विधानसभा चुनाव प्रचार में मोदीजी और योगीजी ने स्वीकारा था कि आवारा पशुओं की समस्या को वे जल्दी से जल्दी सुझाएंगे. भारी बहुमत से जीत के बाद यह उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे इसे सबसे पहले सुलझाएं. समस्या गोवंश के वध पर रोक को लेकर सख्ती से उपजी है. प्रदेश में करीब 19 मिलियन यानि 190 लाख पशु हैं जिनमें बड़ी संख्या गोवंश की है. यह हर साल करीब 15 प्रतिशत की दर से बढ़ता जाता है. आधुनिक पशु चिकित्सा की बढ़ती सुविधा ने इनकी मृत्युदर काफी कम कर दी है. गोधन से मिलने वाले गोबर, कृषि कार्य में सहयोग, खेती में खाद, ईधन के तौर पर गोबर के उपयोग की उपयोगिता विकल्प में उपलब्ध साधनों जैसे टैक्टर, रसायनिक उर्वरक और खद, कुकिंग गैस आदि ने खत्म सी कर दी है. वहीं गाय की ही उपयोगिता दुध आदि के कारण ज्यादा है. पर गौवंश सात से आठ साल ही उपयोगी रह पाता है जबकि उसका जीवनकाल 14 से 15 साल का होता है. इसलिये आवारा पशुओं में गोवंश की समस्या सबसे ज्यादा गंभीर होती है क्योंकि बाकी पशु तो मांस आदि के काम आ जाते हैं पर कानूनी रोक के कारण यह विकल्प इनके लिये संभव नहीं रहता है. विदेशी नस्ल की गायों और बैल, बछडों को काटने की छूट की आधुनिक समाज की मांग भी धार्मिक कारणों से विकल्प नहीं बन पाती है. तब एक ही उपाय बचता है जिसकी चर्चा उत्तरप्रदेश में सबसे ज्यादा है कि चार छह गोवंश के लिये इनके पालकों को सीधी निश्चित राशि उनके खातों में डाली जाए ताकि वे उन्हें सड़कों पर आवारा घुमने के लिये न छोड़ें. पर इसकी भी कोई गलती रहित और कानून का उल्लंघन रोकने की सख्त व्यवस्था बनानी होगी.
गौशालाओं को अनुदान की योजना काफी पहले से चल रही है. पर वह इतनी प्रभावी नहीं साबित हो पा रही है. उसमें गड़बड़ी की घटनाएं आये दिन सामने आने से सरकार, शासन, प्रशासन के साथ साथ सत्तारूढ़ राजनीतिक दलों को भी काफी बदनामी झेलनी पड़ती है. इसमें व्यापक और सख्त सुधार कर इससे माध्यम से भी एक हद तक आवारा पशुओं की समस्या पर काबू पाया जा सकता है.