैं पर उनसे कोई खास नतीजा नहीं निकला है. 1993 से 2013 के बीच जितने भी द्विपक्षीय समझोते भारत और चीन के बीच हुए उनमें से अधिकांश से चीन एकतरफा तरीके से पीछे हट चुका है. गलवान घाटी में एक अफसर सहित बीस जवानों की शहादत से आपसी विश्वास और संबंधों का स्तर सबसे नीचे पहुंच चुका है. भारत चाहता है कि अप्रैल 2020 की स्थिति पर दोनों देक्षों की सेनाएं आ जाएं और भारत को देपसांग घाटी तक गश्त करने का अधिकार मिल  जाए. पर ऐसा कुछ नहीं हो पा रहा है. इसके उल्टे चीन एलएसी के समीप अपने कब्जे के क्षेत्र में निमार्ण कार्य करवा रहा है और सेना का जमावड़ा बढा रहा है. नतीजन भारत को भी इन्फ्रास्ट्रक्चर के काम में तेजी लानी पड़ रही है और बरावरी में सेना तैनात करनी पड़ रही है. इसका भार बौझ आर्थिक स्थिति पर पड़ रहा है जिसे संबंध सामान्य होने की स्थिति में कम किया जा सकता था. यूक्रेन की लड़ाई में भारत का मित्र रूस उलझा हुआ है. भारत उसके साथ दृढता से खड़ा है. पर उसे सारे कदम फूंक फंूक कर रखने पड़ रहे हैं. उसे रूस की जरूरत है पर वह रूस के खिलाफ लामबंद अमेरिका व नाटों देशों से भी दूरी नहीं बनाना चाहता है. वह रूस के हमले का विरोध खुले तौर पर नहीं करता न ही नाटो देश रूस को बर्बाद करने के लिये जो घेराबंदी कर रहे हैं उसका खुलेतौर पर उल्लेख तक नहीं करता है. बल्कि कूटनीतिक तरीके से यूक्रेन विवाद का हल निकालने पर जोर देता रहा है. चीन भी रूस के साथ भारत की तरह ही कुछ दूरी का दिखावा करते हुए खड़ा है. लगता यही है कि चीन इसी समानता का फायदा उठाना चाहता है. लेकिन हिंदी चीनी भाई भाई के नारे चोट खाए भारत को छाछ भी फूंक फूंक कर पीनी चाहिये. उसे चीन केा मजबूर करना चाहिये कि वह लद्दाख में सामान्य स्थिति पहले बहाल करे. अब तक के सभी समझौतों का सम्मान करे और अरुणाचल प्रदेश पर से अपनी गंदी नजर हटा ले. भारत को यह संदेश सख्ती से देना होगा कि चीन नहीं माना तो उसे नतीजे भुगतने को तैयार रहना होगा. यह मोदी का भारत है. वह सांप का फन कुचलना जानता है. लेकिन भारत को यह संदेश कूटनीतिक कुशलता के साथ देना होगा ताकि सांप भी मर जाए और लाठी भी नहीं टूटे यानि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गलत संदेश नहीं जाए. देखना यह होगा कि भारत सरकार वांग की इस प्रस्तावित यात्रा को कैसे निपटाती है.  

Contact:
Editor
ओमप्रकाश गौड़ (वरिष्ठ पत्रकार)
Mobile: +91 9926453700
Whatsapp: +91 7999619895
Email:gaur.omprakash@gmail.com
प्रकाशन
Latest Videos
जम्मू कश्मीर में भाजपा की वापसी

बातचीत अभी बाकी है कांग्रेस और प्रशांत किशोर की, अभी इंटरवल है, फिल्म अभी बाकी है.

Search
Recent News
Leave a Comment: