पंजाब में नहीं सुलझ रही सत्ता की गुत्थी. 18 फरवरी.

Category : मेरी बात - ओमप्रकाश गौड़ | Sub Category : सभी Posted on 2022-02-18 04:25:10


पंजाब में नहीं सुलझ रही सत्ता की गुत्थी. 18 फरवरी.

पंजाब में सत्ता की गुत्थी कुछ ऐसी उलझी है कि बड़े बड़े जानकारों को भी चक्करघन्नी बनाए हुए है. ये सब मान रहे हैं कि आम आदमी पार्टी सबसे आगे है और उसके बाद कांग्रेस का नंबर है. पर तीसरे नंबर पर आ रही अकाली पार्टी भी ज्यादा पीछे नहीं है. भाजपा की अगुआई स्वीकार कर चुकी भाजपा और ढी़ढ़सा के संयुक्त अकाली दल को किंग मेकर का दर्जा देने वाले भी कम नहीं हैं. सबसे ज्यादा संख्या तो उनकी है जो यहां त्रिशंखु विधानसभा देख रहे हैं और उसमें किसकी सरकार बनेगी यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही पता चलेगा. विधानसभा त्रिशंकु रही ही तो आप की अगुवाई में सरकार बनने की संभावना सबसे कम रहेगी. अकाली और अमरिंदर की अगुवाई वाला भाजपा का संगठन किसे मुख्यमंत्री बनाएगा इसके कयास तक लगाने से लोग इंकार कर देते हैं. पर ज्यादा संभावना इसी जमावड़े के सरकार में आने की रहेगी.
हां एक बात साफ है कि अकाली हो या कांग्रेस अथवा भाजपा सब यह जरूर चाहते हैं कि आम आदमी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं  मिल पाये. पर वे इसके लिये एक दूसरे को सहयोग देने को राजी नहीं हैं. आम आदमी पार्टी को स्पष्ट बहुमत की बात कहने को भी ज्यादा लोग तैयार नहीं है.
आम आदमी पार्टी की बात करें तो बदलाव की जो हवा है वह तेज है. भगवंतसिह मान को मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया ही जा चुका है. पर यह  कोई भी मानने को तैयार नहीं है कि अरविंद केजरीवाल खुद मान को एक ताकतवर मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं या नहीं. ज्यादातर का मानना है कि अरविंद केजरीवाल भी मान को तभी तक मानेंगे जब तक वे उनके इशारों पर कठपुतलियों की तरह उनके इशारों पर नाचेंगे. जैसे ही मान तेवर बताएंगें केजरीवाल उनको मख्खी की तरह बाहर निकाल देंगे औ ज्यादा कमजोर नेता को मुख्यमंत्री बना कर अपना खेल खेलेंगे. इस बात की  संभावना कम ही नजर आ रही है कि केजरीवाल दिल्ली छोड़कर पंजाब आएंगे. केजरीवाल का डर ही आप को कमजोर बना रहा है और सभी गैर आप दल एकजुट  हैं. यह तो कहा ही जा चुका है कि बहुत कम लोग यह  मानते हैं कि आप को स्पष्ट बहुमत मिलेगा पर यह सभी मान रहे हैं कि आप सबसे बड़ी पार्टी होगी.
कांग्रेस की माने तो उसे मिटाने को तो नवजोत सिंह सिद्धू ही काफी हैं. वह कोई दिन नहीं जाता जब मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी के खिलाफ शिगूफा नहीं छोड़ते हों. उनकी पत्नी और बेटी इस मामले में बढ़ चढ़ कर बोल रहे हैं. कांग्रेस का चन्नी को मुख्यमंत्री बनाने के मास्टर स्ट्रोक की भी अपनी ताकत क्षीण हो गई है. चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करने का उत्साह  भी ढ़डा पड़ गया है. कारण यह है कि दलित यहां वैसे संगठित नहीं हैं जैसे उत्त्रप्रदेश व अन्य स्थानों पर हैं. इसलिये यहां दलित वोट कांग्रेस और अकालियों के साथ आप तथा भाजपा सहित अन्य पार्टियों में बंटने वाला है. फिर चन्नी ने कभी भी इससे पहले दलितों का कोई मुद्दा उठाया नहीं न ही अपने को दलित नेता स्थापित करने की कोशिश की है. इसलिये भी चन्नी दलित वोट ज्यादा दिलवा पाएंगे इसकी किसी को उम्मीद नहीं बची है. राहुल गांधी ने जिस प्रकार से चन्नी को गरीब आम आदमी बता कर मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया वह आज एक मजाक बन गया है. सवा चार करोड़ की संपति वाले को गरीब कहा जाए तो सब कह रहे हैं कि काश हम भी चन्नी जैसे गरीब होते. फिर पचास साल से कांग्रेस की सेवा कर रहे अमरिंदर की जगह दस साल से कांग्रेस में सक्रिय चन्नी का कोई मुकाबला राजनीतिक हस्ती के तौर पर नहीं है. इसलिये कांग्रेस के नेता भी चन्नी को भाव देने को तैयार नहीं है. इस कारण भी चन्नी की अगुआई का ज्यादा लाभ कांग्रेस को नहीं हो रहा है. इसके बाद भी यह कहने वालों की संख्या काफी है कि आप के बाद कांग्रेस का नंबर आता है. कांग्रेस को बहुमत मिलेगा यह  कोई नहीं कहता. पर आप और कांग्रेस के बीच भी ज्यादा अंतर नहीं रहने वाला है.
जहां तक अकाली दल की बात है उसकी चर्चा पंजाब में काफी कम है. सुखविंदर सिह बादल इसके नेता हैं. अकाली दल के लिये करो मरो जैसी स्थिति है इसलिये प्रकाश सिंह बादल तक 92 साल की उम्र में भी घर घर जाकर अकाली दल  के लिये वोट मांग रहे हैं. लेकिन याद रखने की बात है कि उसकी गतिविधियां पंजाब के अंदरूनी इलाकों में काफी तेज है. इसलिये कहा यही जा रहा है कि अकाली भले ही तीसरे नंबर पर आयें पर उनकी सीटें भी अच्छी खासी संख्या में बढ़ने वाली हैं. दबी जुबान से ही सही कुछ लोग कहते हैं कि कांग्रेस और अकालियों में ज्यादा अंतर नहीं रहने वाला है. हो सकता है अकाली दूसरे नंबर पर आ जाएं पर पहले पर पहुंच जाएंगे ऐसा कोई नहीं कह रहा है.
बची बात अमरिंदर सिहं की अपनी पार्टी, ढ़ीढंसा की पाटी और भाजपा की तो इन सबने एकमत होकर अमरिंदर सिहं की अगुआई स्वीकार कर ली है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, अमित शाह, राजनाथ सिंह, नितीन गढकरी, स्मृति इरानी आदि ने खूब ताकत लगाई है. संघ और भाजपा का संगठन इन्हें ताकत प्रदान कर रहा है. इसलिये इस गठबंधन की सीटें लोग लगातार बढ़ा रहे हैं. उनकी नजर में यह  संख्या पांच दस से लेकर पन्द्रह बीस तक चली जाती है. यह कोई नहीं  कह रहा  कि इनकी सरकार बनेंगी पर बड़ी संख्या में यह लोग जरूर कह रहे हैं  कि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में अमरिंदर सिंह किंगमेकर बन सकते हैं. अमरिंदर सिंह कह रहे हैं कि डबल इंजन की सरकार साठ लाख करोड के कर्जे में डूबे पंजाब के लिये आज की जरूरत है.
सबसे ज्यादा निराशा किसान आंदोलन को लेकर है. क्योंकि साल भर दिल्ली की सीमा पर एक साथ लड़ने वाले किसान पंजाब वापसी के बाद बजाय किसानों की पार्टियों का साथ देने के अपनी  अपनी पार्टियों में वापस जाकर उनके पक्ष में सक्रिय हो गये हैं. राजोवाल और चढूनी की किसान पार्टियों को वोट कटवा ही माना जा रहा है. एक दो सीट तक देने को भी कोई तैयार नहीं है.

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