सातवा चरण है जातियों की मजबूत गोलबंदी के सहारे. 7 मार्च.

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-03-05 00:13:34


सातवा चरण है जातियों की मजबूत गोलबंदी के सहारे. 7 मार्च.

उत्तरप्रदेश में शनिवार को सातवें और अंतिम चरण का मतदान आज शाम पांच बजे बंद हो जाएगा और 7 मार्च को वोटिंग होगी. उसके बाद शाम छह बजे से एक्जिट पोल वालों ंके ढोल बजने लगेंगे. इनका असर दस मार्च को दोपहर दो बजे तक भी दिखेगी  जब बात बढत की हो रही होगी. उसके बाद परिणाम आने लगेंगे तो धीरे धीरे एक्जिट पोल का असर भी खत्म हो जाएगा. हो सकता है शाम तक पता चल जाए और  किसकी सरकार बन रही है इसका पुख्ता संकेत मिल जाए. अंतिम परिणाम तो देर रात तक ही आ पाएंगे क्योंकि काउंटिंग और रीकाउंटिंग का दौर लंबा चलेगा उसके संकेत तो कांटें की टक्कर के संकेतों से मिल ही रहे हैं. सारे नतीजे हो सकता है आने में 11 मार्च की सुबह तक निकल जाए.
लेकिन उसके बाद फिर एक्जिट पोल सर्वेक्षणों का दौर शुरू होगा जो अगले किसी विधानसभा चुनाव की घोषणा तक चलता रहेगा. उसमें यह पता लगाने की कोशिश होगी की वोटिंग पैटर्न कैसा रहा. जाति, धर्म, मंडल,  कमंडल, राष्ट्रवाद आदि का चक्कर कैसे घूमा. मुस्लिम वोटिंग के जिस शत प्रतिशत मतदान और 99 प्रतिशत एकतरफा वोटिंग की बात हो रही है उसमें कितना दम है. यादव, गैर ओबीसी, अति पिछड़ा वर्ग, जाटव, गैर जाटव दलित वोटिंग का मामला कैसा रहा. उनके तथाकथित वोटों के ठेकेदार जैसे ओमप्रकाश राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य आदि की दुकान चमकी या फ्लाप रही. सवर्ण वोट कैसे और कितने किस तरफ गिरे, कितना भाजपा को गया और कितना बिखर गया. ब्राम्हमण, राजपूत और वैश्य वोटों का पैटर्न कैसा रहा, कितने राजपूत योगी जी से खुश दिखे तो कितने ब्राम्हणों ने योगीजी पर गुस्सा निकाला. कितने जाट अखिलेश के साथ गये तो कितने छिटक कर भाजपा की झौली में आ गिरे.
आज बहस जो चल रही है उसक उल्लेख भले की जल्दबाजी लेगे पर उस पर चर्चा निरर्थक नहीं  कही जाएगी. सातवें चरण में पिछले चुनाव में आज जिन पर वोटिंग हो रही है उनमें भाजपा की हिस्सेदारी अन्य चरणों की तुलना में सबसे कम रही थी. वह थी 55 में से 36 सीटें. छठवें चरण में झंडा योगीजी के हाथ में था और मोदी जी समर्थन में थे. सातवें मेें झंडा मोदी जी के हाथ  में है और समर्थन का खेल योगीजी के पास.
मोदी-योगी के विरोधी कह रहे हैं कि अब धर्मान्धता नहीं चल रही है. मुस्लिम धर्मान्धता तो उन्हें दिखती नहीं है. वे हमेशा की तरह से एकजुट गोलबंद हैं.ैं चुनाव बाद अखिलेश जीते तो अफसरों से हिसाब किताब करने की बातें तक कर रहे हैं. यह बात और है कि इस दौर में मुस्लिम वोट बीस प्रतिशत तक ही  हैं वो भी बिखरे हुए. इसलिये वे इसकी बात करें या न करें उसका ज्यादा असर नहीं होता.
याद रखिये कोई भी कट्टरता तभी तक चलती है जब तक उसके सामने कोई ठोस चुनौती हो. उसके लिये नकारात्मकता भी जरूरी है. राममंदिर जब तक बनना नहीं शुरू हुआ तब तक वह चुनौती थी, उसमें बनना शुरू होगा या नहीं जैसी नकारात्मता भी थी. पर उसके बनना शुरू होने के साथ ही चुनौती और नकारात्मकता दौनों खत्म हो गये  इससे इसका चलना भी अपने आप बंद सा यानि कम हो गया.
राष्ट्रवाद का सवाल भी उतनी ताकत नहीं दिखा पा रहा है क्योंकि पाकिस्तान कमजोर पड़ कर चुप हो गया है और चीन ने हरकतों में काफी कमी कर दी है जो बंद जैसी है. इसलिये राष्ट्रवाद का असर कम है. यह बात और है कि यूक्रेन से भारतीय छात्रों और नागरिकों की निकासी की खबरों ने मोदीजी और राष्ट्रवाद को बहुत ताकत दे दी है. भारत तो अपने नागरिकों को निकाल रहा है उसकी सक्रियता दिख रही है. पर पाकिस्तान, टर्की कहां है? अमेरिका और  ब्रिट्रेन जैसे देश सिर्फ एडवाजरी जारी कर कर के काम चला रहे हैं. उनके देशों के यूक्रेन में फंसे नागरिकों को निकालने की तो चर्चा तक नहीं है.

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