यूक्रेन की तारीफ कर कर के उसे चने के झाड़ पर चढ़ाने वाले वहां हो रही बर्बादी के लिये रूस से भी ज्यादा गुनहगार हैं. एक छोटे से विकास कर समृद्धि की ओर बढ़ रहे सोवियत संघ का हिस्सा रहे देश कीे रूस जैसी महाशक्ति से टक्कर करवा दी. रूस बस यही तो चाह रहा था कि वह नाटो का हिस्सा न बने. नाटो भी लंबे समय से यूक्रेन के आवेदन और प्रार्थना को टाल रहा था. क्योंकि उसे युद्ध के हश्र का पता था. वह टालने की बजाय मना कर देता तो युद्ध टल जाता. यूरोपीय संघ को देखें उसने अर्जी पाते ही सदस्य बना दिया जिस पर रूस ने कोई विपरीत प्रतिक्रिया फिलहाल नहीं दी है. क्योंकि उससे उसकी सुरक्षा को फिलहाल खतरा नहीं होता है. नाटो का सदस्य बनने से होता था.
अभी रूस ने तीन तरफ से यूक्रेन को घेरा है वह चौथी तरफ से भी जब घेर लेगा तो एक के बाद एक करके हथियारों को देने की घोषणा कर भ्रम फैला रहे देशों के हथियार युद्ध के चलते तो वहां पहुंचने से रहे. यु़द्ध विराम के बाद भी रूस इन हथियारों को यूक्रेन को लेने नहीं देगा क्योंकि वह यूक्रेन के सैन्यीकरण का ही तो विरोध कर रहा है.