कांग्रेस और उसकी मजबूती हिंदुस्तान की आवश्यता ही नहीं अनिवार्यता है. इसलिये इसका देश के राजनीतिक परिदृश्य में बना रहना जरूरी है. उत्तरप्रदेश में प्रियंका गांधी ने यह साबित कर दिया कि वह कांग्रेस में प्राण फूंकने का माद्दा रखती है. उन्होंने लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा दिया और खुद भी लड़कर बता दिया. सालों साल बाद उत्तरप्रदेश में कांग्रेस सभी 400 सीटों पर लड़ी, पूरे चुनाव प्रचार के दौरान जबर्दस्त चुनावी रैलियों निकाली. एक आशा का संचार कांग्रेस को लेकर किया. यह सही है कि यह सब वोटों में नहीं दिखा न वोट प्रतिशत में नजर आया. पर कांग्रेस में आशा का संचार हुआ ऐसा कहने वालों की कमी नहीं है.
अब देखना यह है कि प्रियंका पार्ट टाइम राजनीति की जगह फुल टाइम राजनीति शुरू करती है या नहीं. कांग्रेस को चुनाव में परिणाम देने वाली मशीन में कुछ हद तक ही सही बनाने में सफल रहती है या नहीं. वे ऐसा फुल टाइम पोलीटिशियन बन कर और कांग्रेस का संगठन खड़ा करके ही कर सकेंगी. ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जो यह मानते हैं कि इस काम को राहुल गांधी शायद ही कर पाएं. क्योंकि उन्हें नानी के घर की याद बार बार सताने लगती है. इसके बाद भी फिलहाल प्रियंका गांधी इतना तो कर सकती हैं कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस की जिम्मेदारी वह संभाले और देश का भार राहुल गांधी को सौंप कर देश की चिंता से मुक्त हो जाएं.