रैली हो या आमसभा या फिर पत्रकारवार्ता, मायावतीजी एक लिखित वक्तव्य देना पसंद करती हैं. पत्रकारवार्ता में तो वे कभी किसी का सवाल नहीं लेती हैं. मीडिया से भी कम ही बात करती हैं. जब भी उनके विचार सामने आते हैं वे उनकी तरफ से बयान या प्रेसनोट होता है.
मान्यवर स्वर्गीय कांशीराम की शिष्या मायावतीजी के इस रूप को देखकर मुझे बहुत खराब लगता है. क्योंकि जिस दलित चेतना का जागरण कांशीराम जी ने किया था वह उत्तर भारत में अद्भुत है. इसकी कमान संभालने का भार कांशीराम जी ने मायावती जी को ही सौंपा था.
यह सही है कि समाज सुधार और राजनीतिक चेतना के जागरण में जिस कटुता का उपयोग कांशीराम जी करते थे उससे बड़ी संख्या में लोग असहमत हैं. फिर उससे राजनीति में स्थान तो बनाया जा सकता है पर सत्ता नहीं पाई जा सकती. इसीलिये कांशीराम जी ने मुलायम सिंह जी से समझौता किया था. सत्ता की सीढ़ी पर चढना बसपा को सिखाया था. उसकी अगुआई का भार उन्होंने उन मायावती जी को सौंपा था जो एक सरकारी शिक्षक का पद पाने के लिये सिफारिश करवाने उनके पास आई थी. बताते हैं कि तब कांशीराम जी ने कहा था कि आप शिक्षक की बात छोड़ो मेरे साथ दलित चेतना जगाने के काम में सहयोग करो में आप को मुख्यमंत्री बनवाउंगा. मायावती ने इसे माना और वह चार बार मुख्यमंत्री बनी.
आज उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में बसपा की बेहद खराब स्थिति का चित्र उभरा है. उसका कारण यह रहा कि मायावती जी ने खुद को जाटव वोट बैंक तक सीमित कर संतोष कर लिया. वह 18 प्रतिशत वोट बैंक उनके साथ हमेशा बना रहा. बाकी और भी जुड़ा पर इस चुनाव में वह भी बंट जाने के कारण पूरा उन्हें नहीं मिला.
दलित चेतना के लिये मायावतीजी जरूरी हैं. इसके लिये पहले उन्हें लिखा हुआ भाषण या बयान पढ़ना छोड़ कर फ्री स्टाइल में भाषण देना होगा. साथ ही इसके लिये उन्हें जरा सा भी फेरबदल किये बगैर जस का तस फिर से कांशीराम जी का मार्ग अपनाना होगा. वह है दलितों के साथ ओबीसी के जगह जगह सम्मेलन करने की श्रंृखला हर माह दर माह पहले उत्तरप्रदेश में फिर देश में चलाना. यह पूर्णकालीक सक्रियता बसपा को एक ताकत वर पार्टी बना देगी.
उन्हें चुनाव पूर्व गठबंधनों से बचना होगा. अकेले ही लोकसभा और विधानसभा के सभी सहित बाकी भी छोटे बड़े सभी चुनाव लड़ना होंगे. चुनाव बाद अपनी शक्ति बढ़ाने के लिये वे अल्पकालीन समझौते कर सकती हैं. इससे उनकी राज्यसभा, विधान परिषदों में ताकत बढेगी और एक बार फिर यही राह उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी तक ले जा सकती है.