करीब दर्जनभर देशों से बने नाटो के सदस्य आज करीब 30 देश हैं. इसे अमेरिका ने द्वितीय विश्वयुद्ध में बर्बाद हुए यूरोपीय मित्र देशों के लिये बनाया था कि उन्हें सेना रखने का भारी भरकम खर्च उठाने की जरूरत नहीं है. उनकी रक्षा का भार अमेरिका उठाएगा. किसी भी एक देश पर हुआ हमला माना जाएगा. सभी देश मिलकर उस हमले का जवाब देंगे. उसके बाद शीत युद्ध शुरू हो गया था और सोवियत संघ ने भी एक इसी प्रकार का सैन्य संगठन बनाया जो सोवियत संघ के 15 देशों में बिखर जाने के बाद अपने आप निष्प्रभावी हो गया. अमेरिका इस बीच एक संधि हुई थी कि नाटो अपना विस्तार पूर्वी यूरोपीय देशों की तरफ नहीं करेगा. लेकिन जरा नाटो के सदस्य देशों की संख्या बढ़ने का क्रम देखें तो अमेरिका के मंसूबे साफ दिखते हैं कि वह रूस की घेराबंदी कर रहा था. इस खतरे को लेकर पुतिन लंबे समय से चेतावनी दे रहे थे पर पर जब बात यूक्रेन पर आ गई तो उन्होंने आक्रमक रूख अपना लिया और परमाणु युद्ध की धमकी के साथ युद्ध छेड़ दिया. यूक्रेन के राष्ट्रपति नाटो देशों और अमेरिका की कठपुतली के जैसे काम कर रहे हैं.
अब रूस ने आसपास के पड़ोसी देशों से कहा है कि अगर उन्होंने की सदस्यता के लिये कदम बढ़ाए तो उनको भी यूक्रेन जैसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा.
वहीं चीन ने कहा है कि अगर यूक्रेन की लड़ाई में रूस हार गया तो अमेरिका और नाटो देशों का निशाना वही रहेगा.
ताइवान को डर है कि रूस ने जो रास्ता यूक्रेन के लिये अपनाया है वही रास्ता चीन उसके लिये अपना सकता है. डरे हुए नाटो देश न यूक्रेन की मदद को आ रहे हैं न उसकी मदद को आने वाले हैं.
अब रूस और चीन के पड़ोसी देश हो, या चीन अथवा रूस सबको अमेरिका और नाटो देशों का डर सता रहा है. कुछ को रूस और चीन का भी डर सता रहा है. सबको लग रहा है कि उनके स्वयं के पास परमाणु बम और मिसाइलें हो तो ही वे सुरक्षित हैं.
इससे परमाणु युद्ध का खतरा बढ़ता ही जा रहा है. क्या वह तीसरे विश्व युद्ध के बाद ही इस डर का समाधान निकलेगा? क्योंकि उसके बाद तो वही स्थिति बचेगी जिसके बारे में काफी समय से कहा जा रहा है कि जो बचेंगे वे चौथा विश्वयु़द्ध पत्थरों से लड़ेंगे.